गुजरात में कांग्रेस की घोषणा के बाद अब बारी थी भाजपा की। सोमवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने गुजरात भाजपा ईकाई के अध्यक्ष के तौर चंद्रकांत रघुनाथ पाटिल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कभी मोदी के धुर विरोधी रहे और मराठी मूल के सीआर पाटिल को क्यूँ गुज़रात इकाई का अध्यक्ष बनाया गया। यह सवाल तब और बड़ा हो जाता है जब गुज़रात पिछले कई साल से रह-रह कर पटेल आरक्षण की मांग में ऊबल जाता है। वहीं सीआर पाटिल के सामने हार्दिक पटेल का नेतृत्व है जो खुद पाटीदार आन्दोलन का सबसे बड़ा चेहरा थे।

कांस्टेबल की नौकरी क्यूँ छोड़ी ?

सीआर पाटिल शुरूआती दिनों में एक कांस्टेबल थे। उन्होंने 1975 से 1984 तक बतौर कांस्टेबल नौकरी की लेकिन फिर उनका रूझान राजनीति की तरफ बढ़ा और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। हालांकि वे तुरंत किसी पार्टी का हिस्सा नहीं बनें। 1989 में चन्द्रकांत पाटिल ने आधिकारिक रूप से भाजपा की सदस्यता ली। गुजरात में उस समय मोदी संगठन मंत्री हुआ करते थे। अहमदाबाद में महानगर पालिका चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत हुई जिसके कारण मोदी की धमक पूरे प्रदेश बढ़ गई। उस समय गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे कांशीराम राणा। सी आर पाटिल को कांशीराम राणा का संरक्षण प्राप्त था। हालांकि 1995 में कांशीराम राणा और मोदी के बीच विवाद इतना बढ़ गया की मोदी ने पत्र लिखकर प्रदेश को छोड़ दिया। इसके मोदी की गुजरात वापसी सीधे मुख्यमंत्री के तौर पर हुई।

सी आर पाटिल के खिलाफ मोदी ने लड़ा केस ?

मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी अपने एक-एक विरोधियों को किनारे लगाने लगे। 2002 का चुनाव जीतने के साथ मोदी के नेतृत्व पर एक तरह से मोहर लग गई। लेकिन इस दौरान बैंक का कर्ज न चुकाने के कारण सी आर पाटिल पर बुरी तरह से फंस चुके थे। भाजपा नेता होने के बाद भी मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने सी आर पाटिल के खिलाफ मजबूती केस लड़ा और अंततः पैसा चुकाने के बाद वो एक तरह से दोष मुक्त हुए। लेकिन इस दौरान मोदी ने सी आर पाटिल से दूरी बनाए रखा।

2007 के चुनाव से बदली किस्मत

2007 के चुनाव में गुज़रात विधानसभा के चुनाव हुए। यह दूसरा चुनाव था जब मोदी के नेतृत्व पर वोट दिए जा रहे थे। केन्द्र में यूपीए की सरकार थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुज़रात में प्रचार के दौरान मोदी को मौत का सौदागर कहा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसके बाद पूरा चुनाव मोदी के पक्ष में बदल गया। इस दौरान मोदी की एक रैली का आयोजन सीआर पाटिल ने किया जिसके बाद दोनों नेताओं के रिश्ते धीरे-धीरे सुधरने लगे। 2009 में नसवारी सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।


पटेल के मुकाबले पाटिल !

कुछ ही महीने में गुज़रात की आठ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने को हैं। हार्दिक पटेल और सी आर पाटिल के दूसरे के आमने-सामने होंगे और दोनों प्रदेश अध्यक्षों की पहली परीक्षा यही होगी।

पटेल और पाटिल की बात करें तो हार्दिक के मुकाबले सी आर पाटिल ज्यादा अनुभवी हैं। इसके अलावा भाजपा के और पटेल प्रदेश अध्यक्ष देकर भीतरघात से बचना चाहती है क्योंकि उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल खुद पटेल समुदाय से आते हैं। वहीं पाटिल को मीडिया मैनेजमेंट साथ बूथ मैनेजमेंट की अच्छी समझ है जो उनके पक्ष में गई। फिलहाल पाटिल की सबसे बड़ी परीक्षा 2022 के विधानसभा चुनावों में होगी जब प्रदेश में चुनाव होंगे। पिछले 37 से गुजरात में कांग्रेस सत्ता से दूर है अगर 2022 में कांग्रेस असफल रही तो पार्टी के लिए 2024 की राह और मुश्किल हो सकती है।