राहुल मिश्रा
विश्वभर में मानव सभ्यता का सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठे कोरोना वायरस संक्रमण के चलते विश्वभर की आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ी हुई है,कारखाने बंद है रेल बंद है और इन सबके बीच कोरोना वायरस संक्रमण के आंकड़े भी विश्व भर में ३० लाख पार कर चुके हैं।
अमेरिका के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया ने भी कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जाँच की मांग की है हालांकि चीन इससे नाखुश है और उसने इस आधार पर आपत्ति दर्ज की है की ऐसी जाँच की कोई परंपरा नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस महामारी के लिए चीन को जिम्मेदार मानते है और वे बार-बार कह चुके है की वे मुआवजे के लिए चीन पर मुकदमा करेंगे। आज बड़े बड़े देश चीन को अलग थलग करना चाहते है जो वर्तमान में विश्व आपूर्ति श्रृंखला का आधार और विनिर्माण केंद्र भी है। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भारत के कई बड़े मुख्य कार्यकारी अधिकारियो से बातचीत में आग्रह किआ है की वे चीन के विरुद्ध विश्व समुदाय की भावनाओ का लाभ उठाये। प्रधानमंत्री मोदी ने भी बहुराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला का केंद्र बनने का आह्वान किया है। हाल ही में 48 बड़ी कंपनी ने चीन से अपना उत्पादन आधार हटाया। इनमे से 26 वियतनाम गई,11 ताइवान,8 थाईलैंड और केवल 3 भारत में आई।
वर्ष 2008 की मंदी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ ही वैश्विक व्यापार पर अपना गहरा प्रभाव डाला था। वर्ष 2008 के बाद से ही विश्व के विभिन्न देशो में सरंक्षणवाद की विचारधारा को बढ़ावा मिला है। अमेरिका ने पिछले 4 वर्षो से कई देशो के उत्पाद पर लगने वाले शुल्क में वृद्धि की है और विशेष तौर पर चीन के, जिसके कारण दोनों देशो के बिच व्यापार यूद्ध की भी स्थति बन गई लेकिन पिछले कुछ वर्षो में ऐसा देखा गया है की चीन विश्व के लिए एक बड़ा उत्पादक बन के उभरा है और इस बीच उसे भारी मात्रा में विदेशी निवेश भी प्राप्त हुआ है। लेकिन कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों की वजह से विश्व के कई देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते है। उदाहरण स्वरुप भारतीय दवा उघोग अपनी कुल जरूरत का का लगभग 70 प्रतिशत चीन से आयात करता है लेकिन कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों के बाद से भारत सरकार ने घरेलु उत्पाद पर जोर दिया है। अमेरिका के साथ साथ जापान की भी कई कम्पनियां चीन से बाहर निकलने के प्रयास में है। जापान सरकार ने तो जापानी कंपनियों को चीन से बाहर निकालने के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता देने का निश्चय किया है।
दूसरी तरफ चीन का निवेश पूरी तरह राजनितिक होता है क्योंकि चीन में अधिकतर बड़ी कम्पनिया चीनी सरकार द्वारा संचालित या नियंत्रित की जाती है। आज जो चीन के बारे में कहा जा रहा वही पहले अमेरिका के बारे में कहा जाता था की अमेरिकी डॉलर के बाद अमेरिकी सिपाही आते है। चीन हमेशा से ही अपने निवेश के द्वारा पाकिस्तान को आकर्षित करने और सयुंक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का समर्थन कर भारत का विरोध करता है।
अब समय आ गया है की भारत सरकार को निवेश बढ़ाने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे,अब हमे उन चीजों का उत्पादन करना होगा जिसका हम चीन से आयात करते है। उत्पादन बढ़ाने के लिए देश के विस्वविद्यालयो,पॉलिटेक्निक,भारतीय प्रौद्योगिकी एवं प्रबंध संस्थानों को उघोगो के साथ समन्वय स्थापित करना ही होगा। साथ ही साथ हमे यह भी ध्यान होगा की विदेशी निवेश को मंजूरी समयबद्ध तरीके से दी जानी चाहिए।
हमे अपनी स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला पर जोर देना होगा जैसे की हार्डवेयर डेवलपमेंट,दवा उघोग आदि हमे कौशल विकास,ऑटोमेशन तथा अनुबंधित कामगारों पर ध्यान देना होगा। औद्योगिक विकास के साथ-साथ ही उत्पादन के स्वरूप और कंपनियों/उद्योगों की कार्यशैली में बड़े बदलाव होंगे। ऐसे में कृषि और अन्य क्षेत्रों को इन परिवर्तनों के अनुरूप तैयार कर औद्योगिक विकास के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान दिया जा सकता है।उदाहरण के लिये विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों की पैकेजिंग या उनसे बनने वाले अन्य उत्पादों के निर्माण हेतु स्थनीय स्तर पर छोटी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देकर औद्योगिक उत्पादन श्रृंखला में ग्रामीण क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है। कृषि से लेकर सॉफ्टवेयर और तकनीकी के क्षेत्र में उद्ममिता को बढ़ावा देना होगा साथ ही साथ नौकरशाही के हस्तछेप में भी कमी लानी होगी।
वैश्विक बाजार में अन्य देशों की कंपनियों की तरह भारतीय कंपनियों को आगे बढ़ने के सामान अवसर नहीं प्राप्त हुए है ऐसे में औद्योगिक क्षेत्र की जरूरतों को देखते हुए आसान ऋण और टैक्स में कटौती जैसे प्रयास कुछ मदद प्रदान कर सकते हैं।
कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों की वजह से हाल ही में जर्मनी, इटली, फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों ने ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं। अधिकांश देशों के द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में सख्ती का मुख्य लक्ष्य चीन की अवसरवादिता पर अंकुश लगाना है। भारत को अपने एवं अन्य देशों के अनुभवों से सीख लेते हुए FDI की अनुमति देते समय स्थानीय उद्योगों के हितों को भी ध्यान में रखना होगा।
कोरोना महामारी के इस दौर में एक वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने के लिए सामान विचारधारा वाले देशो के सहयोग से एक सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।