भोपाल: विलियम हंटिंगटन के क्लैश ऑफ सिविलाइज़ेशन से कहीं पहले भारत के एक लेखक ने दो लहरों की टक्कर लिख दी। 94 वर्ष की आयु में लगभग 200 पुस्तकें लिखने वाले ये लेखक थे वैद्य गुरुदत्त।
गुरुदत्त केवल एक उपन्यासकार नहीं है वह एक मनीषी हैं, एक चिंतक हैं, विचारक हैं और उनका चिंतन ज्ञान के आधार पर खड़ा है। यह बातें भारतीय धरोहर के कार्यकारी संपादक श्री रविशंकर ने यंग थिंकर्स फोरम द्वारा वैद्य गुरुदत्त के लेखन एवं विचार पर आयोजित वेबीनार के दौरान कहीं।

वैद्य गुरुदत्त के लेखन एवं विचार को युवाओं के समक्ष लाने एवं उसके महत्व को जन समान्य तक पहुंचाने के लिए यंग थिंकर्स फोरम ने इस परिचर्चा का आयोजन किया था, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से छात्रों एवं विचारकों ने हिस्सा लिया।

श्री रविशंकर ने कहा कि ज्ञान के बिना चिंतन संभव नहीं है. जैसे कि कोई व्यक्ति अगर जन्मांध है तो वह किसी वस्तु की कल्पना नहीं कर सकता क्योंकि उसने उसे कभी देखा ही नहीं। उसी तरह जिस व्यक्ति ने अध्ययन न किया हो वह चिंता नहीं कर सकता, गुरुदत्त की विशेषता है कि उन्होंने भारतीय इतिहास, वेदों एवं धर्म ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है।

वर्तमान इतिहासकारों पर टिप्पणी करते हुए श्री रविशंकर ने कहा कि वह भारतीयता के विश्लेषण के लिए विदेशी लेखकों के विचारों को पर निर्भर हैं। वह वेदों पर टिप्पणी लिखते हैं जबकि स्वयं वेदों के मंत्र को नहीं समझते। इस तरह से लिखा गया इतिहास संपूर्ण नहीं हो सकता।

अपने व्याख्यान के दौरान श्री रविशंकर ने वैद्य गुरुदत्त के विभिन्न रचनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि किस तरह गुरुदत्त अपनी कहानियों व उपन्यासों के माध्यम से समाज की बुराइयों एवं समाज के समक्ष आ रही चुनौतियों पर तीखी टिप्पणी किया करते थे। उन्होंने कहा कि गुरुदत्त समाज में आ रहे परिवर्तनों एवं राजनीतिक गतिविधियों पर भी तीखी नजर रखते थे उनके लेखन में हमेशा समाज को नई दशा और दिशा दी। गुरुदत्त एक बहुत परिपक्व आलोचक भी थे। उनकी अनेक पुस्तकों को प्रतिबंधित कर दिया गया था। अपने सत्र के अंत में श्री रविशंकर ने प्रतिभागीयों के प्रश्नों के जवाब भी दिए।

इस सत्र में गुरुदत्त की प्रमुख पुस्तकों जैसे-दो लहरों की टक्कर, विश्वासघात, भारत गाँधी-नेहरू की छाया में, देश की हत्या, वाममार्ग, बुद्धि बनाम बहुमत आदि के बारे में बताया और इन पुस्तकों को पढ़ने का आग्रह किया।

इस सत्र की अध्यक्षता मध्य प्रदेश के पहले केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य श्री राघवेंद्र प्रसाद तिवारी ने की। उन्होंने बताया कि अपने लगभग 95 वर्ष के जीवन काल में गुरुदत्त जी ने दो सौ से ज्यादा पुस्तकों का लेखन किया। मगर उसके बावजूद उन्हें देश के विमर्श में वह स्थान नहीं मिल पाया जिसके वह अधिकारी थे। गुरुदत्त ने बहुत ही सरल और बोधगम्य भाषा में भारत के इतिहास और सामाजिक ताने-बाने पर टिप्पणी की, मगर उसके बावजूद आज भारत का युवा वह गुरुदत्त के कृतित्व से अनजान है उससे परिचित नहीं है। उन्होंने घोषणा की कि सागर विश्वविद्यालय इस विषय पर अध्ययन व शोध करने हेतु प्रतिबद्ध है।

यंग थिंकर्स फोरम के निदेशक आशुतोष सिंह ठाकुर ने कार्यक्रम के अंत में यह घोषणा की कि गुरुदत्त को युवाओं के मध्य ले जाने के लिए यंग थिंकर्स फोरम विशेष प्रयास करेगा। फोरम द्वारा आयोजित साप्ताहिक पुस्तक चर्चा में वैद्य गुरुदत्त की पुस्तकों पर समीक्षा की श्रृंखला शुरू की जाएगी। उन्होंने गुरुदत्त की पुस्तकों की समीक्षा करने के लिए युवाओं का आह्वान किया। जो भी युवा गुरुदत्त की किसी किताब की समीक्षा करना चाहें वह यंग थिंकर्स फोरम् के वेबसाईट पर रजिस्टर कर सकते हैं।

कार्यक्रम के अंत में यंग थिंकर्स फोरम के मार्गदर्शक श्री दीपक शर्मा ने वक्ता एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।