2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और उनकी टीम में नजमा हेफतुल्ला अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री बनाई गई ।उस समय उन्होंने एक बयान दिया था कि यह मंत्रालय सिर्फ मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए नहीं बना है बल्कि सभी अल्पसंख्यकों के हित का ध्यान रखना हमारा काम है।इस पूरे प्रकरण को इस तरह पेस किया गया कि भाजपा मुस्लिम के हित में काम करना पसंद नहीं करती ।


2019 में मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 2014 से ज्यादा समर्थन और सीट मिला।अपने सभी निर्वाचित सांसदों को संबोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी ने सेंट्रल हाल में एक नया नारा दिया “सबका साथ सबका विकास और अब सबका विश्वास “इसे मुस्लिम समाज से जोड़ कर देखा गया पर बड़ा सवाल था कि मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने के लिए क्या करेगी मोदी सरकार ।इसका जवाब ईद के दिन मिला जब मोदी सरकार ने 5 करोड़ अल्पसंख्यकों को स्कालरसीप देने का वादा किया ।जिसके बाद से देश में एक नई बहस छिड़ गई है कि क्या मुस्लिम समुदाय अब भी अल्पसंख्यक हैं? या अब उनसे यह दर्जा वापस ले लेना चाहिए?

अल्पसंख्यक की परिभाषा क्या है?

बड़ा सवाल यह है कि किसे अल्पसंख्यक कहा जाए ?आपको आश्चर्य होगा कि अल्पसंख्यक को लेकर एक निश्चित परिभाषा भी नहीं है और किस आधार पर अल्पसंख्यक तय किया जाता उसका कोई निश्चित पैरामीटर भी नहीं है ।सुप्रीम कोर्ट ने एक पीआइएल की सुनवाई में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को 90 दिन का समय देते हुए कहा है कि ‘अल्पसंख्यक की परिभाषा तय की जानी चाहिए ‘और वो 90 दिन बीत चुके हैं ।
हालांकि सामान्य भाषा में अल्पसंख्यक उसे कहा जाता है जो बहुसंख्यक आबादी की अपेक्षा उस समुदाय जनसंख्या की जन संख्या काफी कम हो ।वही संयुक्त राष्ट्र अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करते हुए कहता भिन्न आबादी अगर तीन से पांच प्रतिशत हों तो उस भिन्न समुदाय को अल्पसंख्यक कहा जाएगा ।

अल्पसंख्यक आयोग और उसकी पृष्ठभूमि ।

1993 में अल्पसंख्यक आयोग सम्बन्धित एक विधेयक प्रस्तुत किया गया जिसमें अल्पसंख्यक आयोग के गठन की बात कही गई ।यह वह दौर था जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था और आंदोलन की काट निकालने के लिए कांग्रेस नए -नए हथकंडे अजमा रही थी ।पहले कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने मंडल का जिन्न निकला उसके बाद अल्पसंख्यक आयोग का दांव खेला ।अल्पसंख्यक आयोग बनने के बाद भी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय 2006 में कांग्रेस सरकार में ही बनाया गया ।

किन समुदायों को मिला अल्पसंख्यक का दर्जा ?

भारत में अभी तक मुस्लिम,सिख,पारसी ,ईसाई ,बौद्ध एवं जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला है ।जिसमें जैन समुदाय को यह दर्जा पहले नहीं प्राप्त था ।बाल पाटिल केस पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य तय करें कि किस समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देना है ,यह पूरा मामला राज्य तय करेगा ।जिसके बाद महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया और 2014 में भारत सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किया ।

2014 से अब तक अल्पसंख्यक मंत्रालय को कितना पैसा मिला ?

मोदी सरकार बनने के बाद लोगों को लगा कि शायद अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में कटौती हो पर ऐसा नहीं हुआ ।2014 में 3734 करोड़ रूपये,2015 में 3738 करोड़ रूपये ,2016 -17 में 3827 करोड़ रूपये ,2017-18 में 4195 करोड़ रूपये ,2018 -19 में 4700 करोड़ रूपये तो वही 2019-20 के अंतरिम बजट में 4700 करोड़ रूपए दिया गया।यह दर्शा रहा है कि मोदी सरकार को लेकर जो कहा जा रहा था उसके विपरीत जाकर मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक मंत्रालय को एक बड़ा बजट दिया ।

हमारा संविधान किस आधार पर अल्पसंख्यक दर्जे की बात करता है?

भारत के संविधान के आर्टिकल 29 और 30 में इसका जिक्र मिलता है ।लेकिन हमारा संविधान धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक दर्जे की की बात नहीं करता है ।संविधान के अनुसार अल्पसंख्यक का दर्जा भाषा और संस्कृति के आधार पर तय किया जाना चाहिए ।मान लिजिए कोई हिंदी भाषी व्यक्ति केरल गया तो वह व्यक्ति केरल में अल्पसंख्यक कहा जाएगा या फिर कोई असम का व्यक्ति गुजरात गया तो गुजरात में वह असमी व्यक्ति अल्पसंख्यक कहा जाएगा ।

हिन्दू अल्पसंख्यक ?

इस समय देश में एक नया मुद्दा चर्चा के केन्द्र में बना हुआ है कि जब अल्पसंख्यक का दर्जा राज्य तय करेगा तो उन राज्यों में जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक है उन्हें वहां अल्पसंख्यक का दर्जा मिले ।जम्मू कश्मीर,पंजाब सहित देश के सात राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश में हिन्दू समुदाय की जनसंख्या कम है ।इसी मांग को लेकर कुछ दिन पूर्व भारतीय संत समाज ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखा कि जहाँ-जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक है उन्हें वहां अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए हालांकि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने यह कह कर किनारे कर लिया कि कौन अल्पसंख्यक कहा जाएगा और नहीं राज्य तय करता है केन्द्र सरकार नही ।

जम्मू कश्मीर की स्थिति ।

हम सभी जानते हैं कि हमारा संविधान जम्मू और कश्मीर को लेकर विशेष प्रावधान किए है ।लेकिन जब अल्पसंख्यक आयोग के गठन की बात आती है तो जम्मू कश्मीर में यह गठित नही होता है ।इसको लेकर जब जम्मू और कश्मीर में एक पीआइएल दायर किया गया तो न्यायालय के द्वारा कहा गया है कि वो इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं ।लेकिन इसके बावजूद अल्पसंख्यकों के लिए जम्मू कश्मीर को बजट दिया जाता रहा है।

अल्पसंख्यक आयोग पर भाजपा का दोहरा रवैया ।

जब इस आयोग सम्बन्धित विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया था तब भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी चर्चा में भाग लेते हुए बोले कि “यह सिर्फ एक समुदाय को ध्यान में रखकर गठित किया जा रहा है ” उनका इशारा मुस्लिम समुदाय की तरफ था ।भाजपा शुरूआत में इस आयोग का विरोध करती थी लेकिन जब भाजपा की सरकार बनी तो उसने भी एक आश्चर्यजनक चुप्पी साध ली ।

अब हम अपने मूल प्रश्न पर लौटते हैं कि क्या आज भी मुस्लिम समुदाय भारत में अल्पसंख्यक हैं? इस सवाल का जवाब सीधे-सीधे भी दिया जा सकता था लेकिन सारी परिस्थितियों पर बात करना जरूरी था ।अगर हम यूएन की परिभाषा लेकर देखें तो मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं है लेकिन उनकी स्थिति पहले से काफी खराब हो चुकी है इस हिसाब से उन्हें एक विशेष संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि हमारा संविधान भी कहता है कि जो भी समुदाय समाजिक रूप से पिछड़ा है उसके सरकार विशेष पहल करे ।मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि मुस्लिम समुदाय को दिए जाने स्कालरसीप को भी इसी दृष्टि से देखना चाहिए ।
आजादी के बाद मुस्लिमों को लेकर राजनीति बहुत हुई है पर ठोस नीति का सदैव अभाव रहा ।उनको सिर्फ एक वोट बैंक के नजरिए से देखा जाता रहा जिसके कारण उनका सिर्फ दोहन हुआ और कुछ नहीं ।


बाल पाटिल केस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि जितने जल्दी इस आयोग को समाप्त कर दिया जाए उतना भला ,इसलिए इस समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा मिले या न मिले यह महत्त्वपूर्ण नहीं महत्त्वपूर्ण है इनका विकास ।लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि इस दौरान हम बहुसंख्यक को न भूल जाएं।