आज 5 सितंबर को पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या की तीसरी बरसी है। आज देश भर में एडवा, ऐपवा, अनहद, NAPM सहित 400 से ज्यादा महिला संगठन, LGBTQIA समुदाय और मानव अधिकार संगठनों ने ‘हम अगर उठे नहीं तो… ’ आंदोलन का आह्वान किया है।
इस आंदोलन की खास बात है कि इस महामारी के दौर में सोशल मीडिया के जरिए अलग-अलग तबकों को एकजुट लाया गया। इस अभियान में ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार, सतर्क नागरिक संगठन, NFIW, भारतीय ईसाई महिला आंदोलन जैसे लगभग 400 से अधिक संगठन एकजुट हुए हैं।
आवाज बुलंद करना है

सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र कुमार से इस कैंपेन को लेकर बात की उन्होंने बताया कि “कोविड-19 के कारण हम बड़ी संख्या में सड़कों पर नहीं आ सकते इसलिए अपने- अपने मुद्दों को लेकर वीडियो बना रहे है लोग और सोशल मीडिया पर सीधा प्रसारण किया जा रहा है इसके साथ ही पोस्टर, कलाकृतियां और पेंटिंग भी बनाई जा रही हैं।”
राजेंद्र कुमार बताते हैं कि”हम अगर उठे नहीं तो… अभियान का आरंभ लोगों को जोड़ने के लिए और अपनी मांगों को उठाने के लिए चलाया गया है। इसके साथ ही इस अभियान का उद्देश्य भारत के लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर हो रहे हम लोगों के खिलाफ आवाज बुलंद करना है।”
अंजलि भारद्वाज- सरकार बेपर्दा हुई

सतर्क नागरिक संगठन की संस्थापक सदस्य और लोगों की सूचना के अधिकार के अभियान की सह समन्वयक अंजलि भारद्वाज ने कहा कि भारत के लोकतंत्र और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों पर “अप्रत्याशित हमला”हुआ है। उन्होंने कहा, कोविड-19 संकट का सामना जिस प्रकार से किया गया है उससे गरीब विरोधी सरकार बेपर्दा हुई है।जिस प्रकार लॉकडाउन की घोषणा की गई और किसानों प्रवासी श्रमिकों और यौन कर्मियों को दिक्कत का सामना करना पड़ा और जिस तरह उनके रोजगार छीन गए, सरकार ने इनकी समस्या को सुलझाने के लिए कुछ नहीं किया।
इस आंदोलन में अलग-अलग सोशल मीडिया के प्लेटफार्म इंस्टाग्राम, फेसबुक, टि्वटर आदि के जरिए लाइव आकर लोगों तक अपनी मांगों को पहुंचाया जा रहा है।