राहुल मिश्रा
कूटनीति में अक्सर यह देखा गया है कि मुलाकातों के साथ संघर्षों का भी दौर जारी रहता है भारत और चीन के मामले में यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है पर यह बात और है कि चीन इसका हमेशा फायदा उठाता है और भारत भावनाओं में बह जाता है।आज के इस दौर में यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि चीन की नीतियां किसी न किसी तरह भारत को अस्थिर करने और चोट पहुंचाने की है। इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि हमारा पड़ोसी चीन जो सिर्फ अपने तरीके से परेशान ही नहीं करता बल्कि अन्य पड़ोसियों के सहारे भी भारत के लिए नासूर बनता है। जब कभी भी पाकिस्तान और भारत के बीच दुश्मनी प्रकट होती है तब सभी को यह बात आसानी से पच जाती है कि भारत के आगे पाकिस्तान बिल्कुल नहीं टिक पाएगा मगर जब चीन आंख दिखाता है तब भारत की मीडिया से लेकर तमाम जानकार चीन की शक्ति का बखान करते हुए भारत का हौसला बढ़ाते हैं। अभी हाल ही में चीन ने नार्थ सिक्किम और लद्दाक के रास्ते भारत में घुसपैठ की कोशिश की जिसे भारतीयों सैनिको ने नाकाम कर कर दिया है। हालांकि भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। 5 मई को पांगोंग झील की उत्तरी तट पर चीन और भारत के सैनिक भीड़ गए थे,वहीं 9 मई को नातू ला पास के नजदीक भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुई वहीं दूसरी तरफ लद्दाक में हुई झड़प के बाद चीन के हेलीकाप्टर भी वास्तविक सीमा रेखा के पास मंडराते दिखे और इन सब के बीच भारत ने भी अपने लड़ाकू विमान भेज दिए।
डोकलाम विवाद से लेकर लद्दाख तक 3 साल के दरमियान में देखे तो चीन ने हमें हमेशा बेवजह कई तख़लीफ़े दी है और भारत सिर्फ संयम दिखाता रहा है। यह बात उचित है कि युद्ध समस्या का संपूर्ण हल कभी हो ही नहीं सकता। सीमा विवाद के मामले में चीन का दावा कभी उदार था ही नहीं। भारत व चीन के बीच करीब 3498 किलोमीटर की सीमा रेखा है जिसे कि भारत-चीन ने 1962 के युद्ध के बाद सीमा निर्धारण होने तक मान रखा है। दरअसल भारत और चीन के मध्य कोई सीमा थी ही नहीं भारत की सीमा तिब्बत से लगती थी जिसे कि 1950 में चीन ने अपने कब्जे में कर लिया इसके बाद भारत और चीन के बीच 1954 में पंचशील का समझौता हुआ उस समझौते के अनुसार भारत और चीन ने तय किया कि वह एक दूसरे की संप्रभुता अखंडता एकता का सम्मान करेंगे,एक दूसरे के प्रति आक्रमक नहीं होंगे,एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे,एक दूसरे से सम्मान परस्पर लाभकारी संबंध रखेंगे,अंत में शांतिपूर्ण रहते हुए सह अस्तित्व के साथ रहेंगे। लेकिन 1962 में चीन ने भारत को धोखा दिया और भारत पर हमला कर दिया। भारत का जम्मू कश्मीर का क्षेत्र अक्साई चीन उस हमले में चीन ने अपने कब्जे में कर लिया इसी तरह चीन भारत के अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम के कुछ भूभाग पर भी अपना दावा जता रहा है और अपने दावे के आधार पर वह इसे तिब्बत का भूभाग होना होना बता रहा है।
भारत सहित दर्जनभर से अधिक पड़ोसी देशों का दुश्मन चीन कोरोना महामारी का जन्मदाता है। हांगकांग में स्वतंत्रता की आवाज इन दिनों दबा भी रहा है। लद्दाख कि यह समस्या हमें डोकलाम की याद ताजा करा देती है जब 16 जून 2017 को चीन डोकलाम की चुंबी घाटी पर दावा करना चाह रहा था करीब ढाई महीने तक चली इस तनातनी के बीच दोनों सेनाएं वापस हटी, इसके पीछे बहुत बड़ा कारण भारत का संयम से उठाया गया कदम सितंबर 2017 के प्रथम सप्ताह में चीन में होने वाले ब्रिक्स देशों की बैठक मानी जा सकती है। अब सवाल यह है कि क्या भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति बन रही है और यदि ऐसा है तो क्या यह विश्व युद्ध का संकेत हैं!
चीन की साम्राज्यवादी नीतियां किसी से छिपी नहीं है खासकर लद्दाख क्षेत्र में वह इसलिए दबदबा बनाए रखना चाहता है कि वह भारत को आंखें तरेर सके इसलिए जब भी भारत उस इलाके में बुनियादी ढांचे का विकास करता है वह चीन की आंखों में चुभने लगता है। चीन भारतीय सीमा से सटे कुछ इलाकों में अपनी सेनाओं के लिए जगह बनाने का प्रयास भी करता है इसी कड़ी में वह पाकिस्तान और नेपाल को भी अपने पक्ष में खड़ा करने की कोशिश करता रहता है पाकिस्तान में उसने सड़क और बिजली आदि परियोजनाओं पर खासा खर्चा कर उसे अपने पक्ष में कर चुका है इसी तरह नेपाल में भी उसने विकास परियोजनाओं में निवेश करना शुरू किया है यही वजह है कि लंबे समय से भारत के करीबी दोस्त रहे नेपाल का भी रुख बदला बदला सा है मगर भारत उसके दबाव में कभी नहीं आया चाहे वह पिछले साल डोकलाम में चीन की गतिविधियां बढ़ने का मौका हो या लद्दाख में सड़क बनाने पर चीन की आपत्ति भारत ने शक्ति से अपना पक्ष कायम रखा।
चीन को भी यह भय सता रहा है कि यदि भारत को लद्दाख क्षेत्र में बुनियादी ढांचा विकसित करने से नहीं रोका गया तो भारतीय सेना की चीन के बहुत करीब तक पहुंच आसानी से हो जाएगी मगर जिन हिस्सों को लेकर वह आपत्ति उठा रहा है उनकी निशानदेही बहुत पुरानी है और इसी तरह से अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन भी नहीं है।
कोरोना वायरस के कारण चीन पूरी दुनिआ में बदनाम हो चुका है।तमाम कम्पनिया चीन से अब बाहर जा रही हैं वही अमेरिका की कंपनी बज फोटोज ने चीनी सरकार,सेना और वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के खिलाफ 20 ट्रिलियन डालर हर्जाने का मुकदमा लगा दिया है। दूसरी तरफ जर्मनी ने भी चीन को कोरोना के कारण हुए नुकसान के लिए 149 बिलियन यूरो का बिल भेजा है,जिससे चीन परेशान है। चीन विश्व समुदाय का ध्यान महामारी से हटाना चाहता है और शायद यही कारण है कि जिसकी वजह से चीन भारत के साथ एक बार फिर से सीमा विवाद में उलझना चाहता है। दूसरी तरफ इनके रवैए में आई इस आक्रामकता का कारण एक और माना जा रहा है और वह यह है कि भारतीय मौसम विभाग ने अपनी मौसम रिपोर्ट और अनुमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद आदि कश्मीर के क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया है और इन क्षेत्रों का भी मौसम बताना शुरू कर दिया है इससे चीन को अपने प्रभाव कम होने का खतरा सताने लगा है। अब समय आ गया है कि भारत को एक बार फिर से सतर्क रहने की जरूरत होगी।