प्रतीकात्मक तस्वीर स्रोत:इमेजेज बाजार

प्यार क्या होता है? सच्चा प्रेमी किसे कहते हैं? सबके पास अपने-अपने जवाब होंगे, लेकिन फ्रेंच लेखक रोलां बार्थ का यह जवाब देखिए: ‘मैं प्रेमी हूं, क्योंकि मैं ही एकमात्र व्यक्ति हूं, जो प्रतीक्षा करता है।’ प्रेम और प्रतीक्षा के बीच जुड़वा बंधुओं जैसा रिश्ता है। यदि प्रेम एक सवाल है, तो प्रतीक्षा, उसका जवाब खोजने में मददगार कुंजी। इस तड़प को शायर ऐसे कह गया है: ‘हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे कि कयामत हो और तू आए।’ (साहिर लुधियानवी)

कयामत तक इंतजार के लिए जज्बा चाहिए। बीच में, ये जो लंबा अंतराल है, वह कटेगा कैसे? कई प्रतीक्षाएं महज इसलिए दम तोड़ देती हैं कि उन्हें समझ ही नहीं आता, समय कैसे काटा जाए? जिंदगी एक विशाल वेटिंग-रूम है, जिसकी दीवार पर एक बहुत बड़ी घड़ी, हमारे दिल की धड़कनों से जुगलबंदी करती हुई, टिक-टिक चलती है।

फ्लारेन्तीनो अरीसा नाम के एक इंसान ने इंतजार का एक नायाब तरीका खोजा था। ऊपर-ऊपर से वह तरीका अनैतिक और हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन गहराई में जाएं, तो पता चलता है कि उसने जिंदगी और जज्बात, प्यार और इंतजार से जुड़े नए और दिलचस्प सवाल खड़े कर दिए। क्या था उसका तरीक़ा? इसे जानने से पहले उसकी कहानी से गुजरना होगा।

फ्लोरेन्तीनो अरीसा, बीसवीं सदी के महान उपन्यासों में से एक, ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ का नायक है। इस उपन्यास को लिखा था गैब्रियल गार्सीया मारकेज ने, जिन्हें दुनिया में कई लोग ‘किस्सागोई का खुदा’ मानते हैं। दक्षिण अमेरिका के एक छोटे-से देश कोलंबिया के निवासी मारकेज को 1982 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

हालांकि दुनिया में उनकी कीर्ति इससे पहले ही पहुंच चुकी थी, जब उन्होंने अपना महानतम उपन्यास ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलिट्यूड’ (1967) लिख दिया था। कहते हैं कि नोबेल जैसा पुरस्कार मिलने के बाद लेखकों की रचनाशक्ति में कमी आ जाती है, क्योंकि सबसे बड़ी चीज तो उन्होंने पा ही ली, अब आगे क्या लिख पाएंगे? लेकिन मारकेज अद्वितीय थे। उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया और 1985 में एक नई महानता रच दी, जो कहलाई ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा।’

कैरेबियाई समुद्र के पास कोलम्बिया के उत्तरी तट पर एक छोटे-से कस्बे में यह कहानी 1880 से 1930 तक चलती है। इन्हीं बरसों में वहां कॉलरा यानी हैजे की महामारी भी फैली थी। नायक फ्लोरेन्तीनो अरीसा और नायिका फरमीना दासा के बीच किशोरावस्था में ही प्रेम हो जाता है। रूढ़ियों से ग्रस्त पारंपरिक समाज में सबसे छिपते-छिपाते दोनों के बीच खतो-किताबत चलती है।

जल्द ही फरमीना के पिता को उनके प्रेम की भनक लग जाती है। वह फ्लोरेन्तीनो को धमकाते हैं और फरमीना को दूसरे शहर में रिश्तेदार के पास भेज देते हैं, लेकिन यह भौगोलिक दूरी भी उनके प्रेम को कम नहीं कर पाती। कुछ समय पहले ही उन क्षेत्रों में टेलीग्राम ऑफिस खुले थे। सो, दोनों प्रेमी तार की मदद से जुड़े रहते हैं।

हालांकि, जब फरमीना लौटकर अपने घर आती है, तब तक उसका मन बदल चुका है। उसे फ्लोरेन्तीनो के साथ अपने संबंधों का कोई भविष्य नजर नहीं आता और वह पिता के कहने पर डॉ. ऊर्बिनो से विवाह कर लेती है। शुरू में उसे अपना पति पसंद नहीं आता, लेकिन वह धनवान, आधुनिक, सभ्य और बेहद मृदुभाषी है। सो, धीरे-धीरे फरमीना उसके साथ एक अच्छा जीवन गुजारने लगती है।

दूसरी तरफ फ्लोरेन्तीनो टूटकर बिखर चुका है। उसे समझ नहीं आता कि उसके प्यार में क्या कमी रह गई थी। वह तमाम कोशिशों के बाद भी फरमीना के प्रति बुरा नहीं सोच पाता और तय करता है कि वह उसके प्रति वफादार रहते हुए उसके लौट आने की प्रतीक्षा करेगा। उसके अवसाद को देखकर उसकी मां, उम्र में बड़ी एक स्त्री को उसके पास भेज देती है, ताकि उसका मन बहल सके और वह दुखद यादों से मुक्ति पा सके।

उस स्त्री से मिले शारीरिक सुख के कारण फ्लोरेन्तीनो के जीवन और सोच में चमत्कारी परिवर्तन आता है। उसे महसूस होता है कि शारीरिक सुख, हृदय के दर्द को दूर करने में पेनकिलर दवाओं से भी अधिक कारगर है। वह अधिक से अधिक स्त्रियों के संपर्क में आने लगता है और अपनी डायरी में उन सबका हिसाब-किताब रखता है।

फरमीना के विवाह को पचास वर्ष गुजर जाते हैं। इस बीच फ्लोरेन्तीनो एक सफल व्यक्ति बन चुका है। छोटे-से शहर के सामाजिक कार्यक्रमों में डॉक्टर ऊर्बिनो और फरमीना को वह अक्सर देखता है। वह अविवाहित है किंतु उसका एक राज है। इतने बरसों में वह कुल 622 स्त्रियों के साथ संबंध बना चुका है, जिन्हें वह कहीं से गलत नहीं मानता।

जैसे कि एक शेर है: ‘जिंदगी के नाम पर बस इक इनायत चाहिए, मुझको इन सारे जरायम की इजाजत चाहिए’ (अहमद नदीम कासमी), वह भी मन ही मन खुद से तमाम जिरहों के बाद इस नतीजे पर पहुंचता है कि जीवन में एक साथ कई लोगों से प्रेम किया जा सकता है। हालांकि इस पूरे अंतराल में उसकी उम्मीद बरकरार है कि एक रोज फरमीना दासा उसके प्यार को कबूल करेगी।

और आखिर वह दिन आ जाता है। डॉक्टर ऊर्बिनो की मृत्यु हो जाती है। बूढ़ा फ्लोरेन्तीनो तो जैसे इसी बात की प्रतीक्षा कर रहा था। अभी फरमीना का मातम पूरा भी नहीं हुआ कि वह उसके घर पहुंच जाता है, 51 साल, नौ महीने, चार दिन की प्रतीक्षा का जिक्र करते हुए उसके प्रति अपनी ‘शाश्वत वफादारी और अनंत प्रेम’ की घोषणा करता है और उससे विवाह का प्रस्ताव रखता है। गुस्सा होकर फरमीना उसे अपने घर से भगा देती है, लेकिन जल्द ही उनके बीच एक नया प्रेम-संबंध बनता है और उस वृद्धावस्था में दोनों साथ आते हैं।

चुटीली भाषा, मजाकिया लेकिन दार्शनिक अंदाज, गुदगुदाते हुए-से दृश्य इसे अविस्मरणीय किताब बना देते हैं, लेकिन साथ ही सवालों की एक पूरी गठरी हमारे सामने खोल देते हैं। क्या सच में फ्लोरेन्तीनो अरीसा के भीतर ‘शाश्वत वफादारी और अनंत प्रेम’ है? अपनी परवरिश, सोच और संस्कृति के हिसाब से हर पाठक के पास इसका अलग जवाब होगा, लेकिन यही मारकेज की जादुई कलम की ताकत है कि उपन्यास को पढ़ने के दौरान ज्यादातर पाठक फ्लोरेन्तीनो अरीसा के पक्ष में खड़े हो जाते हैं।

बेहद बारीकी से मारकेज हमारे सामने प्रेम के अमर प्रश्नों को रख देते हैं। क्या प्रेम के दो रूप हैं? शारीरिक प्रेम अलग होता है और आत्मिक प्रेम अलग। शरीर से कोई 622 के साथ रह ले, लेकिन अगर उसकी आत्मा किसी एक से जुड़ी हुई है, तो वह सबके भीतर उसी एक को देखेगा, उसी एक की प्रतीक्षा करता रहेगा। क्या उन 622 में से किसी ने फ्लोरेन्तीनो से प्रेम किया था? क्या उनमें से किसी के प्रति फ्लोरेन्तीनो की जिम्मेदारी थी?

किसे पता, लेकिन यह स्पष्ट है कि फ्लोरेन्तीनो को सिर्फ इस बात की चिंता थी कि वह खुद किससे प्रेम करता है। प्रेम अपने बुनियादी रूप में एक स्वार्थी अनुभूति है, जो मनुष्य के पूरे अस्तित्व को उदात्त बनाती है। प्रेम सर्वकल्याणकारी कृत्य नहीं होता, क्योंकि जब हम प्रेम में डूबते हैं, तो कॉलरा जैसी महामारी के बीच भी सबकी सलामती की चिंता बाद में, अपने प्रेमी की चिंता सबसे पहले करते हैं। एक दिल के भीतर कई कमरे हो सकते हैं, लेकिन पूरे दिल की मिल्कियत किसी एक के पास होती है।

क्या सच में ऐसा होता है? क्या फ्लोरेन्तीनो (या कोई भी साधारण मनुष्य) शारीरिक सुखों की प्राप्ति के लिए दूसरी स्त्रियों के पास इसलिए जाता है कि उसके भीतर वफादार प्रतीक्षा का संकल्प है ही नहीं? क्या शारीरिक सुखों के सामने इंसान इतना कमजोर है? जिस्म और रूह की लड़ाई में ज्यादातर जिस्म जीतता है? यहीं महसूस होता है कि प्यार करना कितना मुश्किल काम है और नैतिकता-अनैतिकता बस हमारी सोच के दो पहलू।

महामारी को पृष्ठभूमि बनाकर बीसवीं सदी में कई महान उपन्यास रचे गए, जिनमें अल्बेयर कामू का ‘प्लेग’ और मारकेज का ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ विशिष्ट हैं। कामू के यहां प्लेग, जीवन के दुखों का प्रतीक है। चूहों द्वारा फैलाया प्लेग किसी को मारे या न मारे, खुद इंसान के भीतर का दुख प्लेग बनकर उसे मार देता है। इसके उलट, मारकेज के उपन्यास में कॉलरा, प्रेम-रोग का प्रतीक है। शहर में कॉलरा फैला हुआ है, लेकिन फ्लोरेन्तीनो के भीतर एक दूसरा रोग जड़ जमाए बैठा है।

क्या सच में प्रेम एक रोग है? इसलिए 51 बरस, नौ महीने, चार दिन तक अपना जीवन फ्लोरेन्तीनो ने एक रोगी की तरह गुजारा? या प्रेम एक औषधि है? इसलिए तमाम दूसरी स्त्रियों के साथ किए गए प्रेम ने अवसाद में डूबे फ्लोरेन्तीनो की जान बचाई। बार्थ की बात याद करें, तो फ्लोरेन्तीनो असली ‘प्रेमी’ था, क्योंकि उसने ‘प्रतीक्षा’ की, चाहे जिस तरह से भी की।

यह उपन्यास मूल रूप से स्पैनिश में लिखा गया था। उसमें कॉलरा शब्द के दो अर्थ होते हैं: एक- महामारी, दूसरे- उन्माद। उपन्यास के एक दृश्य में फ्लोरेन्तीनो, फरमीना की सुगंध को अपने भीतर घोल लेने के लिए, एक खुशबूदार फूल को खा जाता है, फिर उल्टियां करता है। मारकेज यहां कॉलरा शब्द के दोनों अर्थों का संकेत दे देते हैं।

यह प्रेम पर लिखे गए महानतम उपन्यासों में से है। प्रेम वर्षा के जल की तरह है, कितना भी बचें, एक बार तो जरूर भीगेंगे। प्रेम एक पहेली की तरह है, कितना भी सुलझाओ, फिर से उलझेगी। हम प्रेम के बारे में जितना भी, जो कुछ भी सोचते हैं, मारकेज का यह उपन्यास उसे कहीं न कहीं बदल देता है। अंत में हम पाते हैं कि जिन बातों को हम अपने जीवन में जवाब की तरह मानते आए, वही बातें, हकीकतन, असली सवाल थीं।

 

(यह लेख नवभारत गोल्ड से लिया गया है जिसके लेखक साहित्यकार व लेखक गीत चतुर्वेदी हैं।)