भीमा-कोरेगांव हिंसा के संबंध में मुंबई की एक जेल में बीते दो साल से बंद 81 वर्षीय राजनीतिक कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव की तबियत काफी बिगड़ गई है। जिसके कारण उनके परिवार वालों ने माँग की है कि वरवरा राव को तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए। साथ ही परिवार के लोगों ने भी आरोप लगाया है कि जेल विभाग राव के स्वास्थ्य से सही जुड़ी जानकारी मुहैया नहीं करा रहा है।
बीते 28 मई को वरवर राव की तबीयत काफी ख़राब हो जाने के कारण उन्हें उन्हें जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य को देखते हुए राव के परिवार वालों ने उन्हें ज़मानत पर रिहा करने के लिए अदालत में अर्जी दी थी। लेकिन नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने वरवर राव को भीमा कोरेगाँव केस में एक महत्वपूर्ण अभियुक्त क़रार देते हुए ज़मानत नहीं देने की अपील की थी।इसके बाद कोर्ट ने राव को ज़मानत देने से इनकार कर दिया था। इसपर परिवार का कहना था कि राव की जमानत याचिका का विरोध करते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने उन्हें वापस जेल भेज दिया और उनकी दवाइयां भी रोक दी।
कवि वरवरा राव के बिगड़ती हालत के बारे में जानकारी देते हुए उनके परिवार ने आज एक प्रेस नोट जारी किया है। प्रेस नोट में परिवारवालों ने कहा है कि 28 मई को जब राव को बेहोशी की हालत में तलोजा जेल से जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था उसके बाद से उनकी हालत बेहद खराब हो चुकी है। उनकी हालत में सुधार नहीं होने के बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने उन्हें जेल भेज दिया जबकि उन्हें तत्काल इलाज की ज़रूरत है। परिवार ने यह भी कहा है कि इस समय बीते शनिवार को उनकी ओर से आया रूटीन फ़ोन कॉल ने उन्हें काफी परेशान कर दिया है क्योंकि उनकी आवाज़ काफ़ी कमज़ोर और समझ में न आने वाली थी। राव बार-बार हिंदी में बोलने लगते थे जबकि वरवरा राव बीते पांच दशकों से तेलुगू भाषा के बेहतरीन वक्ता रहे हैं।इसलिए वरवरा राव का बोलते-बोलते भूल जाना हमारे परिवार के लिए काफ़ी अजीब और डराने वाला है। वरवरा राव की बेटी पवना ने आज जूम के जरिए प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए उनके इलाज के लिए महाराष्ट्र सरकार से भी मदद मांगी है।
जून के महीने में अलग अलग राजनीतिक पार्टियों के 15 सांसदों ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर 80 वर्षीय तेलुगू कवि वरवर राव को जेल से अस्पताल में शिफ्ट करने की अपील की थी। जिसमें डीएमके सांसद कनिमोझी, आरजेडी सांसद मनोज झा भी शामिल थे। सभी 15 सांसदों ने पत्र लिखकर उद्धव से अपील की थी कि बिगड़ती सेहत और कोरोना के फैलते संक्रमण को देखते हुए वरवरा राव को तुरंत मेडिकल सहायता दी जाए। इससे पहले मई महीने में दो पूर्व सूचना आयुक्त शैलेश गांधी और श्रीधर आचार्युलु भी पत्र लिखकर वरवरा राव को रिहा करने की अपील कर चुके हैं। दोनों पूर्व सूचना आयुक्त ने राव के खिलाफ सबूत ना होने का दावा करते हुए अपने पत्र में लिखा है कि ‘पुणे पुलिस और जांच दल ने 16 हफ्तों तक मामले की जांच की, लेकिन वे इस आरोप को साबित करने के लिए लेशमात्र साक्ष्य भी नहीं जुटा सके कि हैदराबाद निवासी 81 वर्षीय राव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रची या उनकी हत्या की कोशिश की।’ साथ ही पूर्व सूचना आयुक्तों ने सीएम उद्धव को लिखे पत्र में कहा कि यह आपराधिक न्याय का सिद्धांत है कि आरोपी को तब तक बेकसूर माना जाता है जब तक कि आरोप पूरी तरह से साबित नहीं हो जाता है। इसलिए साक्ष्य के अभाव के चलते राव के पास खुद के निर्दोष होने के तौर पर रिहा होने का पूरा हक है। पूर्व सूचना आयुक्तों ने राव के खराब स्वास्थ्य, कोविड-19 को देखते हुए विचाराधीन कैदियों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और उनके परिवार तक सूचना नहीं पहुंचने का भी जिक्र अपने पत्र में किया था।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव-एलगार परिषद मामले में कथित भूमिका के लिए राव को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह तब से जेल में हैं। भीमा कोरेगांव मामले में नौ पुरुष मुम्बई की तलोजा जेल में बंद हैं, जबकि 2 महिलाएं मुंबई की बायकुला जेल में बंद हैं। जिसमें रोना विल्सन, एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग, प्रो शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंसाल्वेस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बडे भी शामिल हैं।