भूपेन कुमार

कल इरफ़ान खान और आज ऋषि कपूर! साल 2020 बॉलीवुड के दो दिग्गज कलाकार और शख्सियत को उनके चाहने वालों से छीन लिया.

एक ओर जहां इस वैश्विक संकट के वक़्त में भूखें और लाचार लोग हज़ारों किमी पैदल चल रहे हैं ताकि वह अपने घर को पहुँच जाए। वहीं दूसरी ओर इस घड़ी में इरफ़ान खान और उसके बाद ऋषि कपूर का इस दुनिया से चले जाना। ऐसे में हम खुद की संवेदनाओं को व्यक्त करने में बिल्कुल उलझ चुके हैं।

इस महामारी के समय में हर दिन हर घण्टे ऐसी घबरें सामने आती है कि ख़ुद को हम बहुत लाचार महसूस करने लगते हैं। जिसके बाद हम सरकार और सिस्टम की लापरवाही, उसके बदनीयत बन्दोबस्त का हिसाब लागने लगते हैं।

ऐसी मनोदशा में कल एक इंसान इस दुनिया से विदा हो लिया। जिसके काम, क्रॉफ्ट और उसके शख्सियत की यादें मन में अभी अपना डेरा बनाये बैठी थी, कि आज फ़िर एक दूसरा इंसान किस दुनिया से रुख़सत हो लिया। जिसने हमारे पिछले जेनेरेशन को अपने अभिनय से रोमांस करना सिखाया है। बेशक यह दोनों शख़्स सेलिब्रिटी रहें हैं जिनका हमसे कभी व्यक्तिगत रिश्ता नही होता है। आजलोगों द्वारा इरफ़ान खान की तारीफ़ उनके क्राफ्ट के बदौलत ही सिर्फ नही है। उतना ही उनकी जिंदादिली इंसान के तौर पर भी है। लेक़िन क्या इरफ़ान के इस बेहतरीन गुण के उनके अंदर होने और इस दुनिया से उनका चले जाने की वज़ह से हम इतने दुखी है। या वह एक इंसान के तौर पर लाखों करोड़ों लोगों को दुखी कर के चले गए। क्या उनकी क्रॉफ्ट ने उन्हें इतना संवेदनशील इंसान बनाया है, की जिसके रुख़सत होने पर हमें किसी अपने का चले जाने जैसा दुख महसूस हो रहा है।

इरफान खान

मुझे लगता है कि इरफान के बनने में सिर्फ उनका क्रॉफ्ट जिसे वह बहुत ईमानदारी से सीखें उसे खोजा और पर्दे पर उतार कर चले गए। वहीं इरफ़ान अपने विधा की तालीम के साथ-साथ ख़ूबसूरत इंसान बनने की तरबियत जो उन्हें अपने जड़ से मिली। उसे हमेशा अपने ज़हन में शामिल रखा जिससे उनके जाने के बाद लोगों के मन मे उनके काम और क्रॉफ्ट से ज्यादा इंसानी व्यवहार अपना अमिट याद छोड़ गया है।

अभिनेता ऋषि कपूर जाना हमारे पिछले जेनेरेशन का रोमांस करने की सीख को लेकर जाना जैसा लगता है। जिसे ऋषि कपूर ने अपने सादगी भरे अंदाज़ में पर्दे पर दिखया है। लेकिन हमारी पीढ़ी के लिए अगर उनको याद करने जैसा कुछ है। तो उन्हें बड़े शहर के मिडिल क्लास अंकल के शक़्ल में ही पर्दे पड़ देखने जैसा है। जिन्हें हम पिछले पांच साल से दिल्ली शहर में रहते हुए अपने आसपास के कॉलोनी में कपूर और खन्ना अंकल के तौर पर देखते आ रहे हैं।

जब ऐसे समय की कल्पना हम कभी किये ही ना हो,तो संवेदना प्रकट करने की मुश्किल में फंसने जैसा लगता है। यह साल बहुत कुछ लेकर जा रहा है। लेक़िन जो क़रीब है अगर उसे प्यार करना नही जानते हैं। तो यह समय हमें सीखा भी रहा है।

(लेखक पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार है।)