अंजना शर्मा

आज हमारा देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व इस कोरोना महामारी की चपेट में आ चुका है। इस महामारी के प्रकोप से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है। चाहे वह दिहाड़ी मजदूर हो, मध्यमवर्ग हो, व्यापारी हो, वकील हो इत्यादि। अगर यूं कहें कि आज विश्वस्तर पर आर्थिक नींव हिल चुकी है तो गलत नहीं होगा।

कहते हैं सुचारू न्यायप्रणाली एक अच्छे लोकतंत्र की तस्वीर दिखाती है। हमारी न्यायपालिकाओं ने पहले भी संकट की घड़ी देखी है और संकट प्रबंधन भी भली भांति किया है। इतने संकट के बावजूद भी न्यायालय के तौर तरीके कभी नहीं बदले। बहरहाल यह कोरोना काल का संकट एक अलग तरह का संकट बन के उभर चुका है जिससे आज हर एक क्षेत्र के कार्य प्रभावित हुए हैं। जिसके कारण हमारी न्यायिक प्रतिष्ठानों में भी कई जरूरी एवं गंभीर बदलाव किए गए हैं। यह ऐसे बदलाव हैं जो कई साल से चर्चा में तो रहे मगर इनका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा था, लेकिन यह परिवर्तन कानूनी प्रतिष्ठानों में इस कोरोना काल ने करवा ही दिया है।

इस संकट के समय में सुप्रीम कोर्ट को कई ऐतिहासिक कदम उठाने पड़े है जहाँ वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये मामलों की सुनवाई शुरू हुई है वहीं अब से ड्रेसकोड के नियमो में भी रियायत दी गयी है क्योंकि पुराने तरीके से गाउन पहनने से संक्रमण का संकट ज्यादा मंडराएगा इसी खतरे को टालने के लिए यह कदम उठाये गए हैं।

पिछले कुछ महीनों में हम देख सकते हैं कि लाॅ कालेजों में भी ऑनलाइन क्लासेज वेबिनार का रुख किया है फिर चाहे लॉ फर्म्स भी क्यों न हो सभी जगह प्रौद्योगिकी एक परिचालन जीवन रेखा बन गयी है। इन सब में कहीं न कहीं वकीलों की मुश्किलें भी बढ़ी है क्योंकि फिजिकल कोर्ट्स में, बड़े व्यापारों में अल्पविराम लग चुका है बड़े बिज़नेस सौदे नहीं हो रहे हैं। रोज कोर्ट की सुनवाई से कमाने वाले वकीलों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है हालांकि लेबर लॉज़ और एम्प्लॉयमेंट लॉज़ के वकीलों के काम में इजाफा हुआ है क्योंकि कम्पनीज़ रिस्ट्रक्चरिंग करना चाहती हैं, एम्प्लॉयमेंट कॉस्ट कम करना चाहती है और इससे जुड़े काम भी। घातक कोरोना वायरस ने क़ानूनी प्रतिष्ठानों द्वारा लंबे समय तक विरोध किये गए औज़ार और वैकल्पिक काम के प्रतिमानों की क्षमता का दोहन किया है। कोरोनाकाल के मद्देनजर देशभर की अदालतें इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग, ईमेल उल्लेखों और वीडियो कांफ्रेंसिग वीडियो कॉलिंग जैसी सुविधाओ के माध्यम से ऑनलाइन सुनवाई के साथ-साथ ऑनलाइन मोड में चली गयी है।

प्रतिबंधित न्यायिक पहुंच का यह एकमात्र मॉडल प्रारम्भिक लाकडाउन के लिए कारगर रहेगा मगर न्यायलयों को निकट भविष्य में पूर्णकालिक सुनवाई के तरीकों को फिर से शुरू करना ही होगा। भले ही वह पहले से काफी अलग होगा जैसा कि हम जानते थे। हाल ही में जो सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों द्वारा ऑनलाइन सुनवाई हो रही है; प्रयास अच्छा है मगर देखा जा रहा है कि इसको लाकडाउन के बाद यदि लागू रखना होगा तो वकील, कोर्ट स्टाफ सभी को ट्रेनिंग की आवश्यकता होगी क्योंकि तकनीकी नॉलेज अति आवश्यक रहेगी।

दुनिया भर के उद्योग और सेवाएं ऑफलाइन फ्रेमवर्क से पूरी तरह से ऑनलाइन सिस्टम के लिए तत्काल और तेजी से बदलाव कर रहें हैं। वास्तव में कई देश पहले ही ऑनलाइन अदालतों को सक्षम कर चुके हैं, और हम यह अपेक्षा कर सकते हैं कि भारत भी अब बहुत पीछे नहीं रहेगा।

इस महामारी से त्रस्त होकर यूके ने कोरोनावायरस एक्ट 2020 पारित कर दिया और अब वहां स्काईप फ़ॉर बिज़नेस इत्यादि के माध्यम से जस्टिस दिया जाएगा। यहां तक कि आम जनता लाइव ऑडियो या वीडियो सम्मेलनों में भाग लेकर अपने न्यायलयों के नियमित संचालन की सुविधा का लाभ उठा पाएगी। इस तौर- तरीके को लागू करने के लिए अनेकानेक कानूनी संशोधन किए गए हैं। उसी प्रकार सिंगापुर, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया भी इस तरीके के प्रावधान अपना रहे हैं।

भारत पिछले 15 वर्षो में इस छलांग की तैयारी कर रहा था। दिसंबर 2004 में भारत सरकार ने ई-कमेटी ऑफ दा जुडिशरी का गठन किया था।
ऑब्जेक्टिव अककंप्लीशमेंट रिपोर्ट 2019 फेज 2 के पार्ट 2 के हिसाब से हमारे यहाँ अभी तक 3388 कोर्ट परिसर और 16755 कोर्ट रूम्स कंप्यूटराइज कर दिए गए हैं। वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के साधन अब तक 3240 कोर्ट परिसरों और 1272 जेल में लग चुके हैं। 2015 में भी राम रहीम (डेरा सच्चा सौदा) उनका एविडेंस पंचकूला के स्पेशल कोर्ट ने वीडियो कांफ्रेंसिग द्वारा करवाया था।

इस महामारी ने रातों-रात ऑनलाइन माध्यम को आज का नार्मल फंक्शन बना दिया है। न्यायालय के इलेक्ट्रॉनिक दाखिलों, तर्कों और आवेदनों के पंजीकरण को अनिवार्य करने से समय की बचत भी होगी और पुराने मामलों को भी कंसेंट के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक तरीके से चलाया जा सकेगा। इससे सभी केस के आदेश जल्दी ही आ जाया करेंगे। ज्यादा इंतज़ार की ज़रूरत नहीं रहेगी। हालांकि यह उम्मीद की जा सकती है कि रिटेन सबमिशन मामले की प्रस्तुति के लिए प्राथमिक मोड हो सकता है। संबंधित पीठ के कुछ मामले मौखिक सुनवाई द्वारा किये जा सकते हैं, जहाँ वीडियो कांफ्रेंसिग में समयबद्ध तरीके से तर्क प्रस्तुत करने वाले वकीलों से सहायता मिलेगी।

इस तरीके से भारत में भी अदालत सुदूर कामकाजी प्रारूपों के माध्यम से पूर्ण कार्यक्षमता को शीघ्रता से शुरू कर सकती है, जबकि चिकित्सकों के हिसाब से सामाजिक दूरिया और भीड़ भरे कोर्ट रूम से बचना ज़रूरी है। निचली अदालतों में हालांकि अभी तक इलेक्ट्रॉनिक बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं हुआ है। कुछ मामलों की श्रेणियां में तर्कों के आधार के रूप में लिखित प्रस्तुतिकरण को अपना सकती है और मौखिक सुनवाई का एक नया सिस्टम अपना सकती है ताकि इस महामारी में भीड़-भाड़ से बचा जा सकेगा। इस तरह से सोशल डिस्टेनसिंग का ख्याल भी रखा जा सकेगा।

हमारा मानना है की आनलाइन अदालतें अदालती प्रक्रिया को कारगर बना सकती हैं। लेकिन साथ ही साथ अन्य न्यायिक प्रगति को भी विकसित करना होगा।
हम उम्मीद करते हैं कि भारत का न्याय वितरण तंत्र भी छोटे क्रम में दुनिया भर के सम्पन्न देशों द्वारा डिजिटल पेशकश को पकड़े। हम सभी को इस बदलाव का स्वागत करना चाहिए।

(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वक़ील हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं।)