Brahma is the only truth: Pravrajika Divyanandprana

आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा शनिवार को आयोजित शंकर व्याख्यानमाला में रामकृष्ण मिशन श्री शारदा मठ की संन्यासिनी प्रव्राजिका दिव्यानंदप्राणा माताजी ने ‘अवस्थात्रय विवेक’ विषय पर व्याख्यान दिया।

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तीनों अवस्थाओं की साक्षी है आत्म-चेतना

माताजी ने बताया कि हमारे जीवन में, दृश्य जगह में हमें द्वैत ही दिखता है, किन्तु हमारा वास्तविक स्वरूप उससे भिन्न है। हम नाम-रूप के बाहर नहीं सोच पाते हैं, इसलिए आत्मदर्शन नहीं कर पाते हैं। हम ब्रह्म स्वरूप हैं, यही घोषणा चार महावाक्य करते हैं।

माताजी ने माण्डूक्य उपनिषद् को उद्धृत करते हुए जागृत, स्वयं व सुषुप्त – इन तीन अवस्थाओं को समझाया और अंत में ब्रह्मसाक्षात्कार की अवस्था ‘तुरीय’ पर प्रकाश डाला। ये तीनों अवस्थाएँ परिवर्तनीय हैं किंतु चेतना अपरिवर्तनशील है। यह इन तीनों अवस्थाओं की साक्षी है। यह अनुभूति की अवस्था है जिसको उपनिषद के शब्दप्रमाण को मानकर साधना के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

तुरीय को माण्डूक्य उपनिषद् के सातवें मंत्र में बतलाया गया है। यह अदृष्ट, अव्यवहार्य, अग्राह्य, अलक्षण, अचिन्त्य, अव्यापदेश्य, एकात्मप्रत्ययसार, प्रपंच का उपशम, शान्त, शिव और अद्वैतरूप है। वही आत्मा है और वही जानने योग्य है।

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माताजी ने कहा की ब्रह्मज्ञानी के लिए यह जगत और सभी अवस्थाएँ स्वप्नवत हैं। यह सब हमें भासित होता है, किन्तु यह परिवर्तनशील है इसलिए सत्य और नित्य नहीं। जिस प्रकार सभी आभूषणों, गहनों के तत्त्व एक ही है – स्वर्ण। उसी प्रकार सभी के नाम-रूप आदि भिन्न होते हुए भी तत्त्व एक ही है – ब्रह्म। ब्रह्म ही सत्य है और इसलिए अद्वैत वेदान्त सत्य को जानने का, उसकी अनुभूति करने का, ब्रह्मसाक्षात्कार का मार्ग है।

वक्ता परिचय
प्रव्राजिका दिव्यानन्दप्राणा श्री शारदा मठ की संन्यासिनी हैं। आप मैसूर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक (स्वर्ण पदक) हैं तथा रामकृष्ण मठ एवं मिशन के 13वें अध्यक्ष परमपूज्य स्वामी रंगनाथानंदजी महाराज की शिष्या हैं। शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत श्री शारदा मठ से जुड़कर वर्ष 2001 में ब्रह्मचर्य की दीक्षा प्राप्त की। वर्ष 2007 में आपने श्री शारदा मठ की तृतीय अध्यक्ष परमपूज्य श्रद्धाप्राणा माताजी से सन्यास की दीक्षा ली।

वर्तमान में आप नई दिल्ली से प्रकाशित अङ्ग्रेज़ी पत्रिका ‘संवित्’ की संपादक हैं। इसके पूर्व वर्ष 2014 से 2019 तक आप निवेदिता विद्या मंदिर विद्यालय की प्रधानाचार्य रही हैं। आप श्री श्री विश्वविद्यालय, कटक में प्राध्यापक हैं। आपने योग एवं वेदान्त विषयक ग्रन्थों का भाष्यों के साथ गहन अध्ययन किया है।

प्रव्राजिका दिव्यानन्दप्राणा वर्ष 2010 से सम्पूर्ण भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान दे रही हैं जिनमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी मुंबई, आईआईटी कानपुर, आईआईएससी बैंग्लोर, दिल्ली विश्वविद्यालय विवेकानंद अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, रामकृष्ण मिशन; मुंबई, पुणे, कोलकाता के कई अभियांत्रिकी एवं आयुर्विज्ञान महाविद्यालय एवं विद्यालय भी सम्मिलित हैं। आपने अनेक देशों की यात्राएँ कर वेदान्त एवं अन्य विषयों पर व्याख्यान दिए हैं।

इस व्याख्यान को न्यास के यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है। न्यास द्वारा प्रतिमाह शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है जिसमें विश्व के प्रतिष्ठित विद्वान-संत जीवनोपयोगी आध्यात्मिक विषयों पर व्याख्यान देते हैं।