आशीष मिश्रा

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।।

हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते है । इनकी शुरुआत एक दिन पूर्व अर्थात भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा ( महालया ) तिथि से होती है और समापन अमावस्या पर होता है इस वर्ष यह संयोग 2 स‍िंतबर से शुरू हो रहा है। यह पक्ष 15 द‍िनों का होता है।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है।

पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।
यह सर्वविदित है कि पितृ दोष को बहुत अशुभ प्रभाव देने वाला माना जाता है। जो भी जातक जीवित अवस्था में अपने माता पिता का अनादर करते है अथवा पिता की मृत्यु के पश्चात जो संतान अपने पिता का श्राद्ध नहीं करता हैं या सर्प हत्या या किसी निरपराध की हत्या करता है तो अगले जन्म में उसकी कुण्डली में पितृदोष लग जाता है। ऐसे में जातक के जीवन में संतान संबंधी, कोर्ट-कचेहरी, पार‍िवार‍िक जीवन में कलह और मानस‍िक शांत‍ि बनी ही रहती है। साथ ही अपनों से भी धोखा म‍िलता है।
जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्मानीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएँ होते भी मन असन्तुष्ट रहना आदि पितृ दोष हो सकते हैं। यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई हो तो पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्म शांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करवाएँ। अपने माता-पिता तथा अन्य ज्येष्ठ जनों का अपमान न करें। प्रतिवर्ष पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करें।

पितृ पक्ष में किस दिन करें श्राद्ध ? –

दरअसल, दिवंगत परिजन की मृत्यु की तिथि में ही श्राद्ध किया जाता है. उदाहरण के तौर पर यदि आपके किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही उनका श्राद्ध किया जाना चाहिए. आमतौर पर इसी तरह से पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियों का चयन किया जाता है:
– जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या फिर किसी दुर्घटना या आत्महत्या का मामला है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है.
– दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है.
– जिन पितरों के मरने की तिथि न मालूम हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए.
– यदि कोई महिला सुहागिन मृत्यु को प्राप्त हुई तो उनका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए.
– सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है.
श्राद्ध के नियम
– पितृ पक्ष के दौरान हर दिन तर्पण किया जाना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है.
– इस दौरान पिंड दान भी करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.

इस वर्ष श्राद्ध की तिथियां इस प्रकार हैं –

पूर्णिमा श्राद्ध – 2/9/20, बुधवार
1 प्रतिपदा श्राद्ध – 3/9/20 गुरुवार
2 द्वितीया श्राद्ध – 4/9/20 शुक्रवार
3 तृतीया श्राद्ध- 5/9/20 शनिवार
4 चतुर्थी श्राद्ध-6/9/20 रविवार
5 पंचमी श्राद्ध- 7/9/20 सोमवार
6 षष्ठी श्राद्ध-8/9/20 मंगलवार
7 सप्तमी श्राद्ध- 9/9/20 बुधवार
8 अष्टमी श्राद्ध- 10/9/20 गुरुवार
9 नवमी श्राद्ध- 11/9/20 शुक्रवार
10 दशमी श्राद्ध- 12/9/20 शनिवार
11 एकादशी श्राद्ध- 13/9/20 रविवार
12 द्वादशी श्राद्ध- 14/9/20 सोमवार
13 त्रयोदशी श्राद्ध- 15/9/20 मंगलवार
14 चतुर्दशी श्राद्ध- 16/9/20 बुधवार
15 सर्वपितृ अमावस श्राद्ध 17/9/20 गुरुवार

श्राद्ध कैसे करें?

– श्राद्ध की तिथि का चयन ऊपर दी गई जानकारी के मुताबिक करें.
– श्राद्ध करने के लिए आप अपने पुरोहित को बुला सकते हैं.
– श्राद्ध के दिन अच्छा खाना या फिर पितरों की पसंद का खाना बनाएं.
– खाने में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल न करें.
– मान्यता के मुताबिक श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं.
– श्राद्ध के दिन पांच तरह की बलि बताई गई है: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि.
– बता दें, यहां बलि का मतलब किसी पशु या जीव की हत्या नहीं है बल्कि श्राद्ध के दिन इन सभी जानवरों को खाना खिलाया जाता है.
– तर्पण और पिंड दान के बाद पुरोहित या किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें.
– ब्राह्मण को सीधा या सीदा भी दिया जाता है. सीधा में चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल शामिल है.
– ब्राह्मण भोज के बाद पितरों को धन्यवाद दें और जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए माफी मांगे.
– इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठ कर भोजन करें.
– पितृ दोष दूर करने के ल‍िए जातक को प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाकर महामृत्युंजय का जाप करना चाहिए। इसके अलावा देवी काली की नियमित उपासना करें। मां की कृपा से पितृ दोष दूर हो जाता है। भोजन बनने पर सर्वप्रथम पितरों के नाम के खाने की थाली निकालकर गाय को खिलाने से उस घर पर पित्तरों का सदैव आशीर्वाद रहता है। घर के मुखिया को भी चाहिए कि वह भी अपनी थाली से पहला ग्रास पितरों को नमन करते हुये कौओं के लिये अलग निकालकर उसे खिला दें।
– पितृ दोष से राहत पाने के ल‍िए अपने ज्ञात-अज्ञात और पूर्वजों के प्रति ईश्वर उपासना के बाद न‍ियम‍ित कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। इसके अलावा उनसे जाने-अनजाने में की गयी भूलों की क्षमा मांगें। ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्‍न होते हैं और प‍ितृ दोष दूर होते हैं।