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कोरोना वायरस महामारी के कारण पूरे भारत में ढाई महीने से पूर्णबंदी रही जिसके कारण शहरों से गांव की तरफ प्रवासी मजदूरों का पलायन जारी रहा। लॉकडाउन के बाद करोड़ों लोगों का रोजगार खत्म हो गया। भारत के परिप्रेक्ष्य की बात करें तो ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी’ (सीएमआईई) के जारी आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन की वजह से कुल 12 करोड़ नौकरियां चली गई हैं कोरोना संकट से पहले भारत में कुल रोजगार आबादी 40.4 करोड़ थी जो इस संकट के दौर में घटकर 28.5 करोड़ हो चुकी है। इस संकट के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) एक उम्मीद बनकर लोगों के सामने उभर कर आया।

मनरेगा क्या है?

स्रोत – न्यूज क्लिक

 

मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार की गारंटी देने की योजना है जिसे 7 सितंबर 2500 विधानसभा द्वारा अधिनियमित किया गया। इस योजना के तहत ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है जो प्रतिदिन 202 रुपए की मजदूरी पर सार्वजनिक कार्य करवाती है। इस अधिनियम को ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। शुरू में इसे ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका पुन: नामकरण किया गया। मनरेगा के जरिये वृक्षारोपण के कार्य भी खूब हुए हैं। सड़कों के किनारे, जंगल और पंचायत की जमीन पर, सरकारी परिसरों में और निजी जमीन पर फलदार पेड़ लगाए गए हैं। बेशक मनरेगा के बहुत से काम विफल भी हुए हैं, लेकिन इन उदाहरणों से पता चलता है कि तकनीकी समर्थन हो, तो सामग्री के बिना भी इससे अच्छे संसाधन विकसित किए जा सकते हैं। पर तकनीकी समर्थन के साथ राजनीतिक समर्थन भी जरूरी है।

मनरेगा की बढ़ती हुई प्रासंगिकता

कोरोना वायरस के कारण शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ करोड़ों लोगों ने पलायन किया है जिसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में हैं रोजगार देने का प्रावधान शुरू हो गया है जिसमें सबसे बड़ी भागीदारी मनरेगा की है। यूपी, बिहार, राजस्थान जैसे राज्यों में मनरेगा बेरोजगार पाने की संख्या तेजी से बढ़ी है। पलायन के बाद से अकेले मई के महीने में 2.9 करोड़ परिवारों ने इस कानून के तहत काम की मांग की है जो अब तक 8 साल में सबसे ज्यादा है। फिलहाल डब्ल्यूएचओ की माने तो कोविड-19 के संकट का अभी सबसे बुरा दौर आना बाकी है यानी कि अर्थव्यवस्था का भी सबसे बुरा दौर देखने को मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों के कहे तो हमें जान और जहान दोनों ही बचाना है लेकिन साथ अपने लोगों की जीविका को भी बचाने के लिए आर्थिक मोर्चे पर कुछ बड़े फैसले लेने होंगे।
आंकड़े बताते हैं कि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार से तीन गुना ज्यादा बजट मोदी सरकार मनरेगा के लिए इस्तेमाल करने में जुटी है। बीते दिनों जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा के लिए 40 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त जारी करने की घोषणा की तो चालू वित्त वर्ष में बजट कुल एक लाख करोड़ पार कर गया। क्योंकि सरकार ने इससे पूर्व आम बजट के दौरान 61 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की थी।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एक बयान में कहते हैं, 40,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त आवंटन की घोषणा के साथ मनरेगा को अब तक की सर्वाधिक एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि आवंटित की गई है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए यह बड़ी राहत होगी।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम से साफ जाहिर हो रहा है कि इस संकट की घड़ी में मनरेगा गरीबों के लिए बहुत मददगार साबित हो रही है जब बाजार में रोजगार नहीं है तब गांव में मनरेगा से रोजगार मिलना गरीब मजदूरों की संजीवना मिलने जाता है कोई सरकार इस महत्वाकांक्षी योजना की अपेक्षा नहीं कर सकती अगर केंद्र सरकार 90 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसानों को भी मनरेगा से जोड़ दे तो किसानों को भी बहुत लाभ मिलेगा।

सोनिया गांधी: मोदी सरकार मनरेगा खत्म करने को सोच रही थी

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जनसत्ता के एक लेख में मनरेगा की प्रासंगिकता बताते हुए बीजेपी पर निशाना साधा की मोदी सरकार पिछले कई वर्षों से मनरेगा को खत्म करने पर विचार कर रही थी कि यह योजना अब लोगों के बीच प्रभावकारी साबित नहीं हो रही है।
वही मनरेगा को स्वच्छ भारत और प्रधानमंत्री आवास योजना से जोड़ने की कोशिश की और इसका स्वरूप बदलने के सारे हथकंडे अपनाए। परंतु इस समय मोदी सरकार ने दुनिया के सबसे बड़े ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा पर सबसे ज्यादा फोकस किया है।
सोनिया गांधी लिखती है कि महात्मा गांधी ने कहा था कि “जब आलोचना किसी आंदोलन को दबाने में विफल हो जाती है तो उस आंदोलन को स्वीकृति व सम्मान मिलना शुरू हो जाता है”। स्वतंत्र भारत में महात्मा गांधी की इस बात को साबित करने का मनरेगा सबसे अच्छा उदाहरण है।
इस समय मोदी सरकार इस कार्यक्रम का महत्व समझ चुकी है और यह कार्यक्रम पूरी दुनिया में एक मॉडल के रूप में प्रसिद्ध हो रहा है। और मेरा सरकार से निवेदन है कि इस समय देश पर छाए संकट से सामना करने का समय है ना की राजनीति करने का है। आपके पास एक शक्तिशाली तंत्र है का उपयोग करके आपदा की इस घड़ी में भारत के नागरिकों की मदद करें।