राहुल मिश्रा

COVID -19 के कारण विश्व भर की आर्थिक गतिविधियों में जो गिरावट आई है उसका सीधा प्रभाव तेल की कीमतों में दिख रहा है पर क्या भारत आदि देश इन गिरावटों का फयदा उठा पाएंगे यह आज का सबसे बड़ा सवाल है। आम तौर पर ऐसा देखा जाता है की जब भी तेल की कीमतें कम होती है तो भारत को लाभ होता है क्योंकी हमारी कुल खपत का 85 फीसदी तेल आयत किया जाता है। लेकिन क्या इस बार भी ऐसा होगा,लगता तो नहीं? कोरोना महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में जो गिरावट दर्ज की गई है उसकी वजह से तेल की मांग पर काफी बुरा असर पड़ा है,जनवरी के अंत तक जिस कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमत 57 डालर प्रति बैरल हुआ करता था वो अब मात्र 20 डालर प्रति बैरल रह गया है। ऐसे में तेल निर्यातक देशो के द्वारा उत्पादन में 10 फीसदी की कटौती का जो प्रस्ताव रखा गया था वह भी बहुत प्रभावी नहीं दिख रहा है।

भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

जैसे की हम सभी जानते है की इस समय कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए देश में प्रधानमंत्री जी के द्वारा लाक डाउन लगाया गया है जिसका सीधा असर हमारे देश की आर्थिक गतिविधियों पर पड़ रहा है और शायद यह पहला अवसर होगा जब तेल की कीमतों में गिरावट का लाभ भारत नहीं ले सकेगा,आसान भाषा में कहे तो कोरोना वायरस का हमारी अर्थव्यवस्था इतना बुरा असर हुआ है की तेल की कीमतों में गिरावट जो आमतौर पर ख़ुशी की वजह बनती थी, वह सरकार के सामने आज एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी है,लेकिन हम यह भी नहीं कह सकते है की तेल की घरेलू खपत में मंदी की शुरुआत अचानक हुई है इसकी शुरुआत तो वर्ष 2017-18 से ही हो गई थी,परन्तु वर्ष 2020-21 में मंदी की गति यक़ीनन तेज रहेगी और हमारी कुल खपत की गति भी धीमी हो सकती है

इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह रह सकता है की भारत का तेल आयात बिल काफी कम रह सकता है लेकिन चालू खाते में इसका कोई बहुत बड़ा लाभ होता नहीं दिखा रहा क्योंकि देश का पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात भी 8 फीसदी घाट कर महज 43 अरब डालर रह गया है। दूसरी तरफ पेट्रोलियम उत्पाद राज्यों के लिए राजस्व का एक बहुत बड़ा स्रोत होता है जोकि उनके कुल राजस्व का लगभग 16 फीसदी के आसपास होता है, कीमतों में कमी आने के कारण इसलिए केंद्र और राज्यों के वित्त पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।

सरकार पहले ही एक नया कानून पारित कर चुकी है जिसके तहत जिसके तहत वह पेट्रोल और डीजल पर माजूदा 10 रूपये और 5 रूपये लीटर के उत्पाद शुल्क के अलावा विशेष तौर पर 8 रूपये का अतिरिक्त शुल्क लगा सकती है। क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें लगातार गिर रही है इसलिए ये अतिरिक्त शुल्क अंतिम बिक्री मूल्य में कोई खास प्रभाव नहीं डालेगा जिससे तेल रिफाइनिंग कंपनियों का अतिरिक्त मार्जिन उनके हाथ से निकल जाएगा और सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी और जिसका एक प्रभाव यह भी हो सकता है की भारत के कच्चे तेल का उत्पादन भी गिरे और चुकी हमारी भंडारण क्षमता भी सिमित है तो इसका कुछ खास लाभ जनता को नहीं मिलने वाल।

राहुल मिश्रा
(लेखक सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहें हैं)
मेल-(rahul.mishra.vns07@gmail.com)

यह लेखक के नीजी विचार हैं