भारतीय जनता पार्टी आज अपना 40 वां स्थापना दिवस मना रही है । इतने कम समय में जहाँ वह आज न सिर्फ विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है बल्कि केन्द्र में लगातार दूसरी अपने दम पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही है । इस दौरान भाजपा ने कई उतार चढ़ाव भी देखा । कई बार ऐसा भी लगा कि अब भाजपा का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा लेकिन उसके बाद भी उसका संघर्ष यात्रा जारी रहा । आइए एक नजर डालते हैं भारतीय जनता पार्टी की यात्रा पर

जन संघ का दौर

1952 में जब देश अपने पहले आम चुनाव की तैयारी कर रहा था उस समय संघ को लगा कि उनकी बात उठाने वाला भी संसद कोई होना चाहिए । संघ प्रमुख गोलवलकर के निर्देश पर जनसंघ की स्थापना हुई । बाद में जनसंघ से ही भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ है । उस समय हिन्दू महासभा जैसे दल थे पर संघ के साथ उनका तालमेल कुछ खास नहीं था ।
भारतीय जनसंघ की स्थापना नेहरु सरकार में मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था , उनकी छवि एक हिन्दू वादी नेता के रूप में मशहूर थी । श्यामा प्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध अवस्था में मौत के बाद पार्टी की जिम्मेदारी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कंधों पर आ गई । उस समय गैर कांग्रेसी दलों के लिए जनता के बीच कोई खास लोकप्रियता नहीं थी । पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मदद से भारतीय जनसंघ ने धीरे – धीरे अपना विस्तार किया ।
विरोधी पार्टियाँ उस दौर में जनसंघ का उपहास उड़ाने के लिए एक नारा लगाती थी ‘जनसंघ के दीप में तेल नहीं, सत्ता चलाना कोई खेल नहीं।’ उस समय जनता संघ का चुनाव चिह्न दीपक हुआ करता था ।
1967 पंडित दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष बने उस समय अटल बिहारी वाजपेयी उनके सहयोगी थे । लेकिन एक यात्रा के दौरान जब उत्तर प्रदेश के मुग़लसराय स्टेशन (आज के समय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन) पर संदिग्ध अवस्था में लाश मिली उसके बाद से पार्टी के सामने नेतृत्व संकट गहरा गया । अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में एक चेहरा जरूर था पर तब उनकी लोकप्रियता इतनी नहीं थी कि पूरी पार्टी वो चला सके । संघ भी उस समय बहुत मजबूत नहीं था देश के कई हिस्से अब भी उसके पहुंच से दूर थे ।

आपातकाल का दौर

राजनारायण की शिकायत पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गाँधी को चुनावों के दौरान सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग में दोषी पाया जिसके बाद उनकी उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दिया । जिससे नाराज होकर इंदिरा गाँधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया । इस दौरान विपक्षी नेताओं सहिए कांग्रेस में भी इंदिरा गांधी का विरोध करने वालों को जेल भेज दिया गया । जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी भी जेल भेज दिए गए । संघ के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पुलिस खोज-खोज कर पकड़ रही थी ।
आपातकाल समाप्त होने के बाद जय प्रकाश के आह्वान पर जनता पार्टी बनी भारतीय जनसंघ भी जिसका हिस्सा बनी । जनता पार्टी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दिया इंदिरा गांधी रायबरेली से अपना चुनाव हार गई थी । मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने वहीं विदेश मंत्रालय का जिम्मा अटल बिहारी वाजपेयी ने उठाया । उस समय अटल के सबसे विश्वस्त सहयोगी थे लाल कृष्ण आडवाणी जिन्हें मोरारजी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। पर सरकार ज्यादा दिन नहीं चल पाई । जनता पार्टी के अंदर दोहरी सदस्यता की मांग उठी और अटल-आडवाणी सहित संघ के नेताओं को संघ या सरकार में से किसी एक को चुनने का दबाव बनाया जाने लागे जिसका नतीजा हुआ कि जनता पार्टी टूट गई और मोरारजी देसाई को इस्तीफा देना पड़ा । हालांकि उस समय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे चन्द्रशेखर अपनी जीवनी ‘जीवन जैसा जिया’ में दोहरी सदस्यता की बात नकारते हुए लिखते हैं ‘आम धारणा है कि जनता पार्टी दोहरी सदस्यता के सवाल पर टूटी । वह राजनीतिक बहाना था । इसी बहाने का झगड़ा किया गया । मैंने इनमें से रास्ता निकालने का प्रयास किए । सीधे बात हुई । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं से सम्पर्क साधा । बाला साहब देवरस और रज्जू भैया से बात की। उन लोगों का रूख सकारात्मक था । जैसे ही मुझे सफलता मिलने लगी , दिल्ली में खुट-खुट तेज हो गई । सत्ता के गलियारे में भाग दौड़ बढ़ी । कई नेता अपने निजी कारणों से पार्टी तोड़ने में लगे हुए थे …. अगर उन नेताओं में एक कामचलाऊ समझ पैदा हो जाती तो जनता पार्टी को टूट से बचाया जा सकता था था । ‘ खैर जनता टूट गई और भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई ।

भाजपा का उदय

6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई । अटल बिहारी वाजपेयी पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने । उसी दिन मुंबई में पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने जन सभा को संबोधित करते हुए एक नारा दिया जो आज बहुत मशहूर हुआ ‘ अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा ,कमल खिलेगा ‘ ।
पार्टी ने जनसंघ के पुराने रास्ते को छोड़ते हुए गांधीवाद समाजवाद के रास्ते पर आगे बढ़ने का फैसला लिया । 1984 आपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो गई कांग्रेस के प्रति लोगों के मन में सहानुभूति की लहर दौड़ रही थी कांग्रेस देश भर में 400 से अधिक सीट जीतने में कामयाब हुई वहीं भाजपा को मात्र 2 सीट मिली । मध्य प्रदेश के ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी अपना भी चुनाव हार गए । उस समय उनके प्रतिद्वंदी थे ग्वालियर राजघराने के वारिस और भाजपा की संस्थापक विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया जो 1971 में जनसंघ के टिकट पर सांसद बन चुके थे । पार्टी की इस तरह हार के बाद अटल के नेतृत्व पर सवाल उठने शुरु हो गए । संघ के दबाव में उनकी जगह लाल कृष्ण आडवाणी को अध्यक्ष बनाया गया । अध्यक्ष आडवाणी बने और पार्टी पर संघ का नियंत्रण बना।
1987 में आडवाणी , अटल और संघ प्रमुख की बैठक में भाजपा ने तय किया कि उसे राम जन्म भूमि आंदोलन का हिस्सा बनना है । उसी समय वह सदन में संयुक्त विपक्षी दल का भी हिस्सा थी ।
इसी समय राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री और बाद में रक्षामंत्री बनाये जाने वाले वीपी सिंह ने उनपर बोफ़ोर्स घोटाले का आरोप लगाना शुरू कर दिया । 1989 में भाजपा ने जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और उसे 86 सीटों पर जीत मिली । इस सफ़लता के बाद पार्टी के अंदर आडवाणी का कद बढ़ा । भाजपा ने वीपी सिंह का समर्थन किया और वो प्रधानमंत्री बने। 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए मंडल कमीशन को लागू कर दिया । भाजपा को जैसे ही लगा की उसका जनाधार खिसक रहा है वह राममंदिर आन्दोलन की धार को तेज करने लगी । आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा के लिए निकल पड़े । उन्हे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की सरकार ने समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया । भाजपा ने आरोप लगया कि यह सबकुछ वीपी सिंह के निर्देश पर हुआ है। उसी दिन शाम को भाजपा ने राष्ट्रपति से मिलकर सरकार से समर्थन वापस लेने का पत्र दिया । वीपी सिंह की सरकार गिर । उसके बाद कांग्रेस की मदद से चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री बने लेकिन राजीव गांधी की जासूसी का आरोप लगते ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया ।
देश में फिर चुनाव हो रहा था दक्षिण में एक चुनावी जनसभा के दौरान राज़ीव गांधी की हत्या हो गई लेकिन इसके बावजूद भाजपा राम रथ पर सवार होकर 120 सीट जीतने में कामयाब हुई । केन्द्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी ।
अटल और आडवाणी के बाद अब पार्टी की कमान मुरली मनोहर जोशी के हाथों में थी । उनके नेतृत्व में भाजपा ने कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने का संकल्प लिया । दिसंबर में शुरू हुई तिरंगा यात्रा 26 जनवरी 1991 को कश्मीर के लाल चौक पर झण्डा फहराने के साथ समाप्त हुआ । इस यात्रा में नरेंद्र मोदी भी साथ थे जो उस समय भाजपा के संगठन का कार्य देख रहे थे । यही से भाजपा ने राम के राष्ट्रवाद को भी साधना शुरू कर दिया।
6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने गिरा दिया । जिसके बाद उत्तर प्रदेश ,मध्यप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की भाजपा शासित सरकारों को नरसिम्हा राव सरकार ने बर्खास्त कर दिया । राजस्थान के छोड़कर सभी जगह भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी । उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी सत्ता से बाहर हो गई । उस समय उत्तर प्रदेश में नारा लगता था ‘ मिले मुलायम काशीराम हवा में उड़ गए जय श्री राम’ ।
राव सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा और उसी समय हवाला काण्ड में आडवाणी का भी नाम आया । उन्होंने संसद सदस्यता से इस्तीफा दिया । इस समय देश भर में भाजपा का माहौल बन रहा था । लेकिन सब जानते थे कि पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाएगा ऐसे में सवाल उठा की सरकार बनाने की स्थिति में प्रधानमंत्री कौन बनेगा ?

अबकी बारी अटल बिहारी

आम चुनाव से पहले एक बार फिर भाजपा की राष्ट्रीय की बैठक मुंबई में हो रही थी । तब पार्टी के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी भाषण देते हुए एक नारा लगाया ‘ अबकी बारी अटल बिहारी’ भीड़ एक दम शांत हर एक कोई चौंक गया था । आडवाणी भी इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि अगर सरकार बनाना है तो अटल के नाम पर ही समर्थन मिलेगा ।
क्योंकि उस समय आडवाणी की छवि एक हिन्दू वादी नेता के तौर पर थी । आम चुनावों में भाजपा 161 सीट जीतने में कामयाब हुई । प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बने लेकिन बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए सरकार 13 दिन बाद गिर गई । इसके बाद डेढ़ साल तक देवगौड़ा और गुजराल बारी-बारी प्रधानमंत्री बने ।
1998 में फिर चुनाव हुए इस बार भाजपा को 182 सीट मिली वाजपेयी दोबारा प्रधानमंत्री बने । लेकिन यह भी सरकार 13 महीने ही चल सकी । शरद पवार उस दौर को याद करते हुए अपनी जीवनी ‘अपनी शर्तों पर ‘ में लिखते हैं ‘ अप्रैल 1998 में जब ए.आई.ए.डी.एम.के. पार्टी के सुप्रीमों जय ललिता प्रधानमंत्री से कुछ मांगें पूरी करने को कहा परंतु वाजपेयी ने इनचागकर दिया । जिसके बाद उनकी पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया । ‘ इस सब के पीछे आज भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी को माना जाता है । उन्होंने ने ही जयललिता और सोनिया गांधी की मीटिंग करवाया था ।
सदन में बहुमत परिक्षण में वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई । शरद पवार अपनी और मायावती के बीच बातचीत को लिखते हैं ‘ मैने उनके ऊपर यह प्रभाव डाला कि यदि वह वाजपेयी सरकार का खिलाफ मतदान करेंगी, तो उनको इसका लाभ उत्तर प्रदेश में मिलेगा । तथास्तु ।’
सरकार भले ही गिर गई थी लेकिन पोखरण परिक्षण और कारगिल युद्ध के बाद वाजपेयी की छवि एक मजबूत नेता के तौर पर बनी । 1999 के आम चुनाव भाजपा को 182 सीट ही मिली लेकिन एनडीए का कुनबा इतना बड़ा हो गया था कि उसने 272 आंकड़े को लेकर पार कर दिया । सरकार ने फिर आराम से चली
2002 के गुज़रात फिर 2003 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा की सरकार बनी पार्टी को लगा यह सही समय है चुनाव करवाने का । वाजपेयी सरकार ने छ महीने पहले ही चुनाव करवाने का फैसला लिया लेकिन भाजपा चुनाव हार गई । कई राजनितिक विश्लेषकों का कहना है कि संघ वाजपेयी से नाराज था जिसके कारण उसने भाजपा के प्रचार नहीं किया । भाजपा उस चुनाव में 132 सीट ही जीत पाई कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने । वाजपेयी का स्वास्थ्य खराब रहने लगा जनता को सम्बोधित करते हुए कहा ‘ न टायर ,न रिटायर आडवाणी जी के नेतृत्व में विजय की ओर प्रस्थान ।’

जिन्ना प्रकरण में घिरे आडवाणी

लाल कृष्ण आडवाणी एक बार फिर पार्टी के अध्यक्ष थे । अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान उन्होंने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को सेकलुर नेता क्या कहा पार्टी उनके खिलाफ खड़ी हो गई । देश लौटने के बाद पार्टी की कमान राजनाथ सिंह को सौंप दी गई । 2008 में भाजपा कर्नाटक में सरकार बनाने में कामयाब हुई उसी साल मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ में भी उसकी सरकार बनी लेकिन राजस्थान में वह चुनाव हार गई ।
2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा । पार्टी की करारी हार हुई । वह मात्र के 112 सीट जीतने में कामयाब हुई । इस बार लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज बनी वहीं राज्यसभा में यह जिम्मेदारी अरूण जेटली को मिली । यह आडवाणी के लिए संकेत था कि अब उनका समय पूरा हो चुका है । वहीं संघ की भी कमान अब मोहन भागवत के हाथों में आ चुकी थी ।

मोदी युग की शुरुआत

2012 में गुजरात चुनाव जितने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी केन्द्रीय टीम पर दबाव बनाना शुरू कर दिया । पार्टी की कमान नीतिन गडकरी के हाथों में थी और और उनके दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनने का रास्ता भी साफ था लेकिन उसी समय उनकी कंपनी ‘पूर्ति ‘ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और पार्टी की जिम्मेदारी एक बार फिर राजनाथ के हाथों में आ गई । गोवा में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में नरेन्द्र मोदी को प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन बाद में उन्हे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया । जिसके बाद आडवाणी ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया ।
मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने धुआंधार प्रचार किया । कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप झेल रही थी । अन्ना का भी जन लोकपाल आंदोलन पूरे उफान पर था । इन सबका फायदा भाजपा को मिला और वह अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुई । जिसके बाद कई प्रदेशों में भी उसे बड़ी जीत मिली ।

संघ के साथ सामंजस्य

भाजपा को अगर मनुष्य कहा जाए तो संघ उसकी परछाई है जिससे अलग करके उसको नहीं देखा जा सकता । पार्टी में दूसरा सबसे मजबूत पद संगठन महामंत्री आज भी संघ का ही व्यक्ति बनता है । अधिकत्तर संगठन मंत्री भी संघ ही नियुक्त करता है । भाजपा और संघ के बीच सामंजस्य बना रहे इसके लिए भाजपा और संघ के पदाधिकारी समय-समय पर समन्वय बैठक भी करते रहतें हैं ।
मुझे याद है कि 2019 फरवरी में इलाहाबाद में कुंभ मेला चल रहा था । मोहन भागवत भी उसमें आए हुए थे अचानक जानकारी हुई कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आ रहें है। वो आए और उनकी बैठक संघ प्रमुख के हाथ हुई और फिर उसके बाद वापस चले गए ।
आज भी जब भाजपा के उम्मीदवारों की सूची तय होती है तो संघ से चर्चा जरूर होती है । यहां तक की संघ से भी उम्मीदवारों के नाम जाते है ।
चुनाव के समय संघ के स्वयंसेवक भाजपा के लिए प्रचार करते हैं । भाजपा शासित प्रदेशों के अधिकत्तर मुख्यमंत्री या तो संघ में रह चुके है या फिर विद्यार्थी परिषद जैसे उसके सहयोगी संगठनों में ।

विचारधारा आधारित पार्टी

भाजपा अपनी विचारधारा को लेकर बहुत स्पष्ट है । वह उससे कभी समझौता नहीं करती । चाहे राम मंदिर का मुद्दा रहा हो या फिर धारा 370 जैसा संवेदनशील मुद्दा पार्टी हमेशा से ही इन पर मुखर रही है । उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के बाद जब सबको लग रहा था पार्टी किसी ऐसे नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी जो विकास की बात करे । लेकिन योगी आदित्यनाथ के शपथ के बाद एक बार फिर साफ हो गया कि वह अपने एजेंड और विचारधारा से समझौता नहीं करेगी । कई राजनितिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा कांग्रेस जैसी व्यक्ति केन्द्रित पार्टी हो गई है । लेकिन अगर भाजपा का इतिहास देखें तो हमेशा से ही यहा जोड़ियां बनती थी । जनसंघ के समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय, बाद में अटल-आडवाणी अब मोदी शाम उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहें हैं । हालांकि भाजपा में आज कल दूसरे पार्टियों के कई लोग शामिल है जिसके कारण उनका काडर हाशिये पर चला गया है जो आने वाले समय में बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

दक्षिण का दुर्ग अब भी बड़ी चुनौती

भाजपा दोबारा सत्ता में है । पिछली बार से ज्यादा इस बार उसको सीटें मिली है ऐसे में उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं के मन में दक्षिण भारत में जीत को लेकर उम्मीद बंधी है । जब भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह से यह पूछा जाता कि क्या यह भाजपा का स्वर्णिम युग है वो कहते ‘जब तक बंगाल ,ओडिशा और केरल में हमारी सरकार नहीं बन जाती तब तक हमारा स्वर्णिम युग नहीं आएगा ।’ केरल के विधानसभा चुनावों में भले ही भाजपा एक ही सीट जीत पाई हो पर 15 प्रतिशत वोट के साथ वह काफी उत्साहित है । वहीं एक समय में बीजेडी के साथ ओडिशा में सरकार चलाने वाली भाजपा इस उम्मीद में है कि जिस दिन वहां के लोग नवीन पटनायक का विकल्प खोजेंगे उन्हें भाजपा दिखे । इसीलिए धर्मेन्द्र प्रधान जैसे नेताओं का आगे किया जा रहा है । वहीं बंगाल के लोकसभा चुनाव परिणामों से भाजपा काफी उत्साहित है और उसे उम्मीद है कि वह त्रिपुरा जैसा कारनामा बंगाल में भी दोहरा सकती है । इस समय देश भर में हर चार विधायक में से एक विधायक भाजपा का है । जो दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में भाजपा का स्थान क्या है ।।

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