3 मई को पूरी दुनिया वर्ल्ड प्रेस डे मना रही है सभी पत्रकार जगत के लोग एक दुसरे को बधाई दे रहे है। भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है पत्रकारिता को। आजादी के पहले से ही भारत में पत्रकारिता ने अपना अहम योगदान दिया है। एक दौर वो भी था जब पूरे देश में आपातकाल लगाकर पत्रकारिता को कुचलने की हर एक कोशिश कि गई थी ना जाने कितने पत्रकार , संपादक जेल भेज दिए गए थे वो एक मुश्किल दौर था।
अगर बात करते है आज की स्थिति की तो 21 अप्रैल को ‘विदाउट बोर्ड वार्षिक’ की रिपोर्ट आई जिसमें 180 देशों के पत्रकारों की स्थिति देख कर उन्हें रैंक दी जाती है जिसमें भारत का 142 वें पर स्थान है।
भारत एक बार फिर प्रेस की आजादी के रैंकिंग में पिछड़ गया। 2019 में भी दो स्थान लुढ़कर 140 वे स्थान पर पहुंच गया था इस बार भी 2 स्थान नीचे आ पहुंचा है जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि भारत में प्रेस की आजादी दिन-ब-दिन कम होती जा रही है।
2018 में पत्रकारों के छह हत्या के मामले सामने आए थे इसके मुकाबले 2019 में स्थिति सुधरी नजर आयी है। परंतु इसके बाद भी भारत की रैंकिंग गिरने के कई कारण इस रिपोर्ट में बताए गए हैं जैसे जिन पत्रकारों ने कुछ बोला या लिखा है उनके खिलाफ सुनियोजित तरीके से सोशल मीडिया पर नफरत फैलाई गई है। जिससे उस पत्रकार की छवि पर प्रभाव पड़ा।
वहीं दूसरी तरफ कश्मीर पर लगाई गई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पाबंदी के कारण भी रैंकिंग गिरी कहा गया की कभी भी इतने लंबे समय के लिए किसी प्रेस पर पाबंदी नहीं लगाई थी।
भारत में पत्रकारों के खिलाफ पुलिस ने भी हिंसात्मक कार्यवाही की है जिसके कारण पत्रकारों को खामियाजा झेलना पड़ा है।
वैसे दक्षिण एशिया की रैंकिंग अधिकतर बुरे स्तर पर ही नजर आई है जहां भारत दो पायदान खिसकर कर 142वे नंबर पर पहुंच गया है वहीं पाकिस्तान तीन पायदान नीचे पहुंच गया है तीन स्थान के नुकसान से 145वे स्थान पर आ गया है। बांग्लादेश देश इस बार 151 वें स्थान पर है।
नार्वे इस बार रैंकिंग में पहले स्थान पर है ये लगातार चोथा साल है जिस पर अभी भी कायम है। वही अंतिम स्थान पर उत्तर कोरिया है।