रजनीश चौरसिया
एक पत्रकार आत्महत्या कैसे कर सकता है ? यह सोचकर पत्रकार बिरादरी स्तब्ध है। पत्रकारों का जीवन बड़ा दुखमय होता है? वह खाने बगैर भले मर जायं, लेकिन आत्महत्या नहीं कर सकते? जीवन के कंटकाकीर्ण मार्ग पर चलते और दूसरे को रास्ता दिखाते उसकी जिन्दगी बीत जाती है। आत्महत्या से भी खराब स्थिति में जीवन गुजारने और परिवार की परवरिश करने वाला पत्रकार आत्महत्या करेगा, सोचा भी नहीं था। वह भी देश के प्रतिष्ठित अस्पताल के आईसीयू में भर्ती पत्रकार।
जी हां, मैं बात कर रहा हूं दैनिक भास्कर के पत्रकार तरुण सिसौदिया की। सिसौदिया जी समर्पित पत्रकार थे। वह हेल्थ बीट देखते थे। उन्हें कोरोना से पीड़ित होने के कारण पन्द्रह दिन पहले देश के प्रतिष्ठित अस्पताल दिल्ली के एम्स में भर्ती किया गया। इसके बाद भी वह फोन से हेल्थ की खबरें दिया करते थे यानी अपने काम के प्रति उस फौजी की तरह मुस्तैद थे,जो विषम परिस्थितियों में भी सीमा पर सीना ताने खड़ा रहता है। अस्पताल प्रशासन को उनका काम नागवार लगा और फोन छिन कर गंभीर रोगी बताते हुए आईसीयू में भर्ती कर लिया। अस्पताल प्रशासन के अनुसार उन्होंने आईसीयू से निकलकर अस्पताल की चौथी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। उनकी मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए आईसीयू में गंभीर रोगी भर्ती किए जाते हैं। व चौबीस घण्टे डाक्टरों और नर्सों की तैनाती रहती है। गेट पर गार्ड रहता है, ताकि कोई बाहर से प्रवेश न कर सके। ऐसी हालत में सिसौदिया चौथी मंजिल पर कैसे गये? एक गंभीर रोगी का आईसीयू से निकल कर जाना और आत्महत्या करना व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। वह ऐसे अस्पताल में जो देश का सबसे अच्छा अस्पताल हो। यह गंभीर विषय किसी भी व्यक्ति को कुरेदते रहेंगे। साथ ही शासन प्रशासन से सवाल पूछेगें। सिसौदिया तो चले गये अन्य पत्रकारों का क्या होगा। उनके साथ जब यह होगा तो देश कैसे चलेगा? अब पत्रकारों को देखना है कि सिसौदिया के परिवार का जीवन यापन कैसे हो?
हर मामले की होती है। इस मामले की जांचकर इतिश्री कर ली जाएगी. आप भोपू बनकर चिल्लाते रहिए कुछ नहीं होगा क्योंकि पत्रकारिता की वास्तविक कमान उन दलालों के पास है, जो अखबार मालिकों के हर पाप कर्म में भागी होते हैं। अखबार में लम्बे और अनर्गल समाचार अपने नाम से छापते हैं। मंत्रियों, अधिकारियों के पास बैठकर दलाली करने वाले लोग लड़ाई में साथ देंगे, कदापि नहीं। बन्धुओं सिसौदिया ने बहुत से सवाल छोड़े हैं, जिसका उत्तर देना सरकार और प्रशासन का काम है। रोज लिखिए। किसी न किसी प्लेटफार्म पर लिखते रहिए। एकजुट हो जाइए. लेकिन दलालों को पहचान कर। वह घुसकर आपकी मुहिम को तोड़ेंगे। मैने 40 साल के पत्रकार जीवन में पहली बार किसी पत्रकार को आत्महत्या करते सुना है। सिसौदिया को न्याय दिलाइए। यही हमारी गुजारिश के साथ उन्हें श्रद्धांजलि है।
(लेखक काशी विद्यापीठ वाराणसी में पत्रकारिता के छात्र हैं और लेख में उनके निजी विचार हैं)