अली अहमद सिद्दीकी
ईबादत, ख़िदमत और बरकतों का महीना रमज़ान की शुरुआत हो चुका है। दुनियाभर के मुसलमान इस माह को पवित्र और इबादत वाला महीने के रूप में मानाते है। अमूमन रमज़ान में मस्जिदें गुलज़ार हुआ करती थीं, बाज़ार में तरह-तरह के सामान उपलब्ध हुआ करते थे, घर के दस्तरख़्वान लज़ीज़ पकवानों के अम्बार लगे होते थे। लेकिन इस बार का रमज़ान कई पाबंदियों के साथ बिलकुल अलग तरह का होगा। वजह साफ़ है कि देश में कोरोना के चलते लॉकडाउन है, मस्जिद और बाज़ार को लॉक किया जा चुका है। सरकार ने ज़रूरी दिशानिर्देश जारी किये है, जिनके अनुसार लोगो को घरों में रहने के निर्देश है। इस महीने लोग अल्लाह की इबादत करते हैं। बल्कि मस्जिदों में दिन-रात इबादत, नमाज़ व तरावीह अदा करते है, लेकिन लाकडाउन के कारण इस बार लोगों को मस्जिद की जगह घर में इबादत करनी होगी और कम पकवानों से इस महीने को गुज़ारना पड़ेगा।
रमज़ान: जीवन का महत्व तथा जीने का सलीका बताता है
बहुत कम ही लोग जानते है कि रमज़ान क्यों मनाया जाता है? क्या रमज़ान में भूखा और प्यासा रहने का नाम ही रोज़ा है?
मुसलमानों को इस्लाम धर्म के पांच मूल स्तंभों का अनुसरण करना फर्ज़ (कर्तव्य) होता है। जिसमें 1- कलमा, 2- नमाज़, 3- रोज़ा, 4- ज़कात, 5- हज है। जिसके अंतर्गत रमज़ान में 2 कर्तव्य रोजा और ज़कात आते है। इस्लामिक कैलेण्डर के अनुसार नौवा महीना रमज़ान का होता है, जिसमें मुसलमानों को रोज़ा रखना फ़र्ज(कर्तव्य) है। दरअसल रोज़े को अरबी भाषा में ‘सौम’ कहते है, जिसका अर्थ होता है “रुकना और चुप रहना” यानि ख़ुद को नियंत्रण करना। तथा उन लोगों की भूख और प्यास का एहसास करना जो प्रतिदिन एक समय का भोजन ग्रहण करते है। इससे ज़ाहिर है कि रमज़ान सिर्फ भूखे रहने का नाम नहीं बल्कि बुराइयों का त्याग, आत्मसंयम व सहनशीलता का पाठ सिखाता है.
रमज़ान के भाग
रमज़ान 29 अथवा 30 दोनों का होता है। जिसे तीन भागों (असरों) में बांटा गया है। प्रत्येक भाग को असरा कहते है, जो 10-10 दिन का होता है।
रमज़ान का पहला असरा (1 रमज़ान से 10 रमज़ान तक) असरा-ए-रहम (रहमतों और बरकतों) वाली होती है। मान्यता के अनुसार इस असरे में रोज़ा और नमाज़ करने वालों बन्दों के लिए रहमत के दरवाजे़ खोल दिए जाते हैं। वहीं दूसरा असरा (11 रमज़ान से 20 रमज़ान तक) असरा-ए-मग़फ़िरत (माफ़ी) का होता है। इस असरे में इबादत व पुण्य कार्य करें तो अपने गुनाहों से पवित्र हो सकते है। जिसके सिले में अल्लाह बन्दों के गुनाह (अपराध) को माफ़ करता है। रमज़ान का तीसरा और आखिरी असरा (21 रमज़ान से 29/30 रमज़ान तक) जिसे असरा-ए-निजात यानी जहन्नम (नरक) से बचने वाला असरा कहते है। इस्लाम धर्म की मान्यतानुसार मुसलमानों को अपने द्वारा किये गए पापों का प्रायश्चित, अपराधों से क्षमायाचना और ज़्यादा इबादत करें तो इस असरे में रोज़दारों को जहन्नुम से आज़ादी मिलती है।
रमज़ान की प्रक्रिया लम्बी व कठिन होती है जिसे जिसे अनुसरण करने वाले व्यक्ति के लिए सामान्य सी लगती है. इस प्रक्रिया को पूरे एक माह निरंतर किया जाता है, इसके प्रत्येक दिन का महत्व है।
ज़कात: ग़रीबों और अमीरों के बीच के फ़र्क़ को कम कर एकता का पाठ पढ़ाता है
रमज़ान रहमतों, नेमतों, और मग़फ़िरत वाला माह है। इस माह में इस्लाम धर्म के मूल स्तंभों के अंतर्गत ‘ज़कात’ सम्मिलित है। जो एक प्रकार का ‘दान’ होता है, जिसे धार्मिक रूप से ज़रूरी और ‘कर’ के रूप में देखा जाता है। रमज़ान में दान करने का बहुत ज़्यादा महत्व होता है। मान्यता के अनुसार रमज़ान व्यक्ति को प्रशिक्षित करती है। जिससे वो ग़रीबों की मदद, मज़लूमों की सेवा के लिए सदैव तैयार रहे। वैसे तो ज़कात कभी भी, किसी भी समय पर किया जा सकता है। इसमें ख़ास बात यह है कि रमज़ान के माह में कोई भी पुण्य कार्य करने पर 70 गुना पुण्य प्राप्त होता है इसलिए रमज़ान में मुस्लिम ज़कात निकालने पर ज़्यादा ज़ोर देते है।
ज़कात के रूप में हर मुसलमान अपनी कमाई हुई दौलत का 2.5 प्रतिशत हिस्सा ग़रीबों को देता है। जो इस्लामिक वित्त वर्ष के अनुसार प्रत्येक वर्ष करना आवश्यक होता है। ज़कात हर उस पुरुष और महिला पर लागू होता है जिनके 75 ग्राम सोना या उसके बराबर की संपत्ति हो उन्हें ज़कात देना अनिवार्य है. इस प्रक्रिया का उद्देश समाज में ग़रीब और अमीर के बीच के खाई को कम कर समानता का अधिकार देने,एकता का पाठ पढ़ाने और मानवता की सेवा भाव परम उद्देश्य है। ज़कात की ही तरह फ़ितरा (एक प्रकार का दान) मर्द, औरत, बच्चे, जवान हो या बूढ़ा सब पर लागू होता है। फ़ितरा एक तरह से जान व माल का सदक़ा होता है। फ़ितरा ईद के चाँद को देखने के बाद से ईद की नमाज़ अदा करने से पहले दिया जाता है।
देशभर में रमज़ान की रौनक़ अपने अलग रंग पर होती है
रमज़ान मुस्लिमों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है की अल्लाह अपने बंदों के लिए रहमत के दरवाज़े खोल देते हैं। रोज़मर्रा के किये गए पुण्य कामों से अधिक रमज़ान के माह में 70 गुना ज़्यादा पुण्य मिलता है। भारत में रमज़ान के वक़्त बाज़ारों में एक अलग ही रौनक़ दिखाई देती है। भारत के लखनऊ, भोपाल और हैदराबाद जैसे शहरों में तो रात-रात भर बाज़ारों में चहल कदमी रहती हैं। मुस्लिम समुदाय रमज़ान को अपने-अपने अंदाज़ में बड़ी खुशियों के साथ मनाते हैं। रोज़ेदार इफ़्तारी का ख़ास इंतज़ाम करते हैं। स्वादिष्ट पकवान घर में बनाए जाते हैं. इफ़्तार के वक़्त स्वादिष्ट पकवानों के साथ ज़्यादातर खजूर, फल, जूस आदि पौष्टिक आहार का भी भरपूर मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है। आपस में खुशियाँ बांटने के लिए जगह-जगह पर इफ़्तार पार्टी का भी भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें कई रोज़ेदार एक साथ बैठकर इफ़्तार करते हैं. भारत विभिन्नताओं का देश रहा है। यहां अलग-अलग धर्म, जाति व रंग के लोग रहते हैं, मगर अच्छी बात ये है कि ये सभी आपसी भाईचारे के साथ एक दूसरे के सुख हो या दुख में हिस्सा लेते हैं। रमज़ान के दिनों में भी गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल देखने को मिलती है। कई गैर-मुस्लिम धर्म के लोग भी अपने मुस्लिम दोस्तों के लिए इफ़्तार पार्टी का आयोजन कराते हैं और साथ में बैठकर रोज़ा भी खोलते हैं। कई तो ऐसे होते है जो स्वयं रोज़ा भी रखते है. रमज़ान वाक़ई में एक मुस्लिम के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है. पूरी दुनिया में से सभी मुस्लिम इसे मनाते हैं। हालांकि, इसके कई पहलुओं से लोग वाक़िफ़ नहीं होते। कहते हैं कि रमज़ान एक त्यौहार नहीं बल्कि जीने का सलीक़ा सिखाने का एक ज़रिया है।
लेखक पत्रकार हैं।
यह उनके निजी विचार है।