09 सितम्बर 2021 को भारतेंदु की 171 वीं जयन्ती के अवसर पर क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा भारतेंदु का भाषिक स्वराज विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. रजनीश शुक्ल ,कुलपति महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने की कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन अकादमिक निदेशक क्षेत्रीय केंद्र प्रो. अखिलेश दुबे ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। डॉ. अवन्तिका शुक्ल सह आचार्य स्त्री अध्ययन ने सभी वक्ताओं का परिचय प्रस्तुत किया। प्रो. अवधेश शुक्ल ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। प्रो. कृपाशंकर चौबे ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के साहित्य कला संस्कृति पर योगदान की चर्चा करते हुए विषय की प्रस्तावना रखी।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि भारतेंदु की कविता की भाषा देसी है। उस पर गुजराती का भी प्रभाव है और पंजाबी का भी प्रभाव है। उनकी भाषा बनारस की स्थानीय भाषा है। भारतेंदु ने अंग्रेजी वस्त्रों के साथ साथ अंग्रेजी न्यायालय, अंग्रेजी भाषा का विरोध किया। भारतेंदु के कार्यों का सही मूल्यांकन अभी बाकी है। भारतेंदु उस समय की शिक्षा नीति पर भी व्यापक चोट करते हैं। हिंदी विश्वविद्यालय उनका आजीवन कृतज्ञ रहेगा। हिंदी विश्वविद्यालय के रूप में बलिया में देखा गया सपना शताब्दियों बाद पूर्ण हो पाया। निज भाषा की राह पर मदन मोहन मालवीय और महात्मा गांधी भी आगे चले। भारत में मौलिक चिंतन के प्रश्न को भारतेंदु ने उठाया। मौलिक चिंतन के माध्यम से स्वाबलंबन और स्वराज पाने की जरूरत पर भारतेंदु ने बल दिया। प्रो. शुक्ल ने कहा कि सृजनात्मकता मातृभाषा में ही संभव है ,इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। बहुत जिद और जूनून के साथ स्वराज का रास्ता तय होता है। यह जिद और जुनून भारतेंदु में मिलता है।

प्रो. सुधीर प्रताप सिंह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने बताया कि भारतेंदु हरिशचंद्र ने धन के विदेश चले जाने और अंग्रेजों द्वारा लागू किये गए टैक्सों का विरोध किया। भारतेंदु के अनुसार इसी वजह से भारत दुर्दशा है। भारत वर्ष को ज्ञान, सभ्यता, संस्कृति में पहले पायदान पर होने के बावजूद टैक्स लगाकर देश को लूटने की साजिश की जा रही है। उन्होंने समाज के यथार्थ को समझा और अंग्रेजों के झूठे उदारवादी चेहरे पर तल्ख़ टिप्पणियाँ की प्रो.सुधीर प्रताप ने कहा कि भारतेंदु सरकार परस्त नहीं थे। इस हेतु उन्होंने “कवि वचन सुधा और बलिया वाले भाषण और भारत उन्नति कैसे हो सकती है” के कई उद्धरण प्रस्तुत किये।

प्रो. प्रत्युष दुबे गोरखपुर विश्वविद्यालय ने भारतेंदु के नाटक निबंध के माध्यम से बताया कि नाटक के दो लक्षण है लोक शिक्षण एवं देश वत्सलता यह अपनी भाषा, लोक भाषा में ही संभव है। भारतेंदु ने निज भाषा की उन्नति के साथ
दूसरी भाषाओं की उन्नति पर भी चर्चा की। महात्मा गांधी ने हिंदी के प्रश्न को स्वराज से जोड़ा. अपनी भाषा में देश के उत्थान के लिए निज भाषा आवश्यक है। भारतेंदु ने निज माध्यम से स्वराज पाने का मुद्दा जोर शोर से उठाया था। साथ ही हिंदू मुस्लिम के बीच आपसी समन्वय की आवश्यकता की बात कही ।

प्रो अलका पांडे लखनऊ विश्वविद्यालय ने भारतेंदु के बारे में बताते हुए कहा कि भारतेंदु का साहित्य संक्राति कालीन चेतना का प्रतिरूप है। भारतेंदु काव्य के लिए ब्रज भाषा तो गद्य के लिए खडी बोली का अपनाते हैं. भारतेंदु ने हिंदी साहित्य को एक नयी दिशा दी। उन्होंने हिंदी को देश की उन्नति का मूल माना। सत्यवादी हरिश्चंद्र नाटक में भरत वाक्य “स्वत्व भाषा” में स्वत्व ही स्वराज है। कोई भी आक्रान्ता देश को भाषा से काट कर लोगों को गुलाम बनाता है। निज भाषा की हमारी पहचान में बड़ी भूमिका है। भारतेंदु ने कहा कि अगर हम विदेशी शब्द को लेंगे भी, तो अपने अनुसार ही लेंगे। भारतेंदु ने नवजागरण को समाज में प्रवाहित करने का कार्य किया जो उस समय बहुत कठिन कार्य था।
प्रो. कृष्ण कुमार सिंह साहित्य विद्यापीठ ने हरिश्चंद्र मैगज़ीन की चर्चा करते हुए बताया कि यह हिंदी भाषा को महत्वपूर्ण देन है, जिसे जनता ने दौड़ कर अपनाया। बलिया वाले भाषण की आख़िरी पंक्ति का उद्धरण देते हुए बताया कि भारतेंदु ने कहा कि “परदेसी वस्तु और परदेसी भाषा पर भरोसा मत करो। अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो”। इस पंक्ति से हम स्वराज के लिए भाषा के महत्व को समझ सकते हैं। हिंदी को भारतेंदु गहन से गहन चिंतन के लिए उपयुक्त भाषा के रूप में देखना चाहते हैं और उसके लिए ताउम्र प्रयासरत रहे। कल्हण की राजतरंगिनी के आधार पर भारतेंदु ने कश्मीर का इतिहास “कश्मीर सुषमा” हिंदी में लिखा । उन्होंने “महाराष्ट्र देश का इतिहास “नाम से भी महाराष्ट्र का इतिहास हिंदी में लिखा। इस प्रकार हिंदी में इतिहास लेखन भारतेंदु के लेखन के माध्यम से हमें देखने को मिलता है।

प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल प्रति-कुलपति महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने अपने वक्तव्य में बताया कि भाषा का प्रयोक्ता और भाषा एक ही जलवायु में विकसित होता है। भारत के भाषाई जलवायु में बहुत से आंधी तूफ़ान और बदलाव आये हैं यह बदलाव भाषा में स्पष्ट दिखते हैं। भारतेंदु ने राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द और लक्ष्मण सिंह से अलग हिंदी की नई चाल गढ़ी. भारतेंदु हमारे नायक थे। नायकों से समाज को बहुत अपेक्षा होती है। पर भारतेंदु को सिर्फ ३४ वर्ष की ही आयु प्राप्त हुई। इस आयु में उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया जो इस आयु के लोगों द्वारा कर पाना विरले ही मिलता है।

प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी माननीय कुलाधिपति केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश ने कहा कि हिंदी दिवस से पूर्व हिंदी भाषा के पुरोधा पर बात करना बहुत सुखद है। लाहौर पब्लिक लाइब्रेरी में भारतेंदु के नाम पर एक कोना भी है वहां कवि वचन सुधा के बहुत से अंक भी हैं भारतेंदु ने पंजाबी में भी कवितायें लिखीं। वह आधुनिक भारतीय भाषा की वकालत करने वाले चिन्तक, मनीषी हैं। भगत सिंह नेभारतेंदु के नाटक भारत दुर्दशा में अभिनय किया था उनके साथी जेल में भी भारतेंदु के नाटक के संवाद सुनाया करते थे। भारतेंदु का प्रभाव क्रांतिकारियों में जबरदस्त रूप से मिलता है। पंजाबी पत्रिका “जमींदार” में स्वतंत्रता आन्दोलन पर बड़ी बहसें छपती थीं। जमींदार के दफ्तर में भारतेंदु ने कहा कि अगर देश अपनी भाषा से जुड़ जाएगा, तो वह अपने देश के साहित्य, संस्कृति और परम्परा से स्वयं ही जुड़ जाएगा। भारतेंदु ने पूरे देश के साथ भाषा के मुद्दे पर संवाद किया।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. आशा मिश्रा सह आचार्य स्त्री अध्ययन ने सभी वक्ताओं एवं आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस कार्यक्रम में प्रो.चंद्रकांत रागीट ,प्रो. नृपेन्द्र प्रसाद मोदी, प्रो. प्रीती सागर,डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. रामप्रकाश, डॉ. सुप्रिया पाठक, डॉ. अमरेन्द्र शर्मा, डॉ. जयंत उपाध्याय, डॉ.मनोज कुमार राय ,डॉ. रविन्द्र बोरकर, डॉ.हिमांशु शेखर, डॉ.अनुराधा पांडे , डॉ. जोगदंड शिवाजी, डॉ अनूप कुमार त्रिपाठी आदि अध्यापक एवं श्री विनोद वैद्य सहायक कुलसचिव, श्री बी. एस. मिरगे जन संपर्क अधिकारी, डॉ. अंजनी राय सिस्टम एनालिस्ट, श्री पवन कुमार, श्री हेमंत,श्री अमितोष,श्री शम्भू दत्त सती, श्री राजदीप राठोड़, श्री जयेंद्र जायसवाल, श्री प्रत्युष शुक्ल, श्री राहुल त्रिपाठी, श्रीमती रश्मि ,श्री अरविंद राय, श्री मिथिलेश राय उपस्थित थे । इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय के आधिकारिक फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर ढेरों दर्शकों ने जुड़कर इसका लाभ उठाया ।