अन्ना आंदोलन के वक्त जब अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वो राजनीतिक दल बनाएंगे और नई विधा की राजनीति करेंगे तो लोगों के मन में एक आशा और अरविंद केजरीवाल के लिए विश्वास जागा था ।पर इतने सालों के बाद यह आशा हताशा की गिरफ्त में आ चुका है ।पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल ने कहा की अब दिल्ली सरकार ने तय किया है कि वो महिलाओं को दिल्ली मेट्रो और बसों में मुफ्त यात्रा की सहूलियत प्रदान करेगी,उन्होंने पत्रकारों को बताया कि अधिकारियों को निर्देश दिया जा चुका है की एक हफ्ते में मौसदा प्रस्तुत करें और बताएं इसे कब से लागू किया जा सकेगा ।अरविंद केजरीवाल की इस घोषणा के बाद एक बार फिर बहस छिड़ गई है कि क्या आज के दौर में इस तरह की घोषणा करना हमारे अर्थव्यवस्था के लिए सही है?

दिल्ली मेट्रो में मुफ्त किराये का इतिहास!

हम सभी जानते हैं कि दिल्ली मेट्रो में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी दिल्ली सरकार और 50 प्रतिशत हिस्सेदारी केन्द्र सरकार की है ।इसका निर्माण जापान सरकार द्वारा दिए गए सस्ते लोन से हुआ है और अभी कुछ वर्षों से ही जापान सरकार को पैसा वापस मिलने लगा है ।
सबसे पहली बार दिल्ली मेट्रो में मुफ्त किराये की बात तब उठी जब इसका परिचालन शुरू हुआ तब की तत्कालिक दिल्ली सरकार चाहती थी की उसके विधायकों को दिल्ली मेट्रो की मुफ्त सेवा मिले हालांकि डीएमआरसी इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हुई और समाधान के रूप में स्मार्ट कार्ड का विकल्प आया जिसमें पैसा दिल्ली सरकार भरवाएगी।
दिल्ली मेट्रो का परिचालन करनें वाली डीएमआरसी मुफ्त सेवा की हिमायती कभी नहीं रही है ।हालांकि जब पिछले दिनों दिल्ली मेट्रो का किराया बढाया गया तब डीएमआरसी ने केंद्र सरकार से कहा कि अगर वह चाहे तो बुजुर्गों और कुछ विशेष लोगो को किराये में रियायत दे सकता है ।
वर्तमान समय में दिल्ली मेट्रो के कर्मचारियों और सीआईएसएफ (जो जवान दिल्ली मेट्रो की सुरक्षा में तैनात हैं) के जवानों को मुफ्त की यात्रा की सहूलियत मिलती है ।

मुफ्त की यात्रा में क्या आएंगी मुसीबत?

इस घोषणा की कुछ व्यवहारिक समस्या भी है जिससे दिल्ली सरकार और उनके अधिकारियों को दो चार होना पड़ेगा।सबसे बड़ी समस्या है इसे आनन -फानन में लागू करना,अधिकारियों के पास समय कम है ।इतनी बड़ी व्यवस्था को लागू करने के लिए एक बेहतर रोड मैप की जरूरत होती है जिसके लिए पर्याप्त समय नहीं है ।दूसरी सबसे बड़ी समस्या है दिल्ली मेट्रो का घाटे में होना ,वर्तमान समय में दिल्ली मेट्रो 3000 करोड़ के घाटे में हैं पिछले दिनों किराया बढ़ाने के बावजूद भी इस घाटे को बहुत कम नहीं किया जा सका ।इस योजना के लागू होने के बाद दिल्ली सरकार के खजाने पर अतिरिक्त 1200 करोड़ का बोझ बढ़ेगा और इसका समाधान खोजना दिल्ली सरकार के लिए आसान नहीं रहने वाला है ।कुछ अन्य समस्याओं की बात करूँ तो आपको ध्यान होगा की जब दिल्ली मेट्रो शुरू हुआ तब 4 से 6 डिब्बे ही रहते थे बाद में यात्रियों के बढने से डिब्बे भी बढ़े पर डीएमआरसी ने कह दिया है कि अगर 10 डिब्बे हुए तो कई जगह हमें प्लेटफॉर्म बढ़ाने होंगे ऐसी स्थिति में दिल्ली मेट्रो पर अतिरिक्त खर्चा आएगा ।और यह तय है कि इस स्कीम के बाद दिल्ली मेट्रो में यात्रा करने वालों की संख्या में अभूतपूर्व बढोत्तरी देखने को मिल सकती है और विशेषज्ञ बताते हैं कि दिल्ली मेट्रो अभी इसके लिए ठीक से तैयार नहीं है ।इसके साथ ही दिल्ली मेट्रो की पटरियां इस समय मरम्मत के साथ-साथ बदलाव की जरूरत महसूस कर रही है ।
एक और बड़ी समस्या जिसके विषय में सबका ध्यान नहीं जा रहा है वह यह है कि दिल्ली सरकार की यह योजना दिल्ली के लिए है लेकिन मेट्रो में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के एनसीआर के इलाकों में भी चलती है ऐसे में उनके लिए क्या व्यवस्था होगी यह बड़ा सवाल है?एनसीआर को भी जोड़ लें तो आकड़ा 5 करोड़ के आस पास रहेगा यह मामूली संख्या नहीं है ।
अब बात दिल्ली के बसों की ।दिल्ली में 3000 से 4000 के बीच सरकारी बसें हैं वो भी काफी समय की ।वर्तमान समय में करीब 11000 बसों की आवश्यकता पड़ने वाली है इस कमी को कैसे पूरा करेगी दिल्ली सरकार ,यह बड़ा सवाल है।

इस तरह की घोषणा आखिर क्यूँ?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो हाल ही में आए लोकसभा के नतीजे आम आदमी पार्टी के लिए चिन्ता का सबब बनी है दिल्ली में एक बार जिस तरह से आम आदमी पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ उससे अरविंद केजरीवाल और उनके नेताओं के मन में यह डर बैठ गया है कि कहीं दिल्ली की सत्ता उनके हाथ से न खिसक जाए ।अगले आठ महीने के अंदर दिल्ली विधानसभा का चुनाव होना है और विश्लेषकों की मानें तो उनका कहना है कि ‘चुनाव आयोग महाराष्ट्र,हरियाणा और झारखंड के साथ -साथ दिल्ली का भी चुनाव करवा सकता है ऐसी स्थिति में अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के पास समय कम बचेगा ।2015 में मुफ्त बिज़ली-पानी का नारा देकर 70 में 67 सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी इस बार फिर वही कारनामा दोहराना चाह रही है इसलिए वह इस तरह के लोकलुभावन घोषणाएं कर रही ।लोकसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने दिल्ली में चुनाव लड़ा उससे तो एक बात साफ हो गया कि बीजेपी के साथ -साथ कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी के लिए चिन्ता का सबब है ।


2014 में भी भाजपा ने सातों लोकसभा सीट पर जीत दर्ज किया था लेकिन विधानसभा चुनावों में उसे मुंह की खानी पड़ी तब भाजपा का प्राप्त मत प्रतिशत था 46 प्रतिशत वही आम आदमी पार्टी का मत प्रतिशत था 33 प्रतिशत यानी 13 प्रतिशत का अंतर और हर एक लोकसभा सीट पर जहाँ भाजपा पहले नम्बर पर थी वहीं आम आदमी पार्टी दूसरे नम्बर पर रही ,लेकिन इस बार का लोकसभा परिणाम आम आदमी पार्टी को झकझोर देने वाला रहा भाजपा प्रत्याशियों ने एक बार फिर से सातों सीट पर जीत दर्ज किया लेकिन इसबार मत प्रतिशत का अंतर बढ गया जहाँ भाजपा को करीब 58 प्रतिशत मत मिले तो वही आम आदमी पार्टी को महज 18 प्रतिशत मत मिला।इसबार मत प्रतिशत का अंतर 40 प्रतिशत रहा यह बड़ी खाई है इसे समाप्त करने के लिए लिए ही अरविंद केजरीवाल ने यह दांव खेला ।एक बात और जो मैं पहले ही रेखांकित कर चुका हूँ वह यह है कि इस बार कई लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस दूसरे नम्बर पर रही ऐसी स्थिति में आम आदमी पार्टी में इसबात का पर मंथन चला है कि कैसे इन दोनों राजनीतिक दलों को रोका जाए ।और उसी मंथन का नतीजा है मुफ्त का जिन्न ।

महिला सुरक्षा के दावों में कितना दम ?

पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि वो पूरे दिल्ली में सीसीटीवी लगवाएंगे पर अभी तक कितने जगह सीसीटीवी लगा है इस बात से पूरी दिल्ली अच्छी तरह परिचित हैं ।इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर महिलाएं दिल्ली मेट्रो और बसों में यात्रा करेंगी तो ज्यादा सुरक्षित रहेंगी पर व्यवहारिक समस्या यह है कि ज्यादातर महिलाएं काम करती है और वो अपने पति के साथ ही आती-जाती है ऐसी स्थिति में सवाल यह बनता है कि क्या ज्यादातर महिलाएं मेट्रो का प्रयोग करेंगी भी या नहीं?
मेट्रो स्टेशन और महिलाओं के घर के बीच एक बार फिर उनकी सुरक्षा का प्रश्न उठेगा ।ऐसी स्थिति में दिल्ली सरकार को चाहिए यह था कि वो या तो पूरे दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे लगवाएं या फिर दिल्ली सरकार की बसों को और मेट्रो को इस तरह से जोड़ा जाए कि महिलाएं जैसे घर से निकले उनको तुरंत बस मिल जाए और फिर वो बस उनको मेट्रो स्टेशन छोड़ दे ।पर दिल्ली सरकार इस तरह का कोई ठोस काम करने नहीं जा रही हैं हाल फिलहाल की गतिविधियों से यही समझ में आ रहा है ।

मुफ्त की राजनीति का भूत और भविष्य?

ऐसा नहीं है कि अरविंद केजरीवाल ने यह दांव पहली बार खेला है 2015 में भी बिजली बिल हाफ पानी माफ का नारा देकर सत्ता में आए थे ।इस बार फिर उन्होंने यही दांव खेला है लेकिन कहीं इस बार यह दांव उल्टा न पड़ जाएं ।दो उदाहरणो से हम समझ सकते हैं पहला उदाहरण है तमिलनाडु का जहाँ अम्मा कैंटिन में 5 रूपए में भर पेट भोजन मिलता है पर इस बार के लोकसभा चुनाव में डीएमके की जबर्दस्त वापसी हुई है वही मुफ्त की राजनीति परोसने वाली जयललिता की पार्टी का सफाया हो गया है ।दूसरा उदाहरण छत्तीसगढ़ है जहाँ पूर्व की भाजपा सरकार में एक रूपये में चावल दिया जाता रहा है इस पीडीएस स्कीम ढिंढोरा रमन सरकार ने खूब पीटा पर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने लगभग दो तिहाई सीट से जीत दर्ज किया ।
पिछले महीने समाप्त हुए लोकसभा चुनाव में भी किसान सम्मान निधि योजना की चर्चा न के बराबर हुई ।ये सभी उदाहरण एक संकेत है कि भारतीय जनमानस अब मुफ्त की राजनीति को बढावा नहीं देना चाहता है ।

गैस सब्सिडी को जिस तरह से लोगों ने छोड़ा वह काबिले तारीफ है ऐसे में एक बार फिर सवाल उठता है कि जब लोग रेलवे,गैस सिलेंडर आदि जगहों की छोड़ रहें हैं उस समय इस तरह का चुनावी लॉलीपॉप देना किस हद तक वाजिब है ?
अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार को चाहिए तो यह था कि वो जनता को बताएं की उन्होंने उन सत्तर वादों में से कितने वादों को पूरा किया पर वो इन सब के बजाए मुफ्त का झुनझुना लेकर घूम रहें हैं ।