पिछले दिनों चुनाव के दौरान भाजपा के टिकट पर लोकसभा पहुंचे वाली साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने गोडसे को लेकर एक बयान दिया जिसके बाद भाजपा की काफी आलोचना हुई ,सफाई खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दी और उस बयान पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि “वो कभी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को माफ नहीं कर पाएंगे।”
भारत में जब भी गोडसे का जिक्र होता है तो महात्मा गांधी का जिक्र न हो ऐसा संभव ही नहीं पर,मैं यहाँ साफ कर देना चाहता हूँ कि मैं इस लेख में जहाँ भी गांधी शब्द आए तो उसका तात्पर्य महात्मा गाँधी से न निकाला जाए ।शुरूआत में ही इस शब्दावली को मैं इसलिए स्पष्ट कर देना उचित समझता हूँ ताकि लेख को लेकर आप सभी के मन में दुविधा न बने ।खैर भारत में महात्मा गाँधी के तीन परिवार है पहला उनका स्वयं का परिवार,दूसरा परिवार मूलतः नेहरू गांधी परिवार है मतलब इंदिरा और फिरोज गांधी का परिवार जो बाद में दो टुकड़े में बंट गया सोनिया ,राहुल और प्रियंका गांधी तो वही दूसरा परिवार उभर कर सामने आया वह है मेनका गांधी और वरूण गांधी का ।इस तरह अगर हम देंखें तो समझ पाएंगे कि वर्तमान भारत में तीन गांधी परिवार है ,जिनमें से गांधी के विचारों के सबसे करीब होने का दावा कांग्रेस करती हैं वह गांधी के विचारों के सबसे करीब है या नहीं इसका मूल्यांकन आप स्वयं करें ।
मैं भाजपा के अंदर मौजूद गांधी परिवार की बात कर रहा हूँ मतलब मेनका गांधी और वरूण गांधी का।वैसे तो भाजपा और संघ की अदावत गांधी परिवार से बड़ी पुरानी है पर इस गांधी परिवार को साथ लेकर भाजपा अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पर लगातार हमलावर रहती है।यह संजय गांधी का परिवार है वही संजय गांधी जो एक समय कांग्रेस के सर्वे-सर्वा थे,वही संजय गांधी जिनके विषय में कहा जाता था कि ये इंदिरा गाँधी के राजनीतिक वारिस होंगे,वह कांग्रेसी नेता जिससे बड़े-बड़े दिग्गज डरते थे पर उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी और पुत्र को कांग्रेस में ही उचित स्थान नहीं मिला ।जिसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दिया यह आसान नहीं रहा होगा उनके लिए कि जिस पार्टी में कुछ दिन पहले ही तक सबकुछ उनका था आज कुछ भी नहीं।मेनका गांधी के हाथ में थे कोई तो डेढ़ साल के वरूण गांधी ।कई बड़े-बड़े राजनेताओं को देखा गया है कि वो ऐसी परिस्थिति से उबर नहीं पाए और एक तरह से उनके सार्वजनिक जीवन का सूर्यास्त हो गया पर मेनका गांधी का व्यक्तित्व इस घटना के बाद और मजबूत नेत्री बनकर उभरती है ।कुछ दिनों तक उन्होंने ने अपने पति के नाम पर राजनीतिक दल बनाया ‘संजय विचार पार्टी’ पर खास सफलता उन्हें नहीं मिल पाई जिसके बाद उन्होंने भाजपा में सम्मलित होने का निर्णय किया यह वह दौर था जब कांग्रेस पर गांधी परिवार का नियंत्रण नहीं था और सोनिया गाँधी के विषय में कहा जाता था कि वो राजनीति में आएंगी नहीं, राहुल और प्रियंका को लेकर भी सिर्फ कयास लगाए जा रहे थे वह भी भविष्य के गर्भ में छिपा था ।
2004 से 2014 तक ।
यह वह दौर था जब अटल सरकार के शाइनिंग इण्डिया के बजाए लोगों ने कांग्रेस पर विश्वास जताया और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए एक का निर्माण हुआ और उन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया ।यही वही समय था जब अमेठी से एक युवा सांसद निर्वाचित होकर संसद पहुंचा वह कोई और नहीं राहुल गांधी थे वही उनकी चाची मेनका गांधी उत्तर प्रदेश के पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुई ।
2009 का चुनाव भाजपा को भाजपा और आडवाणी के लिए एक बहुत बड़े झटके के समान था क्योंकि लोगों ने न सिर्फ भाजपा की नीति बल्कि नेता को भी ठुकरा दिया ।लेकिन इन सब के बीच गांधी परिवार का नया लड़का राजनीति में धमाकेदार इंट्री कर चुका था। वरूण गांधी न सिर्फ पीलीभीत से सांसद बने बल्कि पूरे चुनाव के दौरान वो चर्चा के केंद्र में रहे उनकी माँ भी आंवला से निर्वाचित हुई ।भाजपा में अमूमन ऐसा न के बराबर होता है कि किसी एक परिवार के दो सदस्यों को एक ही चुनाव में टिकट मिल जाए और दोनों लोग चुनाव भी जीत जाएं , मेरी जानकारी में ऐसी कोई घटना नहीं है ।
इन्हीं पांच सालों में वरूण गांधी को बंगाल का प्रभारी बनाता गया पर वहां उन्हें खास सफलता नहीं मिली ।भाजपा वहां एक आक्रामक युवा चाहती थी पर वरूण उन महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सफल नहीं रहें और भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली जिसके बाद से उनके कार्यसंस्कार पर उठने
लगा ।
2014 के बाद
2014 में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला 30 साल बाद किसी दल को तो वहीं आजादी के बाद पहली बार किसी गैर कांग्रेसी दल को ।मोदी प्रधानमंत्री और पीलीभीत से सांसद मेनका गांधी “महिला बाल विकास मंत्री” । मेनका के पुत्र और तब सुल्तानपुर से सांसद वरूण गांधी कोई न कोई ऐसी हरकत कर देते जिससे तत्कालीन सरकार और भाजपा के लोगों के सामने सवाल खड़े हो जाते, ये सवाल उन्हें कांटे की तरह चुभते।इसके पहले भी वरूण 2014 के चुनाव में एक बार भी मोदी का नाम नहीं लिया जो यह दर्शाता था कि वो मोदी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर पा रहे है ।
इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी
इलाहाबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई ,यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि सामने उत्तर प्रदेश का चुनाव था ।बताया जाता है कि तब वरूण गांधी ने अपने नाम के पोस्टर पूरे शहर मे लगवाए ।इन पोस्टरो में उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने की बात कही जा रही थी ।यह घटना भाजपा की कार्य संस्कृति के खिलाफ था ।जिसके बाद अमित शाह ने उन्हें बुलाकर समझाया था ।
इसके पहले 2014 के चुनाव के बाद वरूण गांधी को बंगाल प्रभारी पद से अमित शाह ने हटा था तभी लोगों को संकेत मिल गए थे कि अमित शाह की टीम वो फिट नहीं बैठते हैं ।
मोदी 2.0
मोदी सरकार की जबर्दस्त वापसी हुई ।जनता ने मोदी का नेतृत्व चुना और कांग्रेस को नकार दिया ।मोदी कैबिनेट में इस बार मेनका गांधी को जगह नहीं मिला कयास लगाया जाने लगा कि शायद उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनाया जाए लेकिन ओम बिरला को लोकसभा अध्यक्ष बनाकर मोदी और शाह ने उन तमाम अटकलों को भी किनारे लगा दिया।राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो उनका कहना है कि क्योंकि भाजपा नहीं चाहती थी कि दोनों लोग (मेनका गांधी और वरूण गांधी) चुनाव लड़े पर मेनका गांधी के आगे किसी एक की नहीं चली। लोगों कहतें हैं कि तभी मोदी और शाह ने सोच लिया था कि इस बार इन लोगों को सरकार और संगठन से किनारे लगा दिया जाएगा हुआ भी ऐसे ही ।
आगे की राह
मेनका गांधी बहुत परिपक्व राजनीतिज्ञ और जुझारू महिला है और वह इतने जल्दी हथियार नहीं डालेंगी ।पर सवाल मेनका गांधी का नहीं है बल्कि वरूण गांधी का ,जिनके राजनैतिक भविष्य बचाने के लिए मेनका गांधी संघर्षरत हैं ।
भाजपा की राजनीति पर निगाह रखने वालों पत्रकारों की माने तो अभी मेनका और उनके पुत्र वरूण भाजपा के लिए उतने महत्वपूर्ण अब नहीं रह गए हैं जितना पहले थे ,इसके पीछे कारण राहुल गांधी और कांग्रेस है ।भाजपा कांग्रेस की नई पीढ़ी को लेकर जितना संशकित 2004 में थी अब उतना नहीं रह गई है ।वरूण को लाने प्रमोद महाजन इनको राहुल गांधी की काट के तौर पर लाए थे ।
जानकर कहतें हैं कि दोनों चचरे भाई (राहुल और वरूण)एक हो जाना चाहतें पर मेनका और सोनिया बीच में चट्टान की तरह खड़ी हैं ।प्रियंका गांधी लगातार उस चट्टान से रास्ता निकालने के लिए प्रयासरत है पर अभी उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है ।राजनिति में एक बात कही जाती है कि यहाँ कोई दोस्त नहीं होता न ही दुश्मन सब एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक साथ हैं ।देखना होगा कि भविष्य में क्या दोनों भाईयों को एक दूसरे की जरूरत पड़ती भी है या नहीं,यह आने वाला वक्त बताएगा पर एक बात यह भी है कि वक्त फिलहाल दोनों के अनुकूल नहीं है ।और दोनों लोग अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहें हैं ।