वाराणसी:लॉकडाउन अवधि में सेवाज्ञ संस्थानम् रोजाना सायं चार बजे संस्था के फेसबुक पेज पर डिजिटल व्याख्यानमाला आयोजित कर रही है। व्याख्यानमाला के चौथे दिन शनिवार को अभय कुमार क्षेत्र धर्म जागरण प्रमुख पूर्वी उप्र लाईव रुबरु हुए। देशभक्ति विषय पर व्याख्यान दिए।
उन्होंने कहा कि धर्म भाषा भूमि इतिहास संस्कृति स्वतंत्रता पूर्वजों की गौरवशाली विरासत है। हमारे पूर्वज मातृभूमि के लिए जीते थे। विरासत की रक्षा के लिए प्राण त्याग देते थे। आज हमें पूर्वजों से प्रेरणा लेकर देशभक्ति सीखने की आवश्यकता है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में तपस्वी क्रांतिकारियों की देशभक्ति प्रसंग को प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब विरासत संकट से तो जन-जन को त्यागवृति से विरासत की रक्षा करनी चाहिए।
उन्होंने भारतीय विरासत की संघर्ष यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारे देश के जन-जन में देशप्रेम की थोड़ी कमी थी। जिससे हमारा देश धनवान ज्ञानवान बलवान बुद्धिमान होते हुए भी लंबी अवधि तक पराधीन था। 326 ई पूर्व से 1947 तक स्वाधीनता के लिए संघर्षरत था। उन्होंने कहा कि 1857 ई में वैचारिक परिवर्तन हुआ। जनमानस में मातृभूमि की स्वाधीनता की चेतना जाग्रत हुई। राजा महाराजा सहित विद्यार्थी व्यापारी शिक्षाविद् आदि जन-सामान्य स्वाधीनता आंदोलन में भागीदार बनें। करीब नब्बे वर्ष की कड़ी संघर्ष के बाद 14 अगस्त1947 को हमारे देश विदेशी सत्ता बेदखल हुईं। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वाधीन हो गया।
उन्होंने कहा कि देश को 16 अगस्त 1947 से नये संदर्भ में जीने की आवश्यकता थी। परंतु देशवासी नये संदर्भ को समझ नहीं पाये। पराधीन भारत में देशभक्ति की प्रतीक बमबाजी आगजनी तोड़फोड़,राजकीय नुकसान आदि प्रवृत्ति को स्वतंत्र भारत में नहीं बदल पाये। जिससे धन ज्ञान शौर्य चातुर्य से संपूर्ण भारत शीर्ष पर नहीं पहुंच पाया। उन्होंने कहाकि देश के प्रति जनश्रद्धा से ही देश की विरासत शीर्ष पर स्थापित हो सकती है।
उन्होंने सृष्टि की रचना को समझाते हुए कहा कि भारत की वर्षोन्नति के लिए हमें पीछे मुड़कर अपने पूर्वजों व विरासत को समझना चाहिए। उन्होंने राष्ट्र पुर्ननिर्माण का आह्वान करते हुए कहा कि देश कहां है? खोजना पड़ेगा सभी क्षेत्रों में देश को आराध्य बनाना पड़ेगा। तभी भारत शीर्ष पर स्थापित होगा ।
उन्होंने कहा कि वर्तमान युग देश के लिए जीने का युग है। ऐसे में प्रत्येक देशवासी को त्यागपूर्ण जीवनशैली अपनाना चाहिए धनबचत करते हुए धर्म-सेवासेवा करना चाहिए। भारतीय विरासत का आधार परिवार को संरक्षित कर देश की उपासना करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि त्यागवृति से विरासत की रक्षा करना ही देशभक्ति है।
कार्यक्रम का संयोजन सेवाज्ञ संस्थानम् ने किया और धन्यवाद ज्ञापन रजनीश चौरसिया ने दिया।