कहते हैं आज़ादी आसानी से नहीं मिलती है, इसकी क़ीमत चुकानी पड़ती है। यह एक दिन में नहीं मिलती अपितु इसके लिए अनवरत कई वर्षों तक संघर्ष करना पड़ता है। भारत के इतिहास में आज का दिन ऐतिहासिक है क्योंकि आज ही के दिन 10 मई, 1857 को आजादी की पहली क्रांति हुई थी। वी० डी० सावरकर के अनुसार यह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।
इस क्रांति के होने के कई कारण थे औऱ इस क्रांति ने भारत की स्वतंत्रता यात्रा की नींव रखने का प्रयास किया। यह भी सत्य है कि इस संग्राम में हमें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी क्योंकि इसके पीछे भी कई कारण थे, जिसे आज हम सबको जानने की आवश्यकता है।
■क्रांति की असफलता के कारण-
●सीमित आंदोलन: हालांकि, बहुत कम समय में आंदोलन देश के कई हिस्सों तक पहुंच गया लेकिन देश के एक बड़े हिस्से पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। खासतौर पर दोआब क्षेत्र में इसका असर रहा। दक्षिण के प्रांतों ने इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। अहम शासकों जैसे सिंधिया, होल्कर, जोधपुर के राणा और अन्यों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया।
●प्रभावी नेतृत्व का अभाव: विद्रोह के लिए असरदार नेतृत्व का अभाव था। नाना साहेब, तांत्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई की बहादुरी में कोई शक नहीं है लेकिन वे आंदोलन को असरदार नेतृत्व नहीं दे सके। इसके अलावा विद्रोहियों में अनुभव, संगठन क्षमता व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी।विद्रोही क्रांतिकारियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था। उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा और क्या नहीं, यह भी निश्चित नहीं था। वे मात्र भावावेश एवं परिस्थितिवश आगे बढ़े जा रहे थे। सैनिक दुर्बलता का विद्रोह की असफलता में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। बहादुरशाह जफर और नाना साहब एक कुशल संगठनकर्ता अवश्य थे, पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी, जबकि अंग्रेजी सेना के पास लॉरेन्स ब्रदर्स, निकोलसन, हेवलॉक, आउट्रम एवं एडवर्ड जैसे कुशल सेनानायक थे।
●सीमित संसाधन: विद्रोहियों के पास न संख्याबल था और न पैसा। उसके उलट ब्रिटिश सेना के पास बड़ी संख्या में सैनिक, पैसा और हथियार थे जिसके बल पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे।
●मध्य वर्ग का हिस्सा नहीं लेना: 1857 ई. के इस विद्रोह के प्रति ‘शिक्षित वर्ग’ पूर्ण रूप से उदासीन रहा। व्यापारियों एवं शिक्षित वर्ग ने कलकत्ता एवं बंबई में सभाएं कर अंग्रेजों की सफलता के लिए प्रार्थना भी की थी। अगर इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता, तो निःसंदेह ही क्रांति के इस विद्रोह का परिणाम कुछ ओर ही होता।
●पूर्ण राष्ट्रीय-भावना का अभाव: उस समय राष्ट्रीय हित की अपेक्षा स्थानीय हित ज्यादा हावी था। अधिकांश प्रांत अंग्रेजो से लड़ रहे थे पर वे एकजुट नहीं थे औऱ सबके अपने-अपने व्यक्तिगत हित छिपे हुए थे।
हम जानते हैं भले ही इस क्रांति का परिणाम क्या था पर इस क्रांति से आगे आज़ादी के क्रांतिकारियों को बहुत कुछ सीखने को मिला जिसका परिणाम है कि पहली क्रांति की सौ वर्ष पूरे होने से पहले ही 15 अगस्त, 1947 को भारत देश पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गया।