आदि शंकराचार्य फ़ाइल फोटो
अद्वैत वेदांत के प्रणेता

आज का दिन विशेष है क्योंकि आज सनातन धर्म के ध्वजवाहक व अद्वैत वेदांत के प्रणेता आदि शंकराचार्य की जयंती है। उन्होंने ज्ञान-मार्ग का अनुसरण करते हुए सनातन धर्म की विचारधाराओं का एकीकरण करने के साथ ही उपनिषदों औऱ वेदांत-सूत्रों पर अनेक टीकाएँ लिखी।

शंकराचार्य के अनुुुसार संसार में ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव और ब्रह्म अलग नही हैं। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है।उन्होंने अपने ब्रह्मसूत्र में “अहं ब्रह्मास्मि” कहकर उसे सिद्ध किया।

वह मानते थे कि ब्रह्म और जीव मूलतः और तत्वतः एक हैं। हमे जो भी अंतर नजर आता है उसका कारण अज्ञान है, अतः जीव की मुक्ति के लिये ज्ञान आवश्यक है।

अपने छोटे से जीवन में उन्होंने अनगिनत शास्त्रों का अध्ययन औऱ तीन बार सम्पूर्ण भारत दर्शन किया। उन्हें हम सांस्कृतिक एकता के सूत्रधार भी कह सकते हैं जिसे उन्होंने चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना करके सिद्ध किया।

माना जाता है कि ये चारों पीठ एक-एक वेद से जुड़े हैं। ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी, यजुर्वेद से श्रंगेरी जो कि रामेश्वरम् के नाम से जाना जाता है। सामवेद से शारदा मठ, जो कि द्वारिका में है और अथर्ववेद से ज्योतिर्मठ जुड़ा है, जोकि बद्रीनाथ में है। जिसके द्वारा हम सम्पूर्ण भारत की मूलभूत एकता के रूप में भी देख सकते हैं।

आज के इस वर्तमान परिवेश में जब हम अपनी जड़ों से कटते औऱ ज्ञान-मार्ग से विचलित हो जा रहें हैं तब आदि शंकराचार्य के विचार अत्यधिक प्रांसगिक हो जाते हैं। अतः आवश्यकता है कि हम उनके विचारों को आत्मसात करते हुए जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की ओर अग्रसर हों।

आदि शंकराचार्य के कुछ अद्भुत विचार:-

●तीर्थ करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ आपका अपना मन है, जिसे विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो।

मोह से भरा हुआ इंसान एक सपने की तरह है, यह तब तक ही सच लगता है जब तक आप अज्ञान की नींद में सो रहे होते हैं। जब नींद खुलती है तो इसकी कोई सत्ता नहीं रह जाती है।

हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान है जो शरीर, इंद्रियों, मन, बुद्धि से बिल्कुल अलग है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरुप है।

सत्य की कोई भाषा नहीं है। भाषा सिर्फ मनुष्य का निर्माण है, लेकिन सत्य मनुष्य का निर्माण नहीं आविष्कार है। सत्य को बनाना या प्रमाणित नहीं करना पड़ता, सिर्फ उघाड़ना पड़ता है।

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