स्रोत : हरिभूमि

शाम्भवी कँवर

झारखंड पर्यटन-देवघर

बाबा बैद्यनाथ धाम से सुप्रसिद्ध यह स्थान देवघर कहलाता है। महादेव के 12 ज्योतर्लिंगों में एक बाबा बैद्यनाथ धाम अपने आप में पर्यटकों का पसंदीदा स्थल है। इस स्थान की विशेषता सामान्यतः श्रावण मास में देखने को मिलती है जब अनेकों जगह से एक भारी भीड़ बाबा के दर्शन के लिए आती है। नर हो या नारी, सभी बाबा के दर्शन के लिए कई दिन कतार में खड़े रहते हैं और अंततः दर्शन के बाद तृप्त हो वापस लौटते हैं।

बाबा बैद्यनाथ धाम की विशेषता का वर्णन कई ऐतिहासिक ग्रंथों में भी किया गया है जिसे आज भी लोग पढ़ते और जानते हैं। अगर इस ज्योतिर्लिंग के स्थापित होने की बात करे तो यह भगवान राम के युग यानी त्रेता युग में स्थापित हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब लंकापति रावण घायल हुए, तब वह यहीं आ कर उनके उपचार के लिए आग्रह करने लगे जिसके लिए लंकापति रावण ने एक एक कर अपने 10 शीश भगवान शिव को अर्पित किए। महादेव प्रसन्न हो कर धरती पर आए और उन्होंने रावण का उपचार किया जहां से भगवान शिव “वैद्य” कहलाए और इसी तथ्य पर इस ज्योतिर्लिंग का नाम बाबा बैद्यनाथ धाम रखा गया।

स्रोत : हरिभूमि

यूँ तो देवघर में अनेकों पर्यटन स्थल हैं जैसे, तपोवन, नौलखा मंदिर, बाबा बासुकीनाथ और अन्य मगर जिस नाम से देश भर के लोग इस देव भूमि (देव-घर) को जानते और पहचानते हैं वह नाम सिर्फ बाबा बैद्यनाथ धाम के कारण ही है।

देवघर को झारखंड की “सांस्कृतिक राजधानी” भी कहा जाता है। श्रावण मास में कांवड़ियों की भीड़ भी बाबा को जल चढ़ा कर रुद्राभिषेक करने के लिए उत्सुक रहती है। कहते हैं इस मास में महादेव को कांवड़ से जल अर्पित करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। कहने को तो सम्पूर्ण भारत विविध संस्कृतियों का स्थान है जो हर किसी को अपनी संस्कृति से जोड़ कर रखती है। महादेव के अनेकों द्वार में से बाबा बैद्यनाथ धाम अपने आप में झारखंड की संस्कृति व नाम को बनाए रखा है।