दरिया भी मैं, दरख़्त भी मैं
झेलम भी मैं, चिनार भी मैं
दैर भी हूँ, हरम भी हूँ
शिया भी हूँ, सुन्नी भी हूँ
मैं हूँ पंडित, मैं इरफान हूँ
मैं था, मैं हूँ और मैं ही रहूंगा।
इरफान खान का जाना सिनेमा जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। सचमुच ‘जाना’ हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है। इरफान 80 के दशक के बाद से ही धारावाहिकों में दिखना शुरू हो गए थे। इरफान के करियर की शुरुआत टेलीविजन सीरीज से हुई…शुरुआती दिनों में चाणक्य, भारत एक खोज, चंद्रकांता में दिखे। वहीं फिल्मी करियर की शुरुआत सलाम बॉम्बे में एक छोटे से रोल से हुई थी। उन्होंनेे ‘मकबूल’, ‘रोग’, ‘लाइफ इन अ मेट्रो’, ‘स्लमडॉग मिल्लीनेयर’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘दा लंचबॉक्स, ‘पीकू’ से लेकर ‘अंग्रेज़ी मीडियम‘ तक का सफर तय किया।
1993 में, इरफान ने ज़ी टीवी की ‘बनेगी अपनी बात‘ में अभिनय किया। यह एक कॉलेज-लाइफ बेस्ड सीरीज थी। इरफ़ान के साथ-साथ इसमें अभिनय कर रहे अन्य अभिनेताओं को भी इस सीरीज़ ने बेहद लोकप्रिय बनाया था। इरफान खान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के स्टूडेंट रहे। और वहां से पास होने के बाद ही उन्होंने अभिनय की शुरुआत की।
2003 में आयी फिल्म हासिल से इरफान को अभिनेता के रूप में पहचान मिलने लगी। ये वो दौर था जब वह लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ही रहे थे। इसमें इरफान ने छात्र नेता रणविजय सिंह का किरदार निभाया था। ‘हासिल’ का डायलॉग “और जान से मार देना बेटा, हम रह गये ना, मारने में देर नहीं लगायेंगे,भगवान कसम” लोगों की जुबान पर आज तक है। हासिल ने हिंदी फिल्मों को एकबार फिर छात्र और जाति की राजनीति याद दिलाई जिसे कहीं न कहीं फिल्मी दुनिया 70 के दशक में ही पीछे छोड़ चुकी थी।
बॉलीवुड हो चाहे हॉलीवुड हर जगह उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। हॉलीवुड की ‘द अमेजिंग स्पाइडरमैन‘ (2012) में इरफान ने एक विलेन का रोल किया था। एक इंटरव्यू में वह कहते हैं कि, ‘मेरे पास बच्चों को दिखाने के लिए कुछ नहीं था, ये फ़िल्म मैने बच्चों के लिए बनाई है‘। इसके बाद आयी और फ़िल्में फिर चाहे वह 2007 में आयी एंजेलिना जोली की ‘ए माइटी हार्ट‘ हो, 2015 में आयी ‘जुरैसिक पार्क‘ हो या फिर ‘द नेमसेक‘ हो इरफान ने अपने फैंस के दिलों को जीतने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि 2012 में आयी ‘द लंचबॉक्स‘ ने इरफान को प्रसिद्धि के चरम पर पहुंचा दिया था।
अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण के साथ ‘पीकू’ (2015) में इरफान हीरो ना होते हुए भी हीरो लग रहे थे। एक अजीब से अनरोमांटिक सच्चे प्रेमी के रूप में हमेशा की तरह फ़िल्म को बेहतर बनाने में अपनी भागीदारी निभाई।
इरफान खान ने अपनी आखिरी चिट्ठी में कहा था कि,
”मेरे कुछ सपने थे, कुछ प्लान्स थे, कुछ महत्वकांक्षाएं थी और मैं पूरा उसमे खोया हुआ था। अचानक किसी ने मेरे कंधे पर थपकी दी। मैंने पलटकर देखा तो टीटी था। तेज़ी से बदलती चीजों ने मुझे अहसास दिलाया कि कभी भी कुछ भी हो सकता है”।
इरफान ने लगभग सभी किरदार निभाये फिर चाहे वो छोटा किरदार हो या बड़ा, किसी चोर-चरसी का किरदार हो, चाहे पुलिस वाला या सड़कछाप गुंडा हो, नवाब या डकैत से लेकर एक प्रेमी, एक मंगेतर, एक पति तक।
अपनी हर फ़िल्म में एकदम सादे दिखाई देने वाले इरफान खान ने अपने चाहने वालों के दिलों में रंगीनियां भर दी। इरफान खान सुपरस्टार और सुपर-एक्टर के भयंकर कॉम्बो थे। हैं। और रहेंगे।
अपनी एक फ़िल्म में उन्होंने कहा था कि, ‘आई थिंक वी फॉरगेट थिंग्स, इफ देयर इज़ नोबडी टू टेल डेम‘। लेकिन वह अपनी इन ‘कुछ’ फिल्मों के माध्यम से अपने चाहने वालों के लिए इतनी व्यवस्था तो कर ही गए हैं कि सब उन्हें याद रख सकें।
तुम्हारे चाहने वाले तुमको याद रखेंगे गुरु….भगवान कसम।