स्रोत - गूगल

हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में 30 मई का दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है आज ही के दिन पंडित युगल किशोर शुक्ल ने हिंदी पत्रकारिता का पहला हिंदी सप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू किया था युगल किशोर शुक्ल ने काफी दिनों तक ‘उदंत मार्तण्ड’ को चलाया और पत्रकारिता करते रहे लेकिन आगे के दिनों में ‘उदंत मार्तण्ड’ को बंद करना पड़ा क्योंकि उसे चलाने के लिए उनके पास पर्याप्त धन नहीं था। इस प्रकार भारत में हिंदी पत्रकारिता की नीव जुगल किशोर द्वारा डाली गई। तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी की हिंदी पत्रकारिता इतना लंबा सफर तय करके अपना इतिहास रचेगी।
उस समय अलग-अलग क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषा में कई लोग समाचार पत्र प्रकाशित कर रहे थे उसी में पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा। भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। राममोहन राय ने कई पत्र शुरू किये। जिसमें अहम हैं-साल 1816 में प्रकाशित ‘बंगाल गजट’। बंगाल गजट भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है। इस समाचार पत्र के संपादक गंगाधर भट्टाचार्य थे। इसके अलावा राजा राममोहन राय ने मिरातुल, संवाद कौमुदी, बंगाल हैराल्ड पत्र भी निकाले और लोगों में चेतना फैलाई।

स्वतंत्रता पूर्व हिंदी पत्रकारिता का दौर
स्वतंत्रता के पहले हिंदी पत्रकारिता को चार प्रमुख हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है।
हिंदी पत्रकारिता का उदय काल (1826 -67)

स्रोत – गूगल

30 मई 1826 को पंडित युगल किशोर के समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ के प्रकाशन से हिंदी पत्रकारिता का आरंभ होता है इस अवधि में अनेक महत्वपूर्ण समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं प्रकाशित हुई जिनमें राजा राममोहन राय का ‘बंगदूत’ , ‘राजा शिवप्रसाद सितारे’ अजी मुल्ला खान का ‘पयारमे आजादी’, तारा मोहन नेत्र का ‘सुधाकर’ आदि शामिल है। पत्रकारिता की शुरुआती दौर में हिंदी पत्रकारिता का कोई उदाहरण नहीं था इसलिए शुरुआती दौर के पत्रकारों ने जो लिखा वह अपनी समझ, बुद्धि और विवेक के जरिए लिखा। इस काल के अधिकांश लोग आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे जो आरंभिक दौर के मामले में काफी अटपटी हुआ करती थी। उस टाइम के पत्रों के अगर नमूने देखे जाए तो उसमें कई तरह भाषा का प्रभाव दिखता है जैसे ब्रज, मैथिली, अवधि आदि। यह बोलियां हिंदी लेखन की परंपरा से चली आ रही थी साथ ही इस दौर में अंग्रेजी और फारसी भाषाओं का भी दबदबा था जिस कारण इन भाषाओं का भी हिंदी पत्रकारिता की भाषा पर प्रभाव पड़ना निश्चित था।

भारतेंदु युग (1867 – 1900)

भारतेंदु हरिश्चंद्र

हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में 1867 बहुत महत्वपूर्ण वर्ष था इस वर्ष भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविवचन सुधा का प्रकाशन आरंभ किया था। भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में आगमन करने से पत्रकारिता की भाषा अपने विकास के कदम को आगे बढ़ाती है भारतेंदु हरिश्चंद्र ना केवल हिंदी साहित्य परंपरा के जानकार थे बल्कि उनकी पकड़ संस्कृत, अंग्रेजी और फारसी जैसी भाषाओं पर भी पूरा अधिकार था। उन्होंने हिंदी भाषा को अपने पूर्व की पत्रकारिता की तुलना में थोड़ा व्यवस्थित करने का प्रयास किया भारतेंदु ना केवल अच्छे पत्रकार थे बल्कि साहित्य में भी उनकी अच्छी पकड़ थी जिस कारण तत्कालीन पत्रकारों और लेखकों को हिंदी में सुधार करने के लिए प्रेरित किया।
इस युग में भाषा ,भाव के अनुरूप शब्दों तथा वाक्यों को अधिक व्यवस्थित किया गया।

द्विवेदी युग (1900 – 1920)

महावीर प्रसाद द्विवेदी

सन् 1900 का युग हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में महत्वपूर्ण युगों में से एक युग है इस वर्ष ‘सरस्वती’ नामक पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ था इस प्रकाशन के 3 साल बाद ‘सरस्वती पत्र’ के प्रकाशक महावीर प्रसाद द्विवेदी बने द्विवेदी जी ना केवल अच्छे पत्रकार थे बल्कि उन्हें साहित्यकार और भाषा का वैज्ञानिक भी माना जाता था सरस्वती पत्रिका के संपादन के दौरान उन्होंने पत्रकारिता की भाषा को बहुत समृद्ध किया उन्होंने अपने साथी पत्रकारों और साहित्यकारों को कुशल नेतृत्व करते हुए पत्रकारिता और हिंदी दोनों भाषा को शिखर तक पहुंचाया। द्विवेदी जी ना केवल सरस्वती पत्रिका के लिए काम करते थे बल्कि अन्य समाचार पत्र, पत्रिकाओं के लिए भाषा के मानक तय किया करते थे इस पूरे दौर में पत्र-पत्रिकाओं का तेजी से विस्तार हुआ और देश के कोने- कोने से पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी जैसे कि दैनिक आज, मातृभूमि विजय आदि।
महावीर प्रसाद द्विवेदी सरल और सुबोध भाषा के पक्षधर थे ही साथ ही वह प्रचलित भाषा को अपनाने के पक्ष में भी थे उन्होंने संस्कृत के ‘तत्सम’ शब्दों के बजाय सरल प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया साथ ही अरबी फारसी के भी केवल प्रचलित और सरल शब्दों को प्रयोग में लाते रहे इन सबके बावजूद उनकी भाषा व्याकरण और शुद्ध होती गई। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी के व्याकरण को भी सुधारने को प्रोत्साहित किया।

गांधी युग (1920 – 47)

महात्मा गांधी

गांधी युग देश में स्वतंत्रता संग्राम के चरम उत्कर्ष का काल है इस दौर में पत्रकारिता का स्वरूप भी इन आंदोलनों के साथ- साथ बदला इस दौरान अनेक प्रमुख समाचार पत्र, पत्रिकाएं आरंभ हुए जिन्होंने समाज को नई दिशा दी इन समाचार पत्रों में ‘डॉक्टर भीमराव अंबेडकर’ का ‘मूकनायक’ ,’मशहूर क्रांतिकारी’ तथा साहित्यकार यशपाल का ‘विपलव’ आदि। इस काल में समाचार पत्र-पत्रिकाओं की इस हद तक सिद्ध हुई कि अकेले दिल्ली से 1500 समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे थे और लगभग सभी का उद्देश्य देश की स्वतंत्रता तथा जनता का नैतिक विकास करना था इस समय के अधिकांश पत्रकार अंग्रेजी के साहित्यकार और पत्रकारिता की परंपरा से परिचित थे और हिंदी पत्रकारिता को अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले लाना चाहते थे इस काल के पत्रकारों ने बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार मौजूद थे यही वजह है कि इस काल की पत्रकारिता की भाषा संवेदना के स्तर पर बहुत विकसित हुई और राजनीतिक आंदोलन के लगभग हर रूपों का प्रतिनिधित्व करती थी
इस समय की पत्रकारिता से हर तबका स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ने लगा इस काल के पत्रकारों ने हिंदी भाषा के लगभग सभी संभव रुपो का इस्तेमाल किया जो विद्वानों तथा मध्यम वर्ग से लेकर ग्रामीण श्रमिकों और अन्य आम जनों तक सरलता से पहुंच सकें। साहित्यिक प्रगति के साथ पत्रकारिता की भाषा में भी एक रोचक स्वरूप प्राप्त किया जो गहरे संदेश के साथ रोचकता का भी समावेश होता था।
इस काल में हिंदी पत्रकारों और पत्रकारिता का महत्व बहुत बढ़ गया था लोग उनकी बात को दिशा-निर्देश की लेते थे इस काल के अधिकांश पत्रकारों पर महात्मा गांधी के आंदोलनों और विचारों का प्रभाव था और ‘हरिजन’ जैसे समाचार पत्रों का प्रकाशन किया गया हिंदी पत्रकारिता का महत्व इस काल में इस हद तक बढ़ गया था कि हर बड़ा क्रांतिकारी आंदोलनकारी किसी ना किसी समाचार पत्र से जुड़ा हुआ था और अपने विचारों को लोगों तक पहुंचा रहा था।

स्वतंत्रता पश्चात से आपातकाल तक का दौर
स्वतंत्रता के पश्चात हिंदी पत्रकारिता का नया दौर आरंभ हुआ आजादी से पहले पत्रकारिता को व्यापक रूप से एक मिशन माना जाता था और उस दौर के पत्रकारों ने आजादी हासिल करने में अपनी लेखनी के माध्यम से योगदान दिया स्वतंत्रता मिलने के बाद हिंदी पत्रकारिता के स्वरूप में परिवर्तन आना स्वभाविक था पत्रकारिता के लिए देश की स्वतंत्रता का लक्ष्य पूरा होने के बाद नागरिकों के अधिकारों और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करवाने का नया उद्देश्य था इस प्रकार हिंदी पत्रकारिता की भाषा में नए उद्देश्य के अनुरूप नया तेवर आना लाजमी था भाव के स्तर पर या पत्रकारिता अंग्रेजी सरकार के समक्ष जनता की इच्छाओं और उनके अधिकारों की नुमाइंदगी करती नजर आती थी।
हिंदी पत्रकारिता स्वतंत्रता के पश्चात तेजी से व्यवसाय में तब्दील हो रही थी निजी प्रकाशकों के अलावा तेजी से बड़े पूंजीपति पत्रकारिता के प्रकाशन की ओर अग्रसर हो रहे थे पत्रकार भी अब पत्रकारिता के जरिए आजीविका कमाना चाहते थे इस प्रकार आजीविका और मुनाफे की अपेक्षा से नहीं-नहीं मीडिया हाउस और समाचार पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी भारतीय सरकार होने के कारण देश में औद्योगिक विकास भी धीरे-धीरे होने लगा था। इस समय पत्रकारिता के माध्यम से व्यवसाय को आगे बढ़ाया जाने लगा जिसमें तमाम विज्ञापन लोगों तक पहुंचाए जाने लगे।
अब समाचार पत्रों को सजावटी और आकर्षित दिखाने के लिए विज्ञापनों का सबसे बड़ा योगदान रहा। आजादी के बाद भाषा के विकास का दायित्व निजी हाथों के साथ – साथ सरकारी नियंत्रण में भी चला गया सरकार ने हिंदी भाषा के मानवीकरण के लिए प्रयास शुरू किए इनमें शब्दकोश और व्याकरण के नियमों संबंधी प्रयास शामिल थे।

आपातकाल से लेकर 90 के दशक तक पत्रकारिता का दौर
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी थी और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी इसके कारण लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित हो गई। आपातकाल के दौरान देश जिस तरह से राजनीतिक उथल-पुथल के दौर में गुजरा उससे पैदा हुई राजनीतिक जागरूकता एक तरफ नई तरह की पत्रकारिता की मांग कर रही थी वहीं राजनीतिक दबाव के चलते पत्रकारिता का एक अलग ही रूप दिखाई दे रहा था जिसमें एक तरफ सरकार की दमनकारी नीतियां थी तो वहीं दूसरी तरफ प्रेस की आजादी के लिए लड़ते हुए पत्रकार जो अपनी लेखनी के कारण कई बार जेल भी गए परंतु वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी पत्रकार थे जो सरकार की चापलूसी करते रहे।
समाचार पत्र-पत्रिकाओं पर सरकारी कहर का असर था ही साथ ही इस साल की हिंदी पत्रकारिता की भाषा पूरी तरह से नीरस और उबाऊ प्रतीत होती थी वह जनता के वास्तविक भाव से कटी और आलोचनात्मक दृष्टि से वंचित भाषा है शंकर की कैची ने भाषा के स्वरूप को ही बिगाड़ दिया था कई बार ऐसा भी हुआ कि समाचार पत्र-पत्रिकाओं की लेख और खबरों को सरकारी अधिकारियों द्वारा एडिट किया जाता था इस दौरान तथ्य और भाषा को तोड़ा मरोड़ा भी गया।
1977 में आपातकाल हटा दिया गया और लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की हार हुई इसके बाद देश की जनता में आपातकाल के दौरान हुई घटनाओं राजनीतिक उठा – पटक विपक्षियों के विरोध और जनता के बीच से उठने वाली विद्रोह की आवाजों को जानने की जिज्ञासा पैदा हुई आपातकाल के दौरान जिन समाचार पत्र पत्रिकाओं ने सरकार के साथ समझौते कर लिए थे वह जनता की इस जिज्ञासा को पूरा नहीं कर सके।
ऐसे में कई नए समाचार पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित हुई जिनमें रविवार नामक पत्रिका प्रमुख है जिसे 1977 में ‘आनंद बाजार’ पत्रिका समूह ने निकाला था। इस समाचार पत्रिका में आपातकाल के दौरान हुई फर्जी मुठभेड़, दमनकारी, भ्रष्टाचार आदि की कहानियां छपा करती थी।

90 के दशक से लेकर आज तक का दौर
1990 से हिंदी पत्रकारिता ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास में भी बड़ा परिवर्तन आया इस दौरान राजनीतिक, आर्थिक, तकनीकी इत्यादि क्षेत्रों में कई प्रमुख परिवर्तन हुए सबसे अहम परिवर्तन ग्लोबलाइजेशन और उदारीकरण के रूप में सामने आया। जिसमें भारत ने अपने बाजार को अंतरराष्ट्रीय व्यापार कंपनियों के लिए खोल दिया जिसके कारण व्यापार-व्यवसाय वाणिज्य इत्यादि क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा तेजी से बड़ी और कंपनियों ने मुनाफा कमाने के लिए कई नई तरीके अपनाएं। वही दूसरी और जनता को लुभाने के लिए कंपनियों ने विज्ञापन पर जमकर काम किया और मीडिया हाउस को पूर्ण रूप से इस्तेमाल किया प्रिंट मीडिया ही नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आदि ने भी भूमिका निभाई।
आज के दौर में यह कहना गलत नहीं होगा की खबरों की जगह आज विज्ञापन ने ले ली है कई विज्ञापन को इस तरह पेश किया जाता है जैसे कि वह खबर ही हो। आज पत्र-पत्रिकाओं की भाषा में भी बहुत बड़ा बदलाव देखा गया है जिसमें मध्यमवर्ग और युवाओं को लुभाने के लिए अंग्रेजी और हिंदी मिश्रित भाषा का प्रचलन शुरू हो गया है।