बुधवार को आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा आयोजित शंकर व्याख्यानमाला में दक्षिण कैलिफ़ोर्निया वेदांत समिति के सहायक मंत्री स्वामी सत्यमयानंद जी का उद्बोधन हुआ। रामकृष्ण मिशन के संन्यासी स्वामी सत्यमयानंद ने सत्-चित्-आनंद विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दिया।
आचार्य शंकर चिर प्रासंगिक
स्वामीजी ने बताया कि कुछ सदियों से लोग शंकर को अधिकाधिक पढ़ रहे हैं और उनके बारे में जान रहे हैं। वे अपने समय में ही नहीं, बल्कि आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली अनेक सदियों तक प्रासंगिक रहेंगे। उन्होंने इतनी अल्पायु में न जाने कितनी सदियों के लिए दिशा दे दी।
आज वेदांत की आवश्यकता इन चार कारणों से –
स्वामीजी ने कहा आज विश्व को वेदांत की आवश्यकता है। आज के समय में ज्ञान की अनेकता, धर्मों की भिन्नता, जीवनशैली की जटिलता से उत्पन्न मानसिक अवसाद और सत्य के प्रति व्यक्तिगत रुझान – इन सबको एक सामंजस्य की आवश्यकता है। यह एकत्व अद्वैत वेदांत से संभव है।
स्वामीजी ने बताया शंकर मायावादी नहीं, ब्रह्मवादी थे। हमें आज स्वयं के स्वरूप को जानने की आवश्यकता है। हमारा अस्तित्व जानकर ही हम अपना स्वरूप जान सकते हैं। आत्मस्वरूप का वर्णन उपनिषद में है। इसीलिए शंकर ने उपनिषद को आधार बनाया। सत्-चित्-आनंद आत्मा के लक्षण नहीं हैं बल्कि यही आत्मतत्त्व हैं।
वेदांत केवल दर्शन नहीं, अनुभव का विषय
स्वामीजी ने शास्त्राध्ययन और आत्मानुभूति दोनों का महत्त्व बताते हुए कहा कि साधक जब स्वाध्याय करता है तो उपनिषद की शब्दावली समझता है। शास्त्र का श्रवण, मनन कर निदिध्यासन करता है, उसके बाद सत्-चित्-आनंद स्वरूप ब्रह्म की अनुभूति होती है। वेदांत अनुभव का विषय है, अनुभूति का विषय है। ये केवल एक दर्शन नहीं है। अद्वैत साक्षात्कार होने से हमारी स्वयं व विश्व के प्रति दृष्टि बदल जाती है। हम स्वयं को जानकर विश्व को जान सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद भी विश्व को वेदांत का महत्त्व समझाया। हम अविद्या और माया के कारण अपने सच्चिदानंद स्वरूप को नहीं जान पाते हैं – जो स्वयंप्रकाश है।
जो आत्मा का स्वरूप है वही ब्रह्म का ही स्वरूप है, अतः ब्रह्म को जानने के लिए हमें स्वयं को जानना आवश्यक है। आने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति करने के लिए वेदांत ही उचित माध्यम है।
स्वामीजी का परिचय –
_स्वामी सत्यमयानन्द रामकृष्ण मिशन के सन्यासी व दक्षिण कैलिफोर्निया वेदान्त समिति के सहायक मंत्री हैं। सन 1988 में अद्वैत आश्रम कलकत्ता में आप रामकृष्ण परंपरा में दीक्षित हुए और वहाँ अनेक दायित्वों का निर्वहन किया। आप इस परंपरा के 12वें प्रमुख स्वामी श्री भूतेशानन्द के अनन्य शिष्य हैं। सन 2008 में स्वामीजी परिवीक्षक प्रशिक्षण केंद्र, बेलूर मठ में आचार्य बने।_
_सन 2010 में अद्वैत आश्रम, मायावती से आपने स्वामी विवेकानंद द्वारा प्रारम्भ की गई पत्रिका प्रबुद्ध भारत के संपादक का दायित्व ग्रहण किया। 2014 में आप रामकृष्ण मिशन आश्रम कानपुर के सचिव के रूप में पदस्थ हुए। स्वामीजी ने वेदान्त विषयक अनेक पुस्तकों का लेखन किया है। विश्व के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में आपके व्याख्यान हो चुके हैं।_
यह व्याख्यान न्यास के फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर जाकर सुना जा सकता है। न्यास द्वारा मासिक रूप से शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन
बुधवार को आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा आयोजित शंकर व्याख्यानमाला में दक्षिण कैलिफ़ोर्निया वेदांत समिति के सहायक मंत्री स्वामी सत्यमयानंद जी का उद्बोधन हुआ। रामकृष्ण मिशन के संन्यासी स्वामी सत्यमयानंद ने सत्-चित्-आनंद विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दिया।
आचार्य शंकर चिर प्रासंगिक
स्वामीजी ने बताया कि कुछ सदियों से लोग शंकर को अधिकाधिक पढ़ रहे हैं और उनके बारे में जान रहे हैं। वे अपने समय में ही नहीं, बल्कि आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली अनेक सदियों तक प्रासंगिक रहेंगे। उन्होंने इतनी अल्पायु में न जाने कितनी सदियों के लिए दिशा दे दी।
आज वेदांत की आवश्यकता इन चार कारणों से
स्वामीजी ने कहा आज विश्व को वेदांत की आवश्यकता है। आज के समय में ज्ञान की अनेकता, धर्मों की भिन्नता, जीवनशैली की जटिलता से उत्पन्न मानसिक अवसाद और सत्य के प्रति व्यक्तिगत रुझान – इन सबको एक सामंजस्य की आवश्यकता है। यह एकत्व अद्वैत वेदांत से संभव है।
स्वामीजी ने बताया शंकर मायावादी नहीं, ब्रह्मवादी थे। हमें आज स्वयं के स्वरूप को जानने की आवश्यकता है। हमारा अस्तित्व जानकर ही हम अपना स्वरूप जान सकते हैं। आत्मस्वरूप का वर्णन उपनिषद में है। इसीलिए शंकर ने उपनिषद को आधार बनाया। सत्-चित्-आनंद आत्मा के लक्षण नहीं हैं बल्कि यही आत्मतत्त्व हैं।
वेदांत केवल दर्शन नहीं, अनुभव का विषय
स्वामीजी ने शास्त्राध्ययन और आत्मानुभूति दोनों का महत्त्व बताते हुए कहा कि साधक जब स्वाध्याय करता है तो उपनिषद की शब्दावली समझता है। शास्त्र का श्रवण, मनन कर निदिध्यासन करता है, उसके बाद सत्-चित्-आनंद स्वरूप ब्रह्म की अनुभूति होती है। वेदांत अनुभव का विषय है, अनुभूति का विषय है। ये केवल एक दर्शन नहीं है। अद्वैत साक्षात्कार होने से हमारी स्वयं व विश्व के प्रति दृष्टि बदल जाती है। हम स्वयं को जानकर विश्व को जान सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद भी विश्व को वेदांत का महत्त्व समझाया। हम अविद्या और माया के कारण अपने सच्चिदानंद स्वरूप को नहीं जान पाते हैं – जो स्वयंप्रकाश है।
जो आत्मा का स्वरूप है वही ब्रह्म का ही स्वरूप है, अतः ब्रह्म को जानने के लिए हमें स्वयं को जानना आवश्यक है। आने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति करने के लिए वेदांत ही उचित माध्यम है।
स्वामीजी का परिचय
_स्वामी सत्यमयानन्द रामकृष्ण मिशन के सन्यासी व दक्षिण कैलिफोर्निया वेदान्त समिति के सहायक मंत्री हैं। सन 1988 में अद्वैत आश्रम कलकत्ता में आप रामकृष्ण परंपरा में दीक्षित हुए और वहाँ अनेक दायित्वों का निर्वहन किया। आप इस परंपरा के 12वें प्रमुख स्वामी श्री भूतेशानन्द के अनन्य शिष्य हैं। सन 2008 में स्वामीजी परिवीक्षक प्रशिक्षण केंद्र, बेलूर मठ में आचार्य बने।_
_सन 2010 में अद्वैत आश्रम, मायावती से आपने स्वामी विवेकानंद द्वारा प्रारम्भ की गई पत्रिका प्रबुद्ध भारत के संपादक का दायित्व ग्रहण किया। 2014 में आप रामकृष्ण मिशन आश्रम कानपुर के सचिव के रूप में पदस्थ हुए। स्वामीजी ने वेदान्त विषयक अनेक पुस्तकों का लेखन किया है। विश्व के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में आपके व्याख्यान हो चुके हैं।_
यह व्याख्यान न्यास के फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर जाकर सुना जा सकता है। न्यास द्वारा मासिक रूप से शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है।