वर्धा,(महाराष्ट्र): विदेशों में इंडोनेशिया, बर्मा, थाइलैण्ड और भारत में आसाम, त्रिपुरा और अंदमान निकोबार द्वीप समूह में पाया जाने वाला व अनेक व्याधियों पर उपयोगी वृक्ष वर्धा में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में खोज निकाला है। वर्धा के सुविख्यात वनस्पति विज्ञानी और ‘फ्लोरा ऑफ वर्धा’ ग्रंथ के लेखक प्रो. रमेश आचार्य और वर्धा जिले के वन्य जीव प्रतिपालक श्री कौशल मिश्र ने इस वृक्ष का पता लगाया है। इस वृक्ष का नाम फेरनंदोआ ओडेनोफिला बताया गया है और वह विन्गोनेयसी फैमिली से संम्बद्ध है। यह पेड़ एंटी बेक्टिरियल, एंटी फंगस और एंटी वायरस है। इसे भारत में कट साग नाम से भी जाना जाता है। यह जोड़ो में दर्द, चमड़ी, पाइल्स आदि बिमारियों में उपयोगी माना जाता है। इस पेड़ की लकड़ी से गोल्फ और बिलियर्ड की स्टिक भी बनायी जाती है।
विश्वविद्यालय परिसर में इस पेड़ की उपस्थिति के बारे में वन्य जीव प्रतिपालक और वृक्ष के जानकार कौशल मिश्र ने बताया कि सन 2003- 2004 में विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया था और अन्य पौधों के साथ यह पेड़ वर्धा में आ गया। तब से वे इस पेड़ के विकास पर लगातार नज़र रख रहे थे। उन्होंने कहा कि अब यह पेड अपने विकास के चरम पर है और इसे फल्लियां भी आने लगी है। इसकी फल्ली लगभग एक फीट लंबी है और बीज चमकिले रंग के हैं। हाल ही में प्रो. रमेश आचार्य, कौशल मिश्र, विवि के जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे और विजय राठी ने इस पेड़ का निरीक्षण किया है। इस पेड के संवर्धन के लिए इसके बीज खरांगना स्थित नर्सरी को दिए गये हैं।
वनस्पति विज्ञान के जानकार 79 वर्षीय प्रो. रमेश आचार्य ने इस पेड़ के वर्धा में खोजे जाने पर एक उपलब्धि बताया है। प्रो. आचार्य वर्धा के जे.बी. साइंस महाविद्यालय से सेवानिवृत्त हो चुके है परंतु पेड़ों से संबंधित उनका निरीक्षण और अध्ययन अब भी लगातार जारी है। पादप विज्ञान के अंतर्गत पेड़ों की पहचान और वर्गीकरण करने में उन्हें महारत हासिल है। वर्धा में सफेद फुलों की प्रजातियों की खोज करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महाराष्ट्र राज्य का घास का एकमात्र क्षेत्र वर्धा में चांदणी परिक्षेत्र में है, इसमें पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के घास के वर्गीकरण में भी उनकी बड़ी भूमिका रही है। लगभग 30 वर्ष पूर्व उन्होंने ‘फ्लोरा ऑफ वर्धा’ विषय पर पी.एचडी. की है जिसमें उन्होंने जिले में पाये जाने वाले पेड़ों और वनस्पतियों का गहराई से अध्ययन किया है। दुर्लभ और औषधी युक्त पेड़ो के संरक्षण तथा संवर्धन में वृक्षप्रेमियों को आगे आने की अपील उन्होंने की है।