नीलेश मिसरा को किसी एक श्रेत्र के महारथी के रूप में आप नहीं समेट सकते। एक गीतकार, एक संगीतकार, एक गायक, एक पत्रकार, एक अखबार का मालिक,  एक लेखक, एक संपादक, एक कहानीकार, एक कहानी सुनाने वाला, एक टीवी प्रेजेंटर और एक पटकथा लेखक। नीलेश मिसरा को इन सभी श्रेत्रों में महारथ हासिल है। आज के दौर में नीलेश इस कदर छाए हुए हैं कि रेडियो पर कहानी और इनका नाम एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं।

यादों का इडियट बॉक्स से पहले नहीं पकड़ा था माइक
यादों का इडियट बॉक्स से लेकर दी नीलेश मिसरा शो तक का उनका सफर अपने आप में बहुत कहानियां बयां कर देता है। जब 2011 में नीलेश ने रेडियो पर कहानियां सुनानी शुरू की, तो उस समय तक ये कभी भी माइक के सामने नहीं आए थे और जब आए, तो आज तक एक चट्टान की तरह डटे हुए हैं।

स्त्रोत: विकिपीडिया।

रेडियो में आना महज इत्तेफाक था
नीलेश के मुताबिक, हमलोगों ने एक बैंड बनाया था। हमें अ हिट कराने के लिए रेडियो पार्टनर की जरूरत थी। इस सिलसिले में हम बिग एफएम पहुंचे और यह सिलसिला चल पड़ा और आज तक जारी है।

कभी नहीं लिखी थी कहानियां
अपनी कहानियों से लोगों के दिलों पर राज करने वाले नीलेश ने बताया कि यादों का इडियट बॉक्स शुरू होने से पहले उन्होंने कभी भी कहानी नहीं लिखी थी। ये एक प्रयोग था और सफल रहा। उन्होंने बताया कि मेरा सबसे कम उम्र का श्रोता 5 साल का है और ज्यादा उम्र के दादा-दादी और नाना-नानी भी सुना करते हैं। उम्र के हर पड़ाव के लोगों तक पहुंचना किसी प्लान के मुताबिक नहीं हुआ। लोगों ने पसंद किया और हमारी कोशिश सफल रही।

इस काम ने मेरे जीवन को बदल दिया
अवसाद के रोगी, कैंसर के रोगी या किसी भी रोग से ग्रस्त लोग जब बताते हैं कि आपकी कहानियों से हमें काफी फायदा मिला। रोग से लडऩे की ताकत मिली। हम ठीक भी हो गए। जब छात्र बताते हैं कि पढ़ाई में बेहतर हुआ। कमजोर महिलाएं अपने जीवन को बेहतर कर आगे बढ़ीं। ऐसी कहानियां ताकत देती हैं और इसके साथ ही साथ एक जिम्मेदारी का एहसास भी कराती हैं।

स्त्रोत: गूगल

हम एंटरटेंमेंट प्रोडक्ट नहीं
नीलेश ने बताया कि हम अपने काम में स्टेरियोटाइप चीजों को जगह नहीं देते। एंटरटेंमेंट के नाम पर भाषा, चाल-चलन, श्रेत्र और किसी व्यक्ति विशेष के रंग-ढंग का मजाक उड़ाना हमारे काम का हिस्सा नहीं है। नीलेश ने साफ शब्दों में कहा कि हम एंटरटेंमेंट के प्रोडक्ट नहीं हैं।

किताब लिखने के सिलसिले में पहुंचा था मुंबई और गाने लिखने लगा
रोग, लम्हें, जिस्म, गैंगस्टर, एजेंट विनोद, एक था टाइगर और बजरंगी भाईजान जैसे तमाम फिल्मों में गीत लिखने वाले नीलेश जब पत्रकारिता करते हुए एक किताब लिखने के सिलसिले में मुंबई पहुंचे, तो वहां इनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट से हुई। नीलेश ने उनसे कहां कि मैं गीत भी लिखा करता हूं। फिर क्या था। फिल्मों में गीत लिखने का सिलसिला चल पड़ा।