सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एडवोकेट प्रशांत भूषण को उनके ट्वीट के लिए अदालत की अवमानना का दोषी पाया है। ये दोनों ट्वीट भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायपालिका की आलोचना के बारे में थे। यह आदेश 3 जजों की बेंच ने पारित किया है जिसमें जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी मौजूद थे। दोषी पाए जाने के बाद अब सजा निर्धारित करने के फैसले पर 20 अगस्त को फिर से सुनवाई होनी है।
क्या है ट्वीट में?
उच्च न्यायालय ने प्रशांत भूषण के खिलाफ न्यायपालिका की आलोचना करते हुए उनके दो ट्वीट पर मुकदमा दायर किया था। ये दोनों ट्वीट इस साल जून में पोस्ट किए गए थे। पहला ट्वीट भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की मोटरसाइकिल वाली तस्वीर पर था। जबकि दूसरे में, भूषण ने देश की मौजूदा स्थिति में पिछले चार सीजेआई की भूमिका पर अपनी राय व्यक्त की थी।
इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश स्थित अधिवक्ता महेक माहेश्वरी ने 2 जुलाई को मोटरसाइकिल पर सीजेआई बोबडे से संबंधित ट्वीट पर भूषण और ट्विटर इंडिया के खिलाफ एक अवमानना याचिका दायर करने से हुई।
इस ट्वीट में वकील भूषण ने इस मोटरसाइकिल की कीमत 50 लाख बतायी और कहा था कि यह राजभवन नागपुर में एक भाजपा नेता से संबंधित है।
कोर्ट के द्वारा नोटिस जारी करने के बाद, ट्विटर ने इस ट्वीट को रोक दिया था। दूसरा ट्वीट 27 जून को किया गया, जिसमें भूषण ने कहा कि,“जब भविष्य में इतिहासकार पिछले 6 वर्षों को वापस देखेंगे कि औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र कैसे नष्ट हुआ, तो वे विशेष रूप से इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को चिह्नित करेंगे, और विशेष रूप से अंतिम 4 CJI की भूमिका”
प्रशांत भूषण ने अपने बचाव में क्या कहा?
142 पन्नों के हलफनामे में कोर्ट को दिए अपने जवाब में, भूषण ने कहा कि उनके ट्वीट न्यायसंगत हैं, और इन्हें अदालत की अवमानना नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि CJI बोबडे पर बिना हेलमेट या मास्क के मोटरसाइकिल पर एक तस्वीर में दिखाई देने वाला उनका ट्वीट, मौजूदा स्थिति को उजागर करने के इरादे से उनकी पीड़ा की एक मात्र अभिव्यक्ति भर था। जहां तक पिछले चार सीजेआई की भूमिका पर किए गए ट्वीट का सवाल है, भूषण ने कहा कि वह बस मामलों की स्थिति के बारे में अपनी बेबाक राय व्यक्त कर रहे थे।
इसके अलावा, इस याचिका ने हाल के घटनाक्रमों के प्रकाश में भूषण के खिलाफ लंबित 11 साल पुराने अवमानना मामले की अचानक लिस्टिंग पर भी सवाल उठाया था। 10 अगस्त को कोर्ट ने इस मामले की मेरिट पर सुनवाई करने का फैसला किया था। यह मामला 2009 का है जिसमें तहलका पत्रिका के साथ एक साक्षात्कार में भूषण न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे।