तस्वीर : न्यूयार्क टाइम्स

राहुल मिश्रा

पिछले कुछ महीनों से ऐसा देखा जा रहा है की विश्व स्वास्थ संगठन लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। इसके 2 कारण है पहला तो कोरोना महामारी जो आज मानव सभ्यता का सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठा और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशो के बीच वर्चस्व की लड़ाई। विश्व स्वास्थ संगठन,संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो कोरोना वायरस महामारी के रोकथाम में लगी हुई है। समय-समय पर विभिन्न देशो को जरूरी सलाह दे रही है। लेकिन फिर भी यह सवाल उठ रहा है की आखिर विश्व स्वास्थ संगठन विवादों में क्यों है,इसकी निंदा क्यों हो रही है!

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तो यह तक कह दिया कि अब वे विश्व स्वास्थ संगठन को दी जाने वाली राशि रोक देंगे। ट्रम्प के इस फैसले से पूरी दुनिया हैरान है। की आखिर ट्रम्प ऐसा क्यों करना चाहते है। यह जानने के लिए हमे थोड़ा पीछे जाना होगा, ऐसा माना जाता है की जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी तब विश्व स्वास्थ संगठन ने कुछ लापरवाही बरती और साथ ही साथ चीन का भी पक्ष लिया। विश्व स्वास्थ संगठन पर जानकारियां छुपाने का भी आरोप है। दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति अकेले ऐसे नहीं है जो विश्व स्वास्थ संगठन पर आरोप लगा रहे है। कई वैज्ञानिको ने भी विश्व स्वास्थ संगठन पर सवाल उठाये है।

विश्व स्वास्थ संगठन की शुरुवात 1948 में हुई थी,इसे 2 तरह से धन मिलता है। पहला,विश्व स्वास्थ संगठन का हिस्सा बनने के लिए राष्ट्रों को एक रकम चुकानी पड़ती है हलाकि यह रकम विश्व स्वास्थ संगठन के कुल ख़र्चे तथा बजट का मात्र 20 प्रतिशत है,यह रकम सदस्य देशों की आबादी और उसके विकास दर पर निर्भर करती है। दूसरा,चंदे की राशि जो की विभिन्न देशो की सरकारों तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा दिया जाता है। विश्व स्वास्थ संगठन का बजट हर दो साल पर निर्धारित किया जाता है। वर्ष 2020 और 2021 का बजट 4.8 अरब डालर है।

डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर: न्यूयार्क टाइम्स)

सयुंक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनिओ गुटेरेश ने कहा है की कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में विश्व स्वास्थ संगठन काफी अहम रोल अदा कर रहा है। ऐसी हालत में विश्व स्वास्थ संगठन के संसाधनों में कटौती करना काफी खतरनाक साबित हो सकता है। दूसरी तरफ चीन के साथ साथ माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का भी कहना है की ऐसे समय में जब पूरा विश्व इस महामारी के खिलाफ एक जंग लड़ रहा है तो विश्व स्वास्थ संगठन का पैसा नहीं रोकना चाहिए।

विश्व स्वास्थ संगठन को मिलने वाले पैसो में सबसे ज्यादा पैसा वोलंटरी कंट्रीब्यूशन से ही आता है। कुल कंट्रीब्यूशन का 14.5 प्रतिशत अकेले अमेरिका देता है। दूसरे नंबर पर ब्रिटेन है इसके बाद जर्मनी और जापान है। जानकारों का मानना है की आने वाले समय में चीन की अहमियत बढ़नी तय है चूँकि चीन भी अब अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में निवेश कर रहा है। अभी विश्व स्वास्थ संगठन के कुल खर्चे और बजट में अमेरिका का सहयोग 30 प्रतिशत है जो की लगभग 45 करोड़ डॉलर के बराबर है।

वही चीन सालाना 4 करोड़ डॉलर का अंशदान करता है। अगर इतनी बड़ी राशि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के कहे अनुसार विश्व स्वास्थ संगठन को नहीं मिली तो विश्व स्वास्थ संगठन को अपने सक्रिय स्वास्थ कार्यक्रमों में कटौती करनी पड़ सकती है। विश्व स्वास्थ संगठन और ट्रम्प की तनातनी पुरे विश्व के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। यदि सहायता राशि रुकी तो न सिर्फ कोरोना बल्कि तमाम ऐसी बीमारियों जिनके उन्मूलन के लिए सयुंक्त राष्ट्र काम कर रहा है उसे धक्का लग सकता है। ऐसे समय से में जब पूरा विश्व इस महामारी से लड़ रहा है तो ताकतवर देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में विश्व स्वास्थ संगठन जैसे संस्था को मोहरा न बनाया जाये। इस टकराव के बीच हमे यह नहीं भूलना चाहिए की विश्व स्वास्थ संगठन कोरोना महामारी से इस लड़ाई में भारत के द्वारा उठाये जा रहे कदमो की सराहना कर रहा है।

राहुल मिश्रा