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शांभवी शुक्ला

बीते 10 दिनों से पंजाब और हरियाणा से आये किसान दिल्ली चलो का नारा देते हुए दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे इस आंदोलन से दिल्ली में आने जाने वाले लोगों को खासा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही विपक्ष और देश के अलग अलग किसान संगठन भी केंद्र में बैठी मोदी सरकार का घेराव करते नज़र आ रहा है। दूसरी तरफ सरकार किसी हालत में कानून वापस न लेने की कवायद पर ज़ोर देता दिख रही है। आपको बता दें कि संसद के मॉनसून सत्र में कृषि क्षेत्र में विकास को लेकर भारत की संसद में तीन कृषि बिल पारित किए गए,जिन्हें राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बना दिया गया। इन तीनों कानूनों को लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है।

क्या है वह कानून:

1. किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020: इसका उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है। सरकार का कहना है कि किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे। निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे।
लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है।एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है। इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं।

किसानों को यह भी डर है कि सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म कर सकती है, जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है. लेकिन केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि एमएसपी खत्म नहीं किया जाएगा।

2. किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक: इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा।

किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी।

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक: यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है। यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी।

किसानों का कहना है कि यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है। इसके चलते कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी। उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है?

किसानों की मांगें:

दूसरी तरफ किसानों का मानना है कि यह कानून किसानों के हित में नहीं है और निजीकरण को बढ़ावा देने वाले हैं। इससे बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा।

किसानों को लिखित में आश्वासन चाहिए कि एमएसपी और कन्वेंशनल फूड ग्रेन ​खरीद सिस्टम खत्म नहीं होगा।

देश के अलग अलग किसान संगठन कृषि कानूनों के अलावा बिजली बिल 2020 को लेकर भी विरोध कर रहे हैं। उनकी ओर से केंद्र सरकार के बिजली कानून 2003 में संशोधन कर बिजली (संशोधित) बिल 2020 का भी विरोध किया जा रहा है। प्रदर्शनकारी किसानों का आरोप है कि इस बिल के जरिए बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा है। इस बिल से किसानों को सब्सिडी पर या मुफ्त बिजली सप्लाई की सुविधा समाप्त हो जाएगी।

किसानों को पराली जलाने को लेकर तय जुर्माने में भी संशोधन चाहिए। सरकार की ओर से खेती का अवशेष जलाने पर 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना मुकर्रर किया गया है। जिसको लेकर कई किसानों को गिरफ्तार भी किया गया है। प्रदर्शन कर रहे किसान चाहते हैं कि पंजाब में पराली जलाने के चार्ज लगाकर गिरफ्तार किए गए किसानों को छोड़ा जाए।

इस पूरे प्रकरण में अभी तक 5 राउंड की बातचीत हो चुकी है। जिसमें अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। बीते 1 दिसंबर और 5 दिसंबर को किसान संगठन के नेताओं से सरकार के प्रतिनिधियों ने बात की। बीते दिन इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी के आवास पर गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, रेल मंत्री समेत कृषि मंत्री की बैठक हुई। उसके बाद कृषि मंत्री ने 5 घंटों तक प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत की। 5 घंटे तक चली इस बातचीत में भी कोई हल नहीं निकला। इसके बाद बातचीत का अगला सत्र 9 दिसंबर को रखा गया है। किसानों का कहना है कि वह अब किसी हालत में इस कानून को स्वीकार नहीं करेंगे। अब वह इस कानून को वापस लेने के अलावा और किसी बात पर राजी नहीं होंगे।