जहां एक तरफ पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी को झेल रही है वही चीन ने ऐसे समय में हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू कर दिया है। चीन की संसद ने इस कानून को मई के आखरी हफ्तों में पास कर दिया था उसके बाद 30 जून को चीन के शीर्ष विधायी निकाय नेशनल पीपुल्स कांग्रेस स्टैंडिंग कमेटी ने भी इस कानून को हरी झंडी दे दी है। और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस पर हस्ताक्षर कर दिया है।
क्या है ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’
हांगकांग के साथ-साथ दूसरे देश के लोग भी इस कानून के खिलाफ है। दरअसल लोगों का मानना है कि चीन इस कानून का इस्तेमाल करके हांगकांग के नागरिकों का दमन और तेज करेगा और हांगकांग के जो लोग लोकतंत्र का समर्थन करते हैं उनका दमन किया जाएगा। हांगकांग के नागरिकचीनी दमन के खिलाफ और लोकतंत्र की मांग को लेकर समय-समय पर प्रदर्शन करते आ रहे हैं और प्रदर्शन से चीन की मुश्किलें पैदा होती रही है। और इस कानून में पिछले साल सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई करने संबंधी प्रावधान शामिल हैं। प्रदर्शनों में सरकार के कार्यालयों और पुलिस थानों पर हमला, सब स्टेशनों को नुकसान पहुंचना और शहर का अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा बंद करना शामिल है। इसमें कहा गया है कि अलगाववादी गतिविधियों में भाग लेना इस नए काननू का उल्लंघन होगा। यह कानून ऐसे समय में पारित हुआ है जब हांगकांग की विधायिका ने जून की शुरुआत में चीन के राष्ट्रगान का अपमान करना गैरकानूनी घोषित किया था। वैश्विक आक्रोश और पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश हांगकांग में नाराजगी के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मंगलवार को उस विवादित सुरक्षा कानून पर हस्ताक्षर कर दिए जो कि हांगकांग के संबंध में बीजिंग को नयी शक्तियां प्रदान करता है। इसलिए इस कानून के खिलाफ लोग।
हांगकांग के नेता कैरी लैम का चीन को समर्थन
हांगकांग की नेता कैरी लैम ने 1 जुलाई को औपनिवेशिक ब्रिटेन से इस अर्द्धस्वायत्त क्षेत्र को सौंपे जाने की वर्षगांठ पर बुधवार को अपने भाषण में यहां चीन की केंद्र सरकार के नए सुरक्षा कानून को लागू किए जाने का कड़ा समर्थन किया। लैम ने कहा, ‘‘हांगकांग की स्थिरता को बनाए रखने के लिए यह फैसला आवश्यक था और समय रहते हुए लिया गया।’’
‘एक देश, दो सिस्टम’ कथित अवधारणा
साल 1997 में हांगकांग ब्रिटेन के नियंत्रण से बाहर निकलकर चीन के पास आया था उस समय दोनों देशों के बीच एक अनूठा समझौता हुआ था जिसमें हांगकांग के नागरिकों के लिए एक छोटे संविधान की नींव रखी गई थी जिसे ‘बेसिक लॉ’ कहते हैं। इसके साथ ही चीन ने 1997 में एक कथित अवधारणा को जन्म दिया जिसे ‘एक देश, दो सिस्टम’ के नाम से जाना गया।
इस कानून के जरिए हांगकांग के लोगों को कुछ खास मुद्दों पर आजादी दी गई। जैसे वह जनसभाएं कर सकेंगे, उन्हें अपनी बात कहने और रखने का हक होगा और वहां एक स्वतंत्र न्यायपालिका होगी।
साथ ही हांगकांग की लोगो को कुछ ऐसे लोकतांत्रिक अधिकार भी दिए गए जो आम चीनी लोगों को नहीं मिल रखें । और इसी समझौते के तहत हांगकांग को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने का हक भी हासिल है। जो ‘बेसिक लॉ’ के अनुच्छेद 23 में इसके लिए प्रावधान किया गया है।
इस कानून को पहले भी लागू करने की कोशिश की गई थी लेकिन 2003 में 5 लाख लोग सड़कों पर उतर आए थे और सरकार को अपना कदम वापस खींच ना पढ़ा था। परंतु इस बार इस कानून को पुरजोर तरीके से लागू कर दिया गया है। जिसका विरोध प्रदर्शन अब जारी है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की घोषणा
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस कानून की कड़ी निंदा की और इस कानून को मानवाधिकार के खिलाफ माना। उन्होंने कहा कि नए सुरक्षा कानून से हांगकांग की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने इसके बाद यह घोषणा की जिसमें इस कानून से प्रभावित लोगों को ब्रिटेन आने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने 30 लाख लोगों को ब्रिटेन में बसने का प्रस्ताव दे दिया है।
अमेरिका ने चीन के खिलाफ अपनाया कड़ा रुख
दरअसल हांगकांग में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ लागू होने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि हांगकांग की स्वतंत्रता को लेकर चीन ने अपना वादा तोड़ दिया है। ट्रंप ने कहा, “हमने बाकी चीन की तुलना में हांगकांग को एक यात्रा क्षेत्र के तौर पर मिलने वाले विशेष दर्जे को खत्म करने के लिए कदम उठाएंगे। हांगकांग की आजादी का गला घुटने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भी अमेरिका प्रतिबंध लगाएगा।” इसके साथ ही अमेरिका ने पिछले साल मानवाधिकार और लोकतंत्र विधेयक को कानून का दर्जा दिया है इस कानून में हांगकांग की लोकतंत्र समर्थकों के सहयोग की बात कही गई थी।
राष्ट्रपति ट्रंप में चीनी छात्रों को अमेरिका आने पर रोक लगाई उन्होंने कहा कि “संवेदनशील अमेरिकी तकनीक और बौद्धिक संपदा हासिल करने के लिए सुनियोजित तरीके से बड़े पैमाने पर चलाई जा रही गतिविधियों में चीन शामिल है वह इसके जरिए अपनी सेना का आधुनिकरण करना चाहता है।”
अमेरिका ने प्रतिनिधि सभा में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में कहा गया कि चीन के अधिकारियों के साथ को भी बैंक बिजनेस करेंगे, उन पर जुर्माना लगाया जाएगा।
मानवाधिकार आयोग में 27 देश
27 देशों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में चीन के खिलाफ जाने का फैसला किया है। ये देश हैं-ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, बेलीज, कनाडा, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, आइसलैंड, जर्मनी, जापान, लात्विया, लिकटेंस्टीन, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, मार्शल आइलैंड्स, द किंगडम ऑफ नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, पलाऊ , स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम।