मैंने सुना था की भारत में क्रिकेट को लोग खेल से बढ़कर मानते हैं पर एहसास 2 अप्रैल को हुआ। इस दिन मंदिरों की घंटियों से लेकर मस्जिदों की अजान में बस एक ही दुआ सुनाई पड़ रही थी की भारत विश्वकप जीत जाए । यह भावनाएं इसलिए भी उमड़ रही थी क्योंकि आखिरी बार जब भारत ने कपिलदेव के नेतृत्व में वन-डे क्रिकेट विश्व कप जीता था तब भारत की एक बड़ी आबादी का जन्म भी नहीं हुआ था ।
मुंबई में उस दिन सिर्फ समुद्र की लहरें नहीं उठ रही थी बल्कि भावनाएं भी ज्वार मार रही थी ।
विश्व कप फाइनल में भारत का मुकाबला श्रीलंका से होना था। जो न्यूजीलैंड को हराकर फाइनल में पहुंची थी वही भारत क्वार्टर फाइनल में आस्ट्रेलिया और मोहाली में खेले गए सेमीफाइनल में अपने चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को हराया था ।
एकतरफ जहाँ श्रीलंका 2007 के विश्वकप फाइनल में आस्ट्रेलिया से हार को नहीं भूला था तो वहीं भारत के 2007 का विश्वकप एक भयानक स्वप्न जैसा था जिसे वह याद नहीं करना चाहता था। बांग्लादेश से हारने के कारण भारत शुरुआत चरण में विश्वकप से बाहर हो गया था ।
टीमों की स्थिति
भारत में जहाँ सचिन तेंदुलकर, और वीरेन्द्र सहवाग के रूप में मजबूत ओपनिंग जोड़ी थी वही गौतम गंभीर,विराट कोहली,युवराज सिंह, और धोनी की मौजूदगी बैंटिंग लाइन-अप में गहराई प्रदान कर रही थी । युवराज सिंह के लिए यह विश्व बल्ले और गेंद दोनों से शानदार बीता था । हालांकि पाकिस्तान के खिलाफ खेल गए सेमीफाइनल में वह कुछ खास नहीं कर पाए थे । बालिंग का जिम्मा जहाँ जहीर खान ,मुनाफ पटेल और हरभजन सिंह पर था । सेमीफाइनल में चोट लगने के कारण आशीष नेहरा विश्वकप फाइनल से बाहर हो गए थे।
वहीं श्रीलंका कितना स्कोर बनाएगी यह इस बात पर निर्भर करता था कि तिलकरत्ने दिलशान, कप्तान कुमार संगाकारा और महेला जयवर्धने किस तरह से बैंटिंग करते हैं। मैथ्यूज के चोटिल होने के कारण श्रीलंका का मीडिल आर्डर भारत की तुलना में कमजोर था ।बालिग़ का जिम्मा लासिथ मलिंगा, नुवान कुलशेखरा और मुरलीधरन पर था।
पल – पल बदलते मैच के हालात
मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम विश्व कप के लिए ही कई वर्षों से तैयार किया जा रहा था। और फाइनल मैच हर एक भारतवासी वही बैठकर देखना चाहता था जिनके पास फ़ाइनल मैच का टिकट था वो खुद को सौभाग्यशाली समझ रहे थे जो मुंबई नहीं पहुंच पाए थे वो टेलीविजन के सामने टुकटुकी लगाए बैठे थे। भारत ने टास जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला लिया। जहीर खान के शुरुआती ओवरों में श्रीलंकाई ओपनर उपुल थरंगा जल्दी आउट हो गए । लेकिन दूसरे छोर पर आशीष नेहरा की जगह फाइनल खेल रहे एस.श्रीसंत कुछ खास असर नहीं छोड़ पा रहे जिसके कारण धोनी ने उनकी जगह हरभजन सिंह से बालिंग करवाया और उन्होने तिलक रत्ने दिलशान को आउट कर भारत को दूसरी सफलता दिलाई । उस दिन मानों जयवर्धने सोचकर आए थे कि आज अंत तक खेलना है और हुआ भी यही एक तरफ श्रीलंका का विकेट गिरता रहा वहीं जयवर्धने धीरे-धीरे स्कोर बोर्ड को बढ़ा रहे। मैच भारत की पकड़ में था लेकिन सब जानते थे कि जबतक जयवर्धने है स्कोर कहीं भी पहुंच सकता है। एक बार फिर श्रीलंका का मध्यक्रम फेल हो चुका था। जयवर्धने का संघर्ष जारी था उनका साथ दिया नुवान कुलाशेखरा का जो रन-आउट होने से पहले 32 गेंद पर 30 रन बना चुके थे । तिसारा परेरा की 9 गेदों पर 22 रनों की पारी ने टीम का स्कोर निर्धारित 50 ओवरों में स्कोर 274/6 रनों तक पहुंचा दिया था। जयवर्धने ने 104 रनों की पारी खेली । इस विश्वकप में यह उनका दूसरा शतक था इसके पहले वो कनाडा के खिलाफ शतक लग चुके थे ।
भारत का जवाब
274 रन किसी भी मायनें में छोटा लक्ष्य नहीं था । इसके पहले विश्व कप में इतना बड़े स्कोर का पीछा करके कोई भी मैच नहीं जीत पाई थी । मैच शुरू होने से पहले पिच क्यूरेटर ने कह भी दिया था कि 270 से अधिक रन बनने की स्थिति में पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम के जीतने की संभावना अधिक रहेगी । पर जब भावनाएं हावी हों तथ्य और आकड़े सब बेकार हो जातें हैं इस मैच में भी यही था । सहवाग और सचिन की ओपनिंग जोड़ी के सामने थे लासित मलिंगा उनकी दूसरी ही गेंद पर भारत की उम्मीदों को जोरदार झटका लगा । सहवाग ने रिव्यू लिया लेकिन वो रिव्यू असफल रहा और वो आउट करार दिए गए । पर अब भी लोगों की उम्मीद सचिन तेंदुलकर मैदान पर थे । वो अच्छा खेलकर रहे थे लगा कि आज बड़ी पारी खेलेंगे पर लासित मलिंगा की बाहर जाती गेंद पर वो विकेट के पीछे संगाकारा को कैंच थमा बैठे। एक मिनट तक किसी को समझ ही नहीं आया कि आखिर हो क्या गया है । पूरे मैदान पर सिर्फ़ श्रीलंकाई खिलाडियों की आवाज सुनाई पड़ रही थी वो मैदान में झूम रहे दर्शक एक दम शांत सचिन धीरे-धीरे मैदान से बाहर जा रहे थे । लोगों को लगा कि विश्व-कप जीतने का सपना एक बार फिर सपना ही रह जाएगा । सचिन की जगह बल्लेबाजी करने आए कोहली उस समय बिलकुल नए थे । बांग्लादेश देश के खिलाफ लोग मैच में उन्होंने शतक बनाया था पर उसके बावजूद भी उनकी बल्लेबाजी को लेकर लोगों के मन में सवाल थे । लेकिन गंभीर और कोहली ने धीरे-धीरे स्कोर बोर्ड को बढ़ा रहे थे जब एक फिर लगा कि ये दोनों बल्लेबाज भारत को जीत दिला देंगे तभी तिलकरत्ने दिलशान की गेंद पर वो आउट हो गए । आउट होने से पहले उन्होंने 49 गेदों पर 35 रन बनाए । कोहली के आउट होने के बाद युवराज सिंह को बैटिंग करने आना था पर धोनी आ रहे थे । ऐसा इसलिए था क्योंकि युवराज सिंह के आने पर दोनों बाएं हाथ के बल्लेबाज हो जाते ऐसी स्थिति में मुरलीधरन को रोकना आसान नही होता ।धोनी और गंभीर ने मिलकर न सिर्फ भारत के स्कोर को आगे बढ़ा रहे थे बल्कि औसत रन भी तेज हो गया था । गंभीर जब 97 रनों पर बैटिंग कर रहे थे तब तिसारा परेरा की गेंद पर आफ साइड में चौका मारने के चक्कर में आउट हो गए । गंभीर जब आउट हुए तब भारत का स्कोर 223 रन था और उसे अगले 50 गेदों पर 51 रन बनाने थे । धोनी और युवराज के बाद रैना को बल्लेबाजी करने आना था जो सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ अच्छी पारी खेल चुके थे और हरभजन सिंह भी ठीक-ठाक ही बल्लेबाजी कर लेते थे । ऐसे लोगों में लोगों को लग रहा था कि मैच भारत आसानी से जीत जाएगा,हुआ भी यही । 48 वें ओवर में जब धोनी ने नुवान कुलाशेखरा की गेंद को लाॅग-आन पर उठाकर मर तो पूरे देश की धड़कनें रूक गई । लेकिन उस छक्के ने भारत में क्रिकेट प्रेमियों के आंखों में आंसू ला दिया ।
पूरा स्टेडियम झूम रहा था , भारतीय ड्रेसिंग रूम में कुछ खिलाड़ी गले लग रहे तो कुछ खिलाड़ी धोनी और युवराज की तरफ भाग रहे थे । आधी रात को देश में जश्न था लोग खुशी मना रहे थे । अपने – अपने हिस्से का क्रिकेट जी रहे थे । उस दिन लगा कि भारत को अगर संविधान के बाद अगर कोई चीज जोड़कर रखता है तो वह क्रिकेट ।