यतेन्द्र सिंह पूनिया
आज पूरी दुनिया कोरोना नामक महामारी से लड़ रही है, पिछले 52-53 दिनों से पूरा देश घरों में बंद है। फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं, उद्योग धंधे ठप पड़े हैं, बाजार सुनसान हैं पर इस महामारी के बीच भी डॉक्टर,जवान और किसान लगातार डटे हुए हैं। इस महामारी ने आधुनिक होते भारत को किसान का महत्व समझा दिया। इस महामारी में भी किसान देश का पेट भरने का काम कर रहा है। पर जो किसान विषम से विषम परिस्थिति में पेट भरता है, जब वो कर्ज़ से तंग आकर आत्महत्या करता है तो दिल दहल जाता है। अगर आज देश में किसानों की बदतर स्थिति के पीछे सबसे बड़ा कारण एकता का अभाव और वर्तमान भारत में सभी किसानों को साथ लेकर चलने वाले किसान नेता का कमी है।
जब भी भारत में किसान राजनीति और किसान एकता की बात होती है तो चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का जिक्र जरूर होता है।अपने किसान आंदोलनों से लखनऊ से लेकर दिल्ली तक की कुर्सी हिलाने वाले किसान नेता चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की आज 9वीं पुण्यतिथि है।
चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का जन्म 6 अक्टूबर 1935 को मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में एक किसान परिवार में हुआ था।
उनके पिता बालियान खाप के प्रमुख थे, पिताजी के निधन के बाद छोटी उम्र में ही बालियान खाप की पगड़ी चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के सिर पर आ गई। लंबे समय तक खेती करके बाबा टिकैत ने अनुभव किया किसानों में एकजुटता ना होना उनकी खराब हालत का सबसे बड़ा कारण है। किसानों को एकजुट करने और उनकी आवाज को मजबूती के साथ उठाने के लिए चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने 1986 में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की स्थापना की।
करमूखेड़ी बिजलीघर धरना
दिसंबर 1986 में शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर बाबा टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने ट्यूबवेल की बढ़ी बिजली दरों और अन्य मांगों को लेकर चार दिन तक धरना दिया। प्रदेश सरकार के आश्वासन पर किसानों ने चेतावनी देकर धरना खत्म कर दिया, मगर प्रदेश सरकार ने किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं किया।

चौधरी टिकैत की हुंकार पर एक मार्च 1987 को किसानों ने फिर करमूखेड़ी की ओर कूच कर दी, किसानों को करमूखेड़ी की तरफ बढ़ता देखकर पुलिस प्रशासन इस कदर डर गया कि पुलिस ने किसानों पर फायरिंग कर दी जिसमें दो किसानों की मौत हो गई।
करमूखेड़ी घटना के बाद पूरे पश्चिमी उत्तरप्रदेश में किसानों का गुस्सा उबाल मारने लगा। इस घटना के बाद बाबा टिकैत ने शामली में किसान महापंचायत का आह्वान किया,उस समय के लोग बताते हैं कि इस महापंचायत में 2.5 से 3 लाख किसान पहुंचे थे।
करमूखेड़ी घटना के बाद किसान राजनीति की दिशा बदल,चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की एक आवाज पर लाखों किसान जुटने लगे थे। करमूखेड़ी घटना ने इतना तूल पकड़ा कि उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने सिसौली आकर किसानों की मौत पर अफसोस जताना पड़ा।
मेरठ कमिश्नरी पर ऐतिहासिक धरना
1988 में चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने गन्ना मूल्य में वृद्धि सहित अपनी अन्य मांगों को लेकर मेरठ कमिश्नरी पर ऐतिहासिक धरना दिया। जनवरी-फरवरी की कड़कड़ाती ठंड में किसान कमिश्नरी पर डट गए, जैसे-जैसे धरने की खबर किसानों को मिलती गई कमिश्नरी पर भीड़ बढ़ती चली गई। मेरठ की सड़कों और मैदानों पर लाखों किसानों ने डेरा डाल दिया। इस धरने से टिकैत, मेरठ और भाकियू ने देश ही नहीं दुनिया भर की सुर्खियां बटोरी।

बाबा टिकैत के इस आंदोलन में मेरठ आए लाखों किसानों ने गज़ब की एकता और अनुशासन का परिचय दिया। 25 दिनों तक चला यह धरना पूरी तरह अहिंसक रहा वो भी उस क्षेत्र में जिसका हिंसा से पुराना नाता रहा है। आसपास के हर गांव के घर-घर से धरने के लिए रोटियां,सब्जी,छाछ,गुड़ और दूध हर रोज मेरठ लाया जाता । बात करने पर गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि इतना खाना मेरठ पहुंचता था कि धरने पर ड्यूटी में लगे पुलिसवाले भी यहां किसानों के साथ बैठकर खाना खाते थे।
बाबा टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन ने अक्टूबर 1988 में दिल्ली के बोट क्लब में एक विशाल विरोध प्रदर्शन किया,इसमें प्रदर्शन में बाबा टिकैत ने देश भर के किसानों की समस्याओं को राष्ट्रीय राजधानी से उठाया। दिल्ली की देखकर ऐसा लगता था मानो किसानों का जनसैलाब उमड़ आया हो। बोट क्लब प्रदर्शन में देश के अन्य किसान नेताओं ने भी टिकैत का साथ दिया और देश के सारे बड़े विपक्षी नेता भी किसानों को समर्थन करने के लिए टिकैत के मंच पर पहुंचे।

हर मुद्दे के लिए उठाई आवाज
रजबपुर,खैर में पुलिस अत्याचार ,भोपा में लड़की के अपहरण कांड से लेकर सिंभावली मिल के भुगतान तक गांव-किसान से जुड़े हर मुद्दे को लेकर बाबा टिकैत ने धरने दिए। इस सबसे भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) टिकैत के नेतृत्व में एक शक्तिशाली अराजनैतिक संगठन बनकर उभरा। किसानों को टिकैत पर इतना विश्वास था कि टिकैत की एक आवाज पर पश्चिमी यूपी और हरियाणा के लाखों किसान भाकियू के साथ आ जाते थे।
टिकैत और टकराव
2008 में बसपा शासनकाल में बिजनौर में किसानों को संबोधित करते वक्त बाबा टिकैत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को अपशब्द कह दिए। मामले ने इतना तूल पकड़ा कि बात लखनऊ तक पहुंच गई, बाबा टिकैत पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। प्रदेश सरकार ने बाबा टिकैत को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। पुलिस ने टिकैत को गिरफ्तार करने के लिए सिसौली को घेर लिया। बाबा टिकैत की गिरफ्तारी की बात सुनकर किसानों का गुस्सा भड़क उठा। आसपास के गांवों से किसान सिसौली पहुंच गए और महेन्द्र सिंह टिकैत को अपने घेरे में ले लिया। रास्तों पर बुग्गी, ट्रैक्टर-ट्रालियां आदि लगाकर किसानों ने गांव की नाकेबंदी कर दी। किसानों का प्रदर्शन इतना जबरदस्त हुआ कि पुलिस प्रशासन चाहकर भी महेन्द्र सिंह टिकैत को गिरफ्तार नहीं कर पाया।
किसानों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई पर टिकैत लगातार किसानों तक अपना संदेश पहुंचाते रहे ,“लड़ाई नहीं होनी चाहिए, उधर पुलिस में भी अपने ही बालक हैं।”
किसान देश का मालिक है
टिकैत सादगी पसंद इंसान थे,कुर्ता-धोती पहनते,जहां वक्त मिलता हुक्का गुड़गुड़ाने लगते। स्वभाव में लहजे से गर्म और दिल के नरम, अड़ियल इतने अगर किसी बात पर अड़ जाते तो फिर किसी की ना सुनते।
पर जब बोलते तो खुलकर बोलते,टिकैत कहा करते थे कि जब तक किसानों को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा तब तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं होगा। साथ ही टिकैत कहा करते थे कि कर्ज माफी स्थायी समाधान नहीं है,किसान इस देश के मालिक हैं,उन्हें माफी नहीं फसलों के दाम चाहिए, अगर किसानों को फसलों के सही दाम और सुविधाएं मिलनी लगी तो वो खुद आगे बढ़ जाएंगे।
छूटा बाबा टिकैत का साथ
15 मई 2011 को हड्डियों के कैंसर के कारण चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत का निधन हो गया। बाबा टिकैत के निधन के बाद किसान राजनीति में एक ऐसा स्थान रिक्त हुई गया जिसे भरना संभव नहींं है। मुझे आज भी वह दिन याद है जब हमारे गांव के लोगों को बाबा टिकैत के निधन की खबर मिली तो मेरे गांव की हर आंख नम थी, लोग इस कदर गमगीन थे कि किसी किसान के घर चूल्हा नहीं जला था।
अगर आज बाबा टिकैत को किसान मसीहा कहा जाता है तो इसके पीछे उनका संघर्ष है। उन्होंने दिन-रात किसानों के हक के लिए एक कर दिए थे, अपनी संघर्ष यात्रा में उन्होंने कभी धूप-छांव, भूख-प्यास, लाठी-गोली और जेल जाने की परवाह नहीं की। देश में किसानों के हक की आवाज जिस तरह चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने उठाई ऐसा कोई निस्वार्थी नेता आज दिखाई नहीं देता जिनकी एक आवाज पर गांव के गांव पीछे चल पड़ते थे।
(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के छात्र है। लेख में उनके निजी विचार है।)