“एक कर्मचारी। एक मीडियापर्सन। वेल एजुकेटेड। बिल्कुल फिट थे। बस ऑक्सीजन सपोर्ट चाहिए था। किसी डॉक्टर ने कुछ नहीं किया। दिल्ली में ऐसा क्यों हो रहा है कि डॉक्टर्स देखने को रेडी ही नहीं हैं। सब डॉक्टर से रिक्वेस्ट है कि प्लीज़ ऐसा मत कीजिये। जो मेरे पापा के साथ हुआ वो किसी और के साथ नहीं होना चाहिए”…

दिल्ली के मयूर विहार निवासी आदित्य के पिता वीरेंद्र की मौत रविवार सुबह 4 बजे हो गयी। वीरेंद्र कोरोना पॉजिटव थे। दिल्ली में 6 दिनों तक भटकने के बाद बेटे के बुलाने पर वह शनिवार सुबह निज़ामुद्दीन-हबीबगंज एक्सप्रेस से भोपाल गए थे। हालत ज्यादा खराब होने के कारण उनकी भोपाल में ही मौत हो गयी।

आदित्य भोपाल में मेडिकल की पढ़ाई करते हैं। उन्होंने बताया कि ’29 मई से पापा को बुखार था। पास के हेल्थ सेन्टर से दवाई ली, पर आराम नहीं मिला। 102.5 बुखार के बाद भी अस्पतालों में उनका कोरोना टेस्ट नहीं किया गया। वह इतने दिनों तक अकेले भटकते रहे।’
भोपाल में बुलवाने के बाद वीरेंद्र को स्टेशन से जब सीधे
जांच के लिए लेकर गए तो उनका ऑक्सिजन सेचुरेशन 35% था, जो नार्मल 90 के आस-पास होता है। वेंटिलेटर सपोर्ट के बाद भी हालात सामान्य नहीं होने पर डॉक्टर्स ने आस छोड़ दी। जिसके बाद रविवार सुबह 4 बजे उनका देहांत हो गया।

आदित्य के पिता वीरेंद्र नोएडा सेक्टर-62 में एस्सेल श्याम ब्राडकास्टिंग कंपनी में काम करते थे। बुखार की शिकायत होने पर उन्होंने कंपनी से छुट्टी ले ली थी। बुखार जब कुछ दिन तक ठीक नहीं हुआ तो उन्होंने पास के ही मेडिकल सेन्टर से दवाई लाने की सोची, जहां उन्हें ‘एक नार्मल वायरल फीवर’ है कहकर घर भेज दिया गया। जब हालात और खराब होने लगी तब उन्हें दिल्ली के 3 अस्पतालों में रेफेर कर दिया गया- जीटीबी दिलशाद गार्डन, राजीव गांधी अस्पताल और राममनोहर लोहिया अस्पताल। जीटीबी और राजीव गांधी में उन्हें साफ इनकार कर दिया गया कि वहां कोरोना टेस्ट नहीं होते हैं। आदित्य बताते हैं कि जब उसने कहा कि सेंट्रल गवर्नमेंट की साइट पर आपके अस्पताल का नाम है तो सम्बंधित कर्मचारी ने ये कहकर फ़ोन काट दिया कि यहां अभी कोरोना का इलाज शुरू नहीं हुआ है, यहां फ़ोन मत कीजिये। जबकि दिल्ली सरकार द्वारा लांच किये गए ‘दिल्ली कोरोना’ एप्प के अनुसार जीटीबी अस्पताल में 1391 बेड्स अभी भी खाली हैं और यहां जांच हो रही है।

पूरी स्टोरी यहां देखें- https://youtu.be/B-xjo5-lQHg

इलाज से पहले दें 60 हज़ार रुपये:
आदित्य ने हमें बताया कि ‘पापा की मौत की खबर सुनने पर मम्मी को अस्थमा का अटैक आया। जिसके बाद उनकी 15 साल की बहन उन्हें लेकर लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल भी गयी, लेकिन वहां किसी ने भी उन्हें देखने से आए हाथ लगाने से इनकार कर दिया। बता दें कि यह अस्पताल भी दिल्ली सरकार के अंतर्गत आता है। सरकारी एम्बुलेंस होने के बावजूद भी वहां कोई मदद उन्हें नहीं दी गयी। जैसे-तैसे व्यवस्था करके वह अपनी बेसुध माँ को दूसरे अस्पताल लेकर गयी। नोएडा सेक्टर-11 के मेट्रो मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में एडमिट करने से पहले ही 60 हज़ार रुपये जमा करने के लिए बोल दिए गए। मेडिकल कार्ड दिखाने और 20 हज़ार जमा करवाने के बाद भर्ती करवाया गया।’ अभी आदित्य भोपाल में हैं, उनकी बहन अपने घर क्वारंटीन हैं और उनकी माँ अस्पताल में हैं।

आंकड़ों को हटा दिया जाए तो ना जाने कितनी ऐसी मौतें हैं जो केवल मेडिकल नेगलिजेंस की वजह से हुई हैं। इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है? मेडिकल नेगलिजेंस से हुई मौत पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? आखिर ज़िम्मेदारी है किसकी? केंद्र, राज्य या अस्पतालों की?