आज ही के दिन 25 अप्रैल 1982 को पहली बार हुआ था रंगीन प्रसारण
यह वह दौर था जिसे दुनिया के लिए द्वितीय औद्योगिक क्रांति कहा जा रहा था और भारत के लिए तकनीक के क्षेत्र में पहली संचार क्रांति। दूरदर्शन के घर-घर में पहुचने की शुरुआत हो चुकी थी। एक नया और अनूठा संचार माध्यम जिसे देश हाथों हाथ ले रहा था। लेकिन हम जिस दूरदर्शन की बात कर रहे हैं इसका सफर इतना आसान भी नहीं था।
भारत में टेलिविज़न पहली बार परीक्षण के तौर पर नई दिल्ली से 15 सितंबर 1959 को प्रसारित हुआ था। यह इतना सीमित था कि मात्र 21 सामुदायिक टेलिविज़न सेट के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। ऑल इंडिया रेडियो के तकनीकी सलाहकारों और पेशेवरों के मदद से यह संचालित होता था। 1965 से एक घंटे के समाचार का प्रसारण प्रतिदिन होने लगा था। लेकिन आम लोगों के लिए फिर भी यह पहुँच से बाहर ही था। 1972 में इसका दायरा बढ़ाया गया और इसे एक अन्य दूसरे शहर मुंबई में लाया गया। 1975 आते–आते यह भारत के कई राज्यों में पहुँच चुका था। कोलकाता,श्रीनगर,चेन्नई,अमृतसर और लखनऊ में इसके स्टेशन स्थापित किये जा चुके थे। उस समय भारत के तकरीबन 2400 गांवों तक इसे सरकारी सहायता के साथ पहुँचा दिया गया था।
1982 में दूरदर्शन(डीडी) को डीडी नैशनल बनाया गया, यह वह वर्ष था जब भारत के बाजारों में रंगीन टेलिविज़न सेट का आगमन हो चुका था और बाजार के अनुसार तकनीक भी अपना कलेवर बदल रही थी। दूरदर्शन के रंगीन प्रसारण करने की शुरुआत की गई। इसका पहला सफल टेस्ट 25 अप्रैल 1982 को किया गया परंतु औपचारिक रूप से इसकी शुरुआत 15 अगस्त 1982 से की गई। उसी दिन से एशियन गेम्स की शुरुआत नई दिल्ली में हुई थी जिसका प्रसारण दूरदर्शन पर रंगीन चलचित्रों के माध्यम से हुआ था।
1980 का दशक भारतीय टेलीविजन का ऐतिहासिक दशक था जिसमें की हम लोग,रामायण,बुनियाद,नुक्कड़ और महाभारत जैसे ऐतिहासिक धारावाहिकों के मदद से भारत के घर-घर में संचार की यह सेवा पहुँच चुकी थी। इन सभी ने भारतीय संचार क्रांति में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।यह लोगों को जोड़ रहा था। देश के सामन एक नई दुनिया गढ़ रहा था, इनके प्रसारण के समय सड़के सूनी हो जाती थी। गांवों में एक टीवी सेट के सामने पूरा गाँव बैठता था। इस संचार के माध्यम ने लोगों के अंदर से कुछ हद तक धर्म, जाति और लिंग का भेदभाव मिटा दिया था। यह समरसता की शुरुआत थी परंतु माध्यम संचार था।
आज का दिन दूरदर्शन के रंगीन में बदल जाने का ही दिन नहीं है बल्कि यह एक ऐसा दिन है जहाँ से भारत बदल चुका था। अपने सोचने के तरीके से लेकर अपने आप को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने तक का नजरिया बदल चुका था । यह संचार की एक नई क्रांति थी जिसकी बुनियाद पर 21वीं सदी के भारत की बुनियाद रखी गई।
प्रशांत शर्मा
लेखक IIMC के छात्र हैं।