योगी आदित्यनाथ

प्रभुनाथ शुक्ला

भदोही, 23 अगस्त। उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘ब्रह्मण’ एक बार फ़िर केंद्र में है। 2022 को साधने के लिए सियासी दल अभी से लामबंद हो चलें हैं। विकास दुबे के साथ कई ब्राह्मणों का एनकाउंटर एक के बाद होने और भदोही से बाहुबली विधायक विजय मिश्र की गिरफ्तारी के बाद योगी सरकार पर सवाल उठने लगे हैं। समाजवादी पार्टी और बसपा ने भगवान परशुराम को केंद्र में रख कर सियासी चाल चल दिया है। कोई परशुराम पर अस्पताल तो कोई मूर्ति बनवाने का ऐलान किया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सत्र के बाद योगी सरकार ब्राह्मणों को साधने के लिए मंत्रीमंडल विस्तार में ब्रह्मण चेहरों को जगह दे सकती है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिवाद रहा है अहम फैक्टर

उत्तर प्रदेश की राजनीति जाति पोषक रहीं है। मंडल- कमंडल के बाद पूरी तरह यह स्थाई हो चली। राममंदिर आंदोलन के बाद पहली बार 2017 के आम चुनाव में भाजपा को झोली भर कर 325 सीटें मिली। यह चुनाव मोदी को आगे रख कर लड़ा गया था। हालांकि की इसमें कट्टर हिंदुत्व के प्रखर चेहरे योगी आदित्यनाथ ने भी अहम भूमिका निभाई। लेकिन विकास दुबे एनकाउंटर और विधायक विजय मिश्र की गिरफ्तारी के बाद ब्राह्मणों की नाराजगी को भुनाने के लिए सपा और बसपा सियासी दाँव चल दिया है। दोनों पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और
मायावती ने समय की नजाकत को देखते हुए अच्छा दाँव चला है। उत्तर प्रदेश में 2022 की चुनावी बिसात अभी से बिछनी शुरू हो गई है। एक बार सपा और बसपा ब्राह्मणों पर दाँव लगाकर वापसी चाहते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीँ है। हालांकि ब्राह्मणों की नाराजगी भाजपा को मुश्किल में डाल सकती है। वैसे भी राज्य की सत्ता पलटने में महज तीन फीसदी वोट काफी हैं। जबकि यूपी में ब्राह्मणों की तादात तकरीब 15 फीसदी के आसपास है। सपा- बसपा की चाल तभी सफल होगी जब चार फीसदी ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने में सफल होंगे। बसपा ने कभी एक नारा दिया था ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी दौड़ा जाएगा’। अब देखना है कि यह ब्राह्मणों को कितना लुभा पाता है।

पूर्वांचल की राजनीति में हमेशा से रहा ब्राह्मणों का रसूख

पूर्वांचल की सियासत में ब्रह्मण हमेशा से अपनी राजनीतिक अहमियत रखता रहा है। काँग्रेस में कभी पंडित कमलापति त्रिपाठी और पंडित श्यामधर मिश्र की अपनी अहमियत थीं। त्रिपाठी को केंद्र में रेल मंत्रालय जैसा अहम मंत्रालय मिला था। जबकि मिश्र को नेहरू मंत्रीमंडल में प्रथम सिंचाईमंत्री की कमान सौंपी गई थीं। इंदिरा गाँधी ख़ुद पूर्वांचल के दोनों दिग्गजों को सम्मान करती थीं। हरिशंकर मिश्र, महेंद्र पाण्डेय अलावा कई दिग्गज शुमार हैं। जिनकी लम्बी फेहरिस्त है। योगी मंत्रीमंडल में वाराणसी से दो ब्राह्मण चेहरे मंत्री हैं। जिसमें नीलकंठ तिवारी और दयाशंकर दयालु जैसे नाम शामिल हैं। लेकिन भदोही से मंत्रीमंडल में अभी कोई चेहरा शामिल नहीँ किया गया है। जबकि भदोही कालीन उत्पादन का प्रमुख केंद्र है। तकरीब 10 हजार करोड़ का कालीन यहाँ से विदेश निर्यात होता है लेकिन अभी तक किसी ब्राह्मण चेहरे को योगी मंत्रीमंडल में जगह नहीँ मिली है। जबकि ब्राह्मण चेहरे के नाम पर अभी सिर्फ़ रवींद्र त्रिपाठी हैं। क्योंकि भदोही की तीन सीटों में एक सुरक्षित है जबकि दो सामान्य है और दोनों पर ब्राह्मण चेहरे हैं। ज्ञानपुर से विजय मिश्र हैं निषादपार्टी से जीत हासिल किया जबकि भदोही से भाजपा के रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी हैं। छिटपुट आरोपों को छोड़ दें तो त्रिपाठी एक बेदाग चेहरा हैं और विकास को लेकर कटिबद्ध है। वैसे काँग्रेस के पतन के बाद रंगनाथ मिश्र को छोड़ कर भदोही से किसी ब्राह्मण चेहरे को सपा- बसपा और भाजपा सरकार में मंत्रीपद नहीँ मिला है। मिश्र को भाजपा के बाद बसपा में भी मंत्री बनाया गया था जबकि चौथी बार जीत हासिल करने वाले विजय मिश्र को मंत्रीमंडल में कोई जगह नहीँ मिल पायी। अहम सवाल उठता है कि मंत्रीमंडल विस्तार में पूर्वांचल के अहम चेहरों में क्या रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी को जगह मिल सकती है। क्योंकि भदोही में त्रिपाठी भाजपा के वर्तमान विधायक के साथ अहम चेहरे भी हैं।

सपा- बसपा सरकारों में किसी ब्राह्मण चेहरे को नहीँ मिली लाल बत्ती

भदोही में दलित- ओबीसी राजनीति पर नज़र डालें तो कई लोगों को सपा- बसपा सरकार में मंत्रीपद मिला है। वर्तमान समय में औराई से भाजपा से जीते विधायक दीनानाथ भास्कर, शारदा प्रसाद बिन्द, रामरति बिन्द, रामप्रसाद बिन्द जैसे लोगों को गैर भाजपा सरकारों में मंत्री बनाया गया। मदनलाल बिन्द और दूसरे लोगों को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। सपा और बसपा में भदोही को मंत्रीमंडल में वरीयता मिली है। जबकि भाजपा में अभी तक किसी भी फॉरवर्ड, दलित को यह जिम्मेदारी नहीँ दी गई है। सिर्फ़ रंगनाथ मिश्र को छोड़। अगर मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ तो वर्तमान राजनीति हालात को देखते हुए नाराज ब्राह्मणों को लुभाने के लिए मंत्रीमंडल में भदोही को जगह मिल सकती है। क्योंकि
योगी सरकार का साढ़े तीन साल का कार्यकाल बीत गया है। 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। विरोधी ब्राह्मण मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटा है। चेतन चौहान और कमला रानी के निधन से सीटें रिक्त हुई हैं। अभी छह नए चेहरों को जगह मिल सकती है। इसके अलावा जातीय समीकरण और ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के लिए ब्राह्मण चेहरों को मौका मिल सकता है। अच्छा परिणाम न देने पर कई की कुर्सी जा सकती है। योगी मंत्रिमंडल के सदस्यों की जातिवार समीक्षा की जाय तो की जाये तो 17 ओबीसी, 6 अनुसूचित जाति, 7 ठाकुर, 8 ब्राह्मण, 8 कायस्थ−वैश्य, 2 जाट और एक मुस्लिम की हिस्सेदारी उस समय थीं जब सरकार का गठन हुआ था। इसके बाद एक विस्तार हुआ था। अब देखना है कि पूर्वांचल से विस्तार में कौन चेहरा शामिल होगा। उसकी सुगबुगाहट अभी से शुरू हो गई है।