विनेश चंदेल
भारतीय उपमहाद्वीप की प्रगति के बीच विकास से कोसो दूर है मध्य प्रदेश का विंध्य क्षेत्र। उमरिया, अन्नूपुर, शहडोल, सतना, सीधी, सिंगरौली, रीवा जिलों को मिलाकर बने इस भोगौलिक इलाके की कुल आबादी लगभग 93.5 लाख है। यहां विशेष तौर पर आदिवासियों / अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या लगभग 24.6 लाख है, जो कि कुल आबादी का 26.33 प्रतिशत है। औपनिवेशिक काल में विंध्य क्षेत्र की पहचान यहां की समृद्ध संस्कृति और अद्वितीय इतिहास से रही है। हालांकि, भारत की आजादी के बाद देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए विंध्य क्षेत्र को मध्य प्रदेश राज्य के साथ एकीकृत किया गया। देश की प्रगति की दिशा में एक कदम के तौर पर किया गया यह विलय दुर्भाग्य से यहां के लोगों के लिए आर्थिक विकास के बाधक के तौर पर साबित हुआ।
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो विंध्य किसी अधूरे वादों की विरासत के समान प्रतीत होता है। आजादी के बाद शासन करने वाली पार्टियां, चाहे वो कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने विंध्य के लिए विशेष प्रावधानों के नारे को बुलंद तो किया, लेकिन यहां कि वास्तविकता किसी विशेष राज्य के दर्जे के लिए मांग कर रहे राज्य के समान ही बनी रही। विंध्य के विकास के लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति किसी दल ने नहीं दिखाई, इसका नतीजा ये रहा कि उनके खोखले वादें महज राजनीतिक बयानबाजियों तक ही सीमित रह गए। इस कारण विंध्य क्षेत्र के लोगों को विकास से दूर लगातार संघर्ष करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
वर्तमान तस्वीर: निराशजनक आंकड़ें शब्दों से ज्यादा प्रभावशाली होते हैं
क्षेत्र में विकास की संभावनाओं के बाबजूद कड़वी सच्चाई यह है कि विंध्य के लोग मध्य प्रदेश के बाकी हिस्सों में रहने वाले लोगों की तुलना में 17 प्रतिशत कम कमाते हैं। एक भयावह आंकड़ा ये भी है कि यहां की 43.79 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीबी की दंश झेल रही है, जो कि गंभीर स्थिति को रेखांकित करता है।
क्षेत्र का सामाजिक सूचकांक यहां के लोगों के आर्थिक संघर्षों की कहानी बयां करता है। यहां मातृ मृत्यु दर चिंताजनक रूप से अधिक है और शिशु के जीवित रहने की दर भी निराशजनक रूप से काफी कम है। कृषि क्षेत्र होने के बाबजूद यहां सिंचित भूमि मध्य प्रदेश के बाकी हिस्सों की तुलना में काफी कम है। विंध्य की उपेक्षा केवल कृषि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा का क्षेत्र भी विद्यार्थियों, खासकर लड़कियों का माध्यमिक और उच्च शिक्षा के बीच में ही स्कूल छोड़ देना, कम शैक्षणिक संस्थान और शिक्षकों की भारी कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। यह व्यवस्थागत उपेक्षा इस इलाके के विकास को अवरूद्ध करती है और गरीबी के कुचक्र को जारी रखती है।
विशेष दर्जे का मुद्दा: आखिर क्यों विंध्य क्षेत्र को विशेष श्रेणी का दर्जा मिले?
विंध्य विकास प्राधिकरण जैसे संस्थाओं की विफलता से ये स्पष्ट होता है कि अगर यहां परिवर्तन के लिए कई महत्वपूर्ण और संस्थागत बदलावों की जरूरत है। मौजूदा व्यवस्था के रहते हुए केवल समायोजन से किसी बदलाव की अपेक्षा करना गलत है। विंध्य में एक ऐसे परिवर्तन की जरूरत है जो राज्य और देश के साथ रिश्तों को बदल सके। अब सवाल यह है कि यह परिवर्तन किस रूप में होना चाहिए? विंध्य क्षेत्र के लिए विशेष दर्जे का मामला तब अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम इस क्षेत्र से जुड़े तथ्यों और आंकड़ों को गहराई से देखते हैं।
आंकड़ों के आधार पर विंध्य को विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने का पूरा अधिकार है। गाडगिल आयोग और रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट में प्रकाशित सूचकांक विंध्य के पिछड़ेपन को स्पष्ट तौर पर स्थापित करते हैं। लेकिन विंध्य की स्थिति की गंभीरता को सही मायने में समझने के लिए हमें हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र से तुलना करनी होगी। हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के पिछड़ेपन को देखते हुए 98वें संविधान संशोधन के तहत 2012 में इस क्षेत्र के 6 जिलों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है। जब विंध्य की तुलना कर्नाटक-हैदराबाद के साथ की जाती है तो असमानताएं और स्पष्ट हो जाती है।
बहुआयामी गरीबी: विंध्य का बहुआयामी गरीबी सूचकांक लगभग 42.68 प्रतिशत है, जो हैदराबाद-कर्नाटक के 26 प्रतिशत से काफी अधिक है। ये स्पष्ट अंतर उस गरीबी को रेखांकित करता है जो विंध्य में गहरी जड़ें जमा चुका है, जिस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
शहरीकरण: विंध्य का शहरीकरण दर सिर्फ 18.44 प्रतिशत है, इसके मुकाबले हैदराबाद-कर्नाटक का शहरीकरण दर 28.05 प्रतिशत है। इस आंकड़े से विंध्य में शहरी विकास और बुनियादी ढांचे की भारी कमी का पता चलता है।
बैंकिंग सेवाएं: विंध्य क्षेत्र में प्रति एक लाख आबादी पर केवल 7.14 बैंक हैं, इसके मुकाबले हैदराबाद-कर्नाटक में ये आंकड़ा 7.85 है। हालांकि देखने में ये अंतर कम लगता है, लेकिन थोड़ी भी वित्तीय असमानता स्थानीय अर्थव्यवस्था और विकास को बहुत प्रभावित कर सकता है।
स्वास्थ्य सूचकांक: विंध्य में शिशु मृत्यु दर चिंताजनक रूप से 25.1 है, जो हैदराबाद-कर्नाटक के 5.74 से काफी अधिक है। ये बताता है कि क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं में कितनी कमियां हैं।
जनसंख्या गतिकी: हैदराबाद-कर्नाटक की 12.75 प्रतिशत के मुकाबले विंध्य में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 29.37 प्रतिशत है। इसके अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति की आबादी को मिलाने पर यह आंकड़ा विंध्य में 44.69 प्रतिशत तक पहुंच जाता है, जबकि हैदराबाद-कर्नाटक में ये आंकड़ा 35.03 प्रतिशत है। ये जनसांख्यिकीय आंकड़ें बताते हैं कि इन समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
शिक्षा: विंध्य में महिला साक्षरता दर बेहद कम, 29.78 प्रतिशत है, जो कि हैदराबाद कर्नाटक के महिला साक्षरता दर, 53.75 प्रतिशत का लगभग आधा है। महिलाओं की शिक्षा दर में इतना बड़ा अंतर विंध्य में शैक्षणिक उपेक्षा की गंभीरता को दर्शाता है।
पर्यावरण और आजीविका: हैदराबाद-कर्नाटक में केवल 2.70 प्रतिशत वन क्षेत्र के मुकाबले विंध्य में 32.48 प्रतिशत का महत्वपूर्ण वन क्षेत्र होने के बाबजूद यहां के लोगों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा विंध्य में आबादी का एक बड़ा वर्ग 46.59 प्रतिशत केवल कृषि पर निर्भर है, जो आय के एक ही स्रोत पर विंध्य की निर्भरता को उजागर करता है।
इन असमानताओं को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि हैदराबाद-कर्नाटक के सामने चुनौतियां हैं, लेकिन विंध्य की स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर है। विंध्य को विशेष श्रेणी के दर्जे की दलील केवल समानता हासिल करने के लिए नहीं है, जबकि ये व्यवस्थागत पिछड़ेपन और उपेक्षा को दूर करने के बारे में है, जिसने पीढ़ियों से विंध्य क्षेत्र को परेशान किया है।
विशेष संवैधानिक दर्जे से होगा विंध्य क्षेत्र का कायाकल्प
संविधान के अनुच्छेद 371 से 371 (ज) तक में अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास के लिए विशेष श्रेणी के प्रावधान किए गए हैं। मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के लिए भी इस प्रकार के संवैधानिक प्रावधानों को लागू करना आगे का रास्ता हो सकता है। इस आलेख के माध्यम से राज्यों के भीतर क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए कई प्रावधानों का जिक्र किया गया है, इन प्रावधानों को इस प्रकार लागू किया जा सकता है
1. विकास के लिए पुनर्गठन: पहले कदम के तौर पर अक्षम विंध्य विकास प्राधिकरण को भंग करना होना चाहिए। इसके जगह पर विकास को गति देने के लिए संवैधानिक दर्जा प्राप्त एक नया विकास बोर्ड गठित करने की जरूरत है।
2. विशिष्ट निधि का आवंटन: विंध्य के बुनियादी ढांचे और कृषि क्षेत्र में उन्नति के लिए एक राज्य के बजट में अलग से एक धनराशि निर्धारित की जानी चाहिए।
3. नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण: विंध्य के युवाओं को सही मायने में सशक्त और उनके समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था को लागू करना चाहिए। छात्रों को शैक्षणिक और व्यवसायिक दोनों शिक्षण संस्थाओं में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इसके अलावा राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण, प्रशासनिक सेवाओं में विंध्य के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करेगा, जिससे इस इलाके की चुनौतियों और जरूरतों को प्रभावी ढंग से उठाया जा सकेगा। ऐसे प्रावधान न केवल युवाओं को तत्काल अवसर प्रदान करेंगे बल्कि क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक विकास की नींव भी रखेंगे।
4. राजकोषीय प्रोत्साहन: विंध्य में निवेश और व्यवसायों को आकर्षित करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से सहायता और ‘कर’ प्रोत्साहन की आवश्यकता है। उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, निगम, आय और अन्य कारों से छूट की संभावनाओं को भी तलाशा जाना चाहिए।
विंध्य के मामले को ‘पक्षपात की याचिका’ के तौर पर नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक न्याय की दिशा में एक ठोस कदम के तौर पर देखने की जरूरत है। यहां की आबादी को गरीबी और पिछड़ेपन के स्थाई कुचक्र के मुक्त कराना और उन्हें समृद्धि की ओर ले जाना हमारी अनिवार्यता है, जिससे वे लंबे समय से वे वंचित हैं। चुनाव के समय वादे करने, एकाध योजनाओं को लागू कर देने और कुछ विकास परियोजनाओं को हरी झंडी दिखा देने मात्र से विंध्य का भला नहीं होने वाला है। विंध्य की बीमारी का इलाज चुनावी मरहम-पट्टी लगाने से नहीं होगा, क्योंकि विंध्य को स्थाई ऑपरेशन की जरूरत है।
बयानबाजी का समय अब बीत चुका है, अब निश्चित कदम उठाने का समय आ गया है। हमें सहानुभूति के दायरे से आगे बढ़ कर जिम्मेदारी के दायरे को अपनाना चाहिए और विंध्य को विशेष क्षेत्र का दर्जा देना चाहिए। जैसे-जैसे हम प्रगति के अपने सामूहिक प्रयास में आगे बढ़ रहे हैं, हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि कोई क्षेत्र, नागरिक इसमें पीछे न छूट जाए। विंध्य क्षेत्र के 30 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने इस बार 25 सीटों पर जीत हासिल की है। 2018 की तुलना में भाजपा को यहां 1 सीट अधिक मिली है। विंध्य के लोगों ने भाजपा के वादों पर फिर से विश्वास जताया है और पार्टी को भरपूर समर्थन भी दिया है। उम्मीद है कि इस बार भाजपा सरकार विंध्य क्षेत्र के लोगों की जिंदगियों को और बेहतर करने और उनके लिए विकास के नए दरवाजे खोलने का पूरा प्रयास करेगी।
इस आर्टिकल के लेखक विनेश चंदेल सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और देश की जानी-मानी पॉलिटिकल कंसल्टेंसी I-PAC के डायरेक्टर हैं। वो मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के रहने वाले हैं।