राहुल कुमार दोषी
चले जाना ही दुनिया की अंतिम सच्चाई है; मुझे, आपको, इसे और उसे सबको चले जाना है। कल इरफ़ान सर चले गए थे और आज ऋषि कपूर साहब चले गए। समय को कुछ हो सा गया है। ऐसे थोड़े होता है कि दो दिनों में दो सितारे गायब हो जाए; मातम पे मातम बर्दाश्त करने की भी सीमा होती है।
क्या करें! दोनों सच्चाई कोई कपोल कल्पना नहीं है। अब सच में दोनों नहीं रहे। रहने में जितना सुकून है उतनी ही पीड़ा किसी के ना रहने में है। लगातार दो दिनों से सिनेमा जगत जितना दंग है उतना ही आम नागरिक! दिलों पे राज करने वाले चले गए, यह इतनी जल्दी कैसे स्वीकार होगा?
दोनों के अपने खास तेवर थे। दोनों मुखर थे। दोनों ने अपनी अदाकारी से लोटपोट किया और सचेत भी; थोड़ा ठहर जाते तो अच्छा रहता। हिन्दी सिनेमा में उत्पन्न इस शून्यता को भरना नामुमकिन होगा। आप दिल से नहीं जाओगे जनाब।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र रहे इरफ़ान ख़ान साहब ने हिंदी मीडियम,लाइफ ऑफ़ पाई, द लंचबॉक्स, जुरैसिक वर्ल्ड, स्लमडॉग मिलियनेयर, पीकू, मदारी, पान सिंह तोमर, मकबूल, तलवार, द नेमसेक, डी-डे, हैदर, हासिल, द वारियर, किस्सा, रोग और ये साली ज़िन्दगी जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया।
ऋषि कपूर साहब ने बॉबी, चाँदनी, दीवाना, मेरा नाम जोकर, अमर अकबर एन्थोनी, प्रेम रोग, मुल्क़, डी-डे, बोल राधा बोल, नसीब अपना अपना, साजन का घर और दो दूनी चार जैसी फिल्मों से अपने अभिनय को धार दी।
इरफ़ान ख़ान साहब “बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में।”, “ये शहर हमें जितना देता है उससे कहीं ज्यादा ले लेता है।”, “हमारी तो गाली पर भी ताली पड़ती है और हमें आज भी राजा भैया बुलाया जाता है।”, “शराफत की दुनिया का किस्सा ही खत्म, अब जैसी दुनिया वैसे हम।”, “आदमी जितना बड़ा होता है, उसके छुपने की जगह उतनी ही कम होती है।”, “डेथ और शिट किसी को, कहीं भी, कभी भी आ सकती है।”, और “तुम मेरी दुनिया छीनोगे, मैं तुम्हारी दुनिया में घुस जाउंगा।” जैसे मशहूर डायलॉग के लिए जाने जाएंगे।
जबकि ऋषि कपूर साहब “बादशाहत भाई-चारा को नहीं देखती।”, “हर इश्क का एक वक्त होता है, वो हमारा वक्त नहीं था। पर इसका ये मतलब नहीं कि वो इश्क नहीं था।”, “हम आज जो फैसला करते है वही हमारे कल का फैसला करेगा।”, “नवाजिश, करम, शुक्रिया, मेहरबानी, मुझे बक्श दिया आपने जिंदगानी।”, और “सभी इंसान एक जैसे ही तो होते हैं, वही दो हाथ, दो पांव, आंखें, कान, चेहरा सबके एक जैसे ही तो होते हैं। फिर क्यों कोई एक, सिर्फ एक ऐसा होता है, जो इतना प्यार करने लगता है कि अगर उसके लिए जान भी देनी पड़े तो हंसते हंसते दी जा सकती है।” जैसे सुपरहिट डायलॉग के लिए जाने जाएंगे।
असली अदाकारों में से बेहतरीन का चले जाना ठीक नहीं। दोनों किसी एक फ़िल्म या एक अदाकारी के लिए नहीं जाने जाते थे। जिस भी फ़िल्म में काम किया उसे भलीभांति जीने में कामयाब रहे। खास अंदाज से पल भर में ही पलकों पे बैठ जाने की महारथ हासिल कर रखे थे जनाब ने। छाप ऐसे छोड़ते कि वास्तविक जीवन में संबंधित कैरेक्टर नज़र आने लगते थे।
इरफ़ान साहब तो कुछ न बोलकर भी अपनी आँखों से संचार करते थे। संवाद ऐसा कि रील नहीं रियल लाइफ प्रतीत हो। कोई भी फ़िल्म उठा लीजिए कुछ अलग ही महसूस होगा। क्या बॉलीवुड, क्या हॉलीवुड; सभी जगह अपना लोहा मनवाया जनाब ने।
चॉकलेटी हीरो के नाम से मशहूर ऋषि कपूर साहब अपने भाइयों ही नहीं, चाचाओं तथा पिता पर भी भारी पड़ते हैं। उन्हें कपूर खानदान का सबसे प्रतिभाशाली अभिनेता कहा जा सकता है।
दोनों लीजेंड को अदाकारी की दुनिया में नया मानक स्थापित करने के लिए शुक्रिया! हँसाने, रुलाने और गंभीर मुद्दों से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया! आप की अनुपस्थिति बहुत खलेगी। यूँ छोड़ कर जाना न था, आपसे बहुत कुछ देखना बाकी रह गया। ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे! अलविदा सर…
(लेखक पत्रकार हैं)
यह उनके निजी विचार है