राहुल शुक्ला
वसुधैव कुटुंबकम (विश्व एक परिवार है) कोई भी देश अलग-थलग होकर या पूरी तरह आत्मनिर्भर होकर नहीं रह सकता। विभिन्न देशों की विविध प्रकार की जरूरतों की पूर्ति के लिए उनमें पारस्परिक अंतर्निर्भरता उन्हें एक-दूसरे के नजदीक लाती है और एक साथ बढ़ने और पारस्परिक लाभ के लिए एक दूसरे पर भरोसा करना चाहिए।
किसी भी देश की विदेश नीति के निर्धारण में घरेलू राजनीति, अन्य देशों की नीतियों ( आर्थिक और सामाजिक ) भूगोल एक महत्वपूर्ण कारक बनते है | विदेश नीति के निर्धारण में घरेलू कारक भी उतने ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जितने की भूगोल आदि ।भारत का दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने में विश्वास नहीं है। तथापि, यदि किसी देश द्वारा जानबूझकर भारत के राष्ट्रीय हितों को अतिक्रमण किया जाता है, तो भारत त्वरित और समय पर हस्तक्षेप करने में संकोच नहीं करता है। सभी देशों के लिये ‘राष्ट्रीय हित’ का दायरा अलग-अलग होता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय हित के अर्थ में क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिये हमारी सीमाओं को सुरक्षित करना, सीमा-पार आतंकवाद का मुकाबला, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, आंतरिक मामलो में हस्तछेप न करना ,साइबर सुरक्षा आदि शामिल हैं।
हाल ही में गुरु नानक जयंती के अवसर पर कनाडाई प्रधानमंत्री ने भारत में हो रहे किसान आंदोलन का जिक्र किआ । जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि भारत से किसानों से जुड़ी जो खबर आ रही है उसके मुताबिक हालात चिंताजनक हैं। हमें आप लोगों के परिजनों की चिंताएं हैं। ट्रूडो ने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ भारतीय सुरक्षा बलों के रवैये पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि उनकी सरकार हमेशा से शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन की समर्थक रही है। वही सिर्फ कनाडा ही नहीं, बल्कि यूनाइटेड किंगडम में भी पंजाब के मसले पर चर्चाएं जारी हैं। ब्रिटेन के कई सांसदों ने अपने ट्विटर अकाउंट पर पंजाब में जारी विरोध प्रदर्शन को लेकर चिंता व्यक्त की है और सरकार से बातचीत के जरिए हल निकालने को कहा है।
हालांकि उनका यह बयान भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है और हैरान करने वाला इसलिए कि किसानों का विरोध-प्रदर्शन भी अभी तक पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा है, जिसमें किसी अप्रिय घटना का कोई समाचार नहीं आया। इस प्रकार पूरे परिदृश्य में ऐसा कुछ नहीं, जिस पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को ध्यान केंद्रित करना पड़े।
वही दूसरी तरफ कनाडा विश्व व्यपार संगठन में भारत सरकार की एमएसपी देने की नीति का विरोध करता रहा है जबकि एमएसपी किसान संगठनों की प्रमुख मांगो में से एक है। इस मामले पर भारत की सभी राजनीति पार्टियों ने एक सुर में कहा की भारत के आतंरिक मामले अन्य देशो के लिए राजनीति का चारा नहीं है | भारत ने ट्रूडो के बयान को बिना किसी विलम्ब के खारिज करके उचित किया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि यह टिप्पणी आधी अधूरी जानकारी पर आधारित और एक लोकतांत्रिक देश के मामलों में हस्तक्षेप है।
कनाड़ा की जनसँख्या एवम घरेलू राजनीति को यदि हम ध्यान से देखे और समझे तो हम यह समझ सकते है की प्रदर्शनकारी किसान मुख्य रूप से पंजाब के हैं तो ट्रूडो कनाडा में बसे पंजाबी सिखों से हमदर्दी दिखाकर उनके बीच अपना समर्थन और बढ़ाना चाहते हैं।
कनाडा में सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, कनाडाई सरकार में कई महत्वपूर्ण पद भी सिखों के पास ही हैं। ऐसे में अगर पंजाब में कुछ बड़ा होता है, तो उसका कनाडा में भी असर होना लाजिमी है। ऐसे में सभी दल इस तबके को लुभाना चाहते हैं। कनाडा की कमान संभालते हुए उन्होंने कहा था कि उनके मंत्रिमंडल में इतने सिख मंत्री हैं, जितने भारत सरकार में भी नहीं , लेकिन ऐसा कहते हुए उन्होंने यह नहीं सोचा की भारत जैसे शक्तिशाली लोकतंत्र की बागडोर कभी एक सिख के ही हाथ में थी। कनाडा कुछ अलगाववादी खालिस्तानी समर्थकों को शह और ऐसे स्वरों का बचाव भी करता है, लेकिन भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के सदस्यों को वीजा देने से इन्कार करने से उसकी मंशा पर सवाल ज़रूर उठते हैं। यही कारण रहा कि वर्ष 2015 तक 42 वर्षों के दौरान किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने कनाडा का दौरा नहीं किया। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय रिश्तों की इस बेरुखी को दूर करने का बीड़ा उठाया। वर्ष 2015 में वह कनाडा गए। यह चार दशकों बाद भारतीय प्रधानमंत्री पहला दौरा था। इसके पहले 2009 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह भी कनाडा गए थे, लेकिन वह जी-20 समिट में गए थे।
विदेश मंत्रालय के अनुसार भारत और कनाडा के बीच विदेशी नीति, व्यापार, निवेश, वित्त और ऊर्जा के मसलों पर तमाम मंत्रिस्तरीय वार्ता के जरिए रणनीतिक साझेदारी कायम की गई है। दोनों देशों के बीच आतंकवाद निरोध, सुरक्षा, कृषि और शिक्षा के क्षेत्र में भी सहयोग कायम किया जा रहा है कनाडा के वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा अभी महज 1.95 फीसदी है। भारत से कनाडा को हीरे-जवाहरात, बहमूल्य रत्न, दवाओं, रेडीमेड कपड़ों, कपड़ों, ऑर्गनिक रसायन, हल्के इंजीनियरिंग सामान, लोहा एवं स्टील आदि का निर्यात किया जाता है |
इस पूरे प्रकरण से भारतीय विदेश नीति के नए तेवर भी देखने को मिलते हैं। भारत ने अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप पर मौन रहने की परंपरागत चुप्पी तोड़ी है। विगत कुछ वर्षों में भारत की विदेश नीति परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है। हर्ष वी पंत के अनुसार भारत की वर्तमान विदेश नीति की सबसे खास विशेषता यह है कि इसमें पूर्व की सभी नीतियों की अपेक्षा जोखिम लेने की प्रवृत्ति सबसे अधिक है। फिर चाहे ट्रंप द्वारा कश्मीर में मध्यस्थ बनने की पेशकश के दावे को तुरंत खारिज करना हो या कश्मीर से लेकर सीएए पर तुर्की और मलेशिया को जवाब देना हो। भारत की कार्रवाई केवल ज़ुबानी नहीं है, बल्कि उसके मामले में टांग अड़ाने वाले देशों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। तुर्की के अनर्गल प्रलाप के बाद पीएम मोदी ने अपना तुर्की दौरा ही रद कर दिया था, जिसमें कई समझौतों पर बात आगे बढ़नी थी। वहीं मलेशिया को खाद्य तेल निर्यात के मोर्चे पर इसकी कीमत चुकानी पड़ी। कुल मिलाकर यह नए भारत की नई विदेश नीति है, जिसमें कोई देश अपने जोखिम पर ही भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने का दुस्साहस करे। कई जानकारों का मानना है कि भारत की वर्तमान विदेश नीति में विचारों और कार्रवाई की स्पष्टता दिखाई देती है। शायद देर-सबेर ट्रूडो को भी यह बात समझ आ जाए कि नज़दीकी फायदे के लिए वह दूरगामी नुकसान कर बैठे।