Pic Credit: Film social media Post

कलाकार : अनुपम खेर, दर्शन कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी, भाषा सुंबली, चिन्मय मांडलेकर, पुनीत इस्सर, प्रकाश बेलावड़ी, अतुल श्रीवास्तव

निर्देशक: विवेक अग्निहोत्री

लंबे इंतजार के बाद 2022 की चर्चित फ़िल्म द कश्मीर फाइल्स बड़े पर्दे पर आ चुकी है। वैसे कश्मीर को केंद्र पर रखकर अब तक कई फिल्में बनी है पर 1990 में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों औऱ उनकी पीड़ा को स्पष्ट रूप से बयां करती बॉलीवुड की पहली फ़िल्म है। इस फ़िल्म के द्वारा निर्देशक ने कश्मीरी पंडितों के दर्द के साथ, उस समय की मीडिया औऱ सरकारों की भूमिकाओं पर भी व्यंग्य किया है जिसके कारण उन मासूम लोंगो को अपना सबकुछ छोड़कर भागना पड़ा और अपने ही देश मे रिफ्यूजी की तरह रहना पड़ा। फ़िल्म में हर पहलू को खुलेआम दिखाने का प्रयास किया गया है कि किस तरह जन्नत जैसी कश्मीर में हजारों कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हुआ औऱ लाखों को भगाया गया। 2:40 मिनट की यह फ़िल्म बताती है कि कश्मीरी पंडितों पलायन नहीं बल्कि नरसंहार हुआ था। यह फ़िल्म हमें अंदर तक झकझोरने के साथ ही बहुत सारे विषयों पर सोचने पर विवश कर देती है।

कहानी:

फिल्म 1990 के इतिहास से शुरू होती है और आज के वर्तमान तक पहुंचती है। दिल्ली में पढ़ रहा कृष्णा (दर्शन कुमार) अपने दादाजी पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए उनकी अस्थि लेकर श्रीनगर आता है। जहाँ वो अपने दादा जी के चार दोस्तों से मिलता है। वह अपने अतीत औऱ कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों से अनजान रहता है औऱ कश्मीर की आजादी की बात करता है। आगे चर्चा होते हुए कश्मीर में हुए पलायन औऱ नरसंहार पर भी होती है तब फ़िल्म में 1990 के उस दर्दनाक दौर को दिखाया गया है कि कैसे वहाँ पर अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ अत्याचार औऱ क़त्लेआम के साथ कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया जाता है। फ़िल्म सारे हिंसक दृश्यों को ठीक उसी तरह दिखाने का प्रयास करती है जिसके कारण फ़िल्म को A सर्टिफिकेट भी दिया गया है। फ़िल्म में कश्मीर का इतिहास भी बताने का प्रयास भी किया गया है। जब पुष्कर नाथ(अनुपम खेर) अपने पोते कृष्णा( दर्शन कुमार) को कहते हैं- जहां शिव सरस्वती, ऋषि कश्यप हुए… वो कश्मीर हमारा है। जहां शंकराचार्य ने तप किया….  वो कश्मीर हमारा है। जहां पंचतंत्र लिखा गया वो कश्मीर हमारा है… तू जानता ही क्या है कश्मीर के बारे में?’

फ़िल्म में सभी कलाकारों ने उम्दा काम किया है। अनूपम खेर ने पुष्कर के किरदार को जीवंत कर दिया है जो अंत तक कश्मीर जाने की इच्छा लिए मर जाता है। दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी और मिथुन के अलावा सभी कलाकारों ने अपने किरदार के प्रति न्याय किया है। यह फ़िल्म पूरी तरह यथार्थ पर केंद्रित है जिस कारण फ़िल्म में एक ही गीत है वह है फ़ैज अहमद फ़ैज का नज्म “हम देखेंगे”। कश्मीर की वादियां फ़िल्म के दृश्यों को औऱ मनोरम बना देती हैं पर फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी भी खूबसूरत है और बैकग्राउण्ड म्यूजिक संवेदनाओं को झकझोरने का काम करता है।फ़िल्म का अंत बिना किसी निष्कर्ष के होता है जिससे हम सही औऱ गलत का निर्धारण स्वंय कर लें।